Monday 25 November 2013

तुम



चाहता हूँ, तुझे  मना लूँ प्यार से
लेकिन डर लगता है तेरी नाराज़गी से |

घर मेरा तारीक के आगोश में है
रोशन हो जायेगा तुम्हारे बर्के हुस्न से |

इन्तेजार रहेगा तेरा क़यामत तक
नहीं डर कोई गम-ए–फिराक से |

मालुम है, कुल्फ़ते बे-शुमार हैं रस्ते में
इश्क–ए–आतिश काटेगा वक्त इज़्तिराब से |

बर्के हुस्न तेरी बना दिया है मुझे बे–जुबान
 करूँगा बयां दिल-ए-दास्ताँ,तश्न-एतकरीर से | 

 शब्दार्थ :बर्के =बिजली जैसा चमकीला सौन्दर्य 
        तारीक़= अँधेरा 
        तश्न-ए-तकरीर=होटों की भाषा   



   कालीपद 'प्रसाद'



© सर्वाधिकार सुरक्षित



 

27 comments:

  1. रुचिकर प्रस्तुति-
    आभार भाई जी-

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  2. बहुत सुंदर ग़ज़ल.... !!

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  3. बहुत ख़ूब सर जी

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  4. अति सुन्दर
    आभार अच्छी सामग्री के लिए

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  5. उम्दा लिखा है..

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  6. बहुत खूबसूरत रचना, लाजवाब !

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  7. वाह!!! बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

    आग्रह है--
    आशाओं की डिभरी ----------

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  8. बहुत कि बेहतरीन रचना....

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  9. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति..आभार.

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  10. एक लम्बी अवधि के बाद अभिवादन ! अथ,सुकोमल भावुक श्रृंगार हेतु साधुवाद ! !रचना मनन को छू लेने वाली है |

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  11. बहुत सुन्दर ..

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  12. बहुत सुन्दर रचना

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  13. आदरणीय सर , बहुत सुंदर , धन्यवाद
    नया प्रकाशन --: तेरा साथ हो, फिरकैसी तनहाई

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  14. लाजवाब रचना.

    रामराम.

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  15. बहुत खूब प्यारभरी बानगी ...

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  16. आभार राजेश कुमारी जी
    (नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
    नई पोस्ट तुम

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  17. सुंदर भाव सम्प्रेषण ....

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  18. अच्छी ग़ज़ल.... आभार

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  19. खूबशूरत ग़ज़ल

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  20. Behtrin .. behad umda !!

    http://gazalajayki.blogspot.in/2013/11/blog-post_28.html

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  21. http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ २९/११/२०१३ दिन शुक्रवार की चौपाल पर आपकी रचना को शामिल किया जा रहा हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे .धन्यवाद

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  22. खूबसूरत नज़्म।
    सुन्दर उर्दू अलफ़ाज़।

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