Wednesday 18 December 2013

मेरे सपनों का रामराज्य (भाग १)

सुन सुन कर नेताओं  के
कोमल कर्कश वाणी ,
क्या समझे और क्या न समझे
हमें होती है हैरानी |

सोचते सोचते आँख लग गई
देखा एक सपना अनोखा ,
विष्णुलोक पहुँच गया मैं
लक्ष्मी नायायण का दर्शन किया |

चरणस्पर्श कर माता लक्ष्मी का
और भवसागर के पालक का ,
कहा ,"प्रभु !प्रोमोदित हो तुम गोलोक में
देखो ज़रा हाल भव-संसार का |

स्वर्ग तुल्य भारत भूमि में
हो गया है मानवता का नाश ,
मानव का कलेवर है सबका
आचार विचार से है राक्षस |

भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं
पैर से सर तक शासक वर्ग
महंगाई और शोषण का शिकार
हो रहे हैं निम्न और माध्यम वर्ग |

अत्याचार ,व्यभिचार ,बलात्कार
हो गया है एक मामूली बात ,
गाली गलौज तो जैसे फुल बरसता है
कत्ले आम होती है दिन रात |

भाई, भाई का खून का प्याषा
घर में ,बाहर में फैला है निराशा
एटम बम्ब के त्रास से भयभीत
फट जाय  तो बचने की  नहीं आशा |

सत्य का हनन ,असत्य का विजय
यही है कलियुग  का प्रिय नारा
बाहू बालियों का राज है अब
जनता हो गई  गौ बेचारा |

त्याग दिया क्या धरती पर आना
भूल गए क्या अपना वचन ?
धर्म की  रक्षा के  लिए धरती पर
जनम लेकर करना है दुष्टों का दमन |"

प्रभु बोले ," व्याकुल क्यों  वत्स
सुनो मेरी बात पूर्ण ध्यान से
कलियुग के अन्तिम  चरण में
कोई नहीं बंधे धर्म -कानून से |

दुष्कर्मों का घड़ा जब भर जायेगा
मारेंगे, मरेंगे सब चींटी जैसे
होगा विनाश समूल पापिओं का
द्वापर में मरे यदुकुल जैसे |"

निवेदन किया मैंने प्रभु से
एक बार फिर विनम्र होकर
"मानवता की करो रक्षा
धर्म को बचाओ अवतार लेकर |"

प्रभु बोले ,"आया नहीं अवतार का समय
नहीं जा सकता अभी धरती पर
तुम्हे देता हूँ एक अमोघ शक्ति
जाओ राज करो धरती पर |

तुम जो चाहोगे वही होगा
तुम जो कहोगे ,लोग वही करेंगे
कोई नहीं होगा जग में ऐसा
जो तुम्हारा विरोध कर पायेंगे |

दुष्टों को दण्डित करो और
धर्म राज्य  का स्थापन करो
भ्रष्टाचारी ,बलात्कारी को दण्डित करो
शोषित और नारी को भय मुक्त करो |

तुम्हे देता हूँ वरदान वत्स
होगे तुम सफल इस काम में
सु-शासन और सुविचार का
प्रचार करो जाकर जग में |"



           .................. क्रमश:-भाग २

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित



14 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    सादर नमन

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  2. हकीकत को बेबाकी से बयान करती

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  3. आगे क्या हुआ? मन की द्रवित करती परिस्थितियाँ

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  4. प्रभु ने कष्टसाध्य कार्य पकड़ा दिया...उनके बस का तो था नहीं...

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  5. bahut badhiya ...aage ki prteeksha rahegi

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  6. कालीप्रसाद जी बात तो सही है .भगवान् भी मानव रूप में ही अपनी शक्ति दिखाता है .........तो हमें खुद को ही साबित करना होगा .नमन

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  7. wah bahut sundar baat kahi hai apne

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  8. बहुत बढ़िया आगे की कड़ी का इंतजार है !

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  9. बहुत खूब ... राम राज्य अब तो एक कल्पना बन के ही रह गया है ...

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  10. रोचक प्रस्तुति है कालीपद जी ! अगला भाग पढ़ने की उत्सुकता बढ़ गयी !

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  11. रचना कि विषय-वस्तु तो अच्छी है किन्तु यह कविता कि कौन सी शैली है यह जाने बिना मैं कुछ और टिपण्णी नहीं कर पा रहा हूँ.

    मैं अच्छा कवि या लेखक नहीं हूँ किन्तु काव्य का जो एक मार्ग मुझे पता है वह यह है कि या तो काव्य में तुक बन्दियां होती हैं या निरंतरता. क्षमा करें किन्तु मुझे दोनों ही नहीं मिल पाई.

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