Sunday 22 September 2013

हे निराकार!


                                   

हे निराकार निर्गुण, कहो कहाँ छुपे हो तुम 
ढूंढ़ु कहाँ बतलाओ, किस रूप में हो तुम 
हर घड़ी बदलते, अनन्त  रूप तुम्हारा
कुछ देर ठहरकर, पहचान अपना कराओ तुम। 

पल पल बदलते, रूप तुम्हारा 
पल पल बदलती, तुम्हारी सत्ता 
पल पल बदलती, तुम्हारी स्थिति 
पलपल बदलती, हमारी जिंदगी।


तुम हो सर्वोपरि शिरोमणि सर्वशक्तिशाली 
तुम हो सर्वेश्वर सिरमौर सर्वक्षमताशाली
कृपासिंधु दीनबन्धु तुम हो परोपकारी
तुम हो शीलवन्त सर्वव्यापी सर्वगुणशाली।

कृपालु हो ,दयालु हो, हो तुम वनमाली 
गौ पर असीम कृपा तुम्हारा, करते हो रखवाली 
सखा तुम्हारा समर्पित, घर तुम्हारा जग सारा 
मुझे बना लो सेवक अपना, करूँगा तुम्हारी रखवाली।

कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित 
 




28 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना.

    रामराम.

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  2. विनय एवँ आस्था को निरूपित करती अनुपम रचना ! बहुत सुंदर !

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  3. बेहतरीन रचना.....

    सादर
    अनु

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  4. बहुत खूब,सुंदर उत्कृष्ट रचना !

    RECENT POST : हल निकलेगा

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  5. शरणागतवत्सल प्रभु की कृपा बनी रहे सब पर!

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  6. भावपूर्ण याचना...... सुन्दर

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  7. बहुत सुन्दर रचना ....
    :-)

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  8. आपका बहुत बहुत आभार दर्शन जी !

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  9. यही है तुलसी दास्य भाव की भक्ति जहां पूर्ण समर्पण हैं।

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  10. बहुत सुन्दर भाव.

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  11. सुंदर भावपूर्ण रचना !

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  12. अहा! अति सुन्दर.. उत्कृष्ट भाव..

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  13. बहुत सुन्दर भाव...

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  14. बहुत सुन्दर भाव...

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  15. aastha se paripurab bhav liye bahut sundar rachna

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  16. बहुत सुन्दर प्रार्थना . गहन भाव

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  17. सुन्दर वंदना-
    ईश्वर की कृपा बनी रहे-
    आभार आदरणीय-

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  18. सुन्दर प्रस्तुति ।

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  19. निराकार को समर्पित सुंदर भाव

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  20. अत्यंत सुंदर भावोस से ओतप्रोत शानदार रचना ..हार्दिक बधाई

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  21. आओ, हम सब राह देखते,
    नित अधर्म का स्याह देखते।

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  22. wah sundar bhav liye hue sundar rachna

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  23. खूबसूरत शब्द रचना

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  24. आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
    मैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
    वेबसाइट

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