Saturday 30 May 2015

चक्रव्यूह




चक्रव्यूह

इस जिंदगी का क्या भरोसा 
कब शाम हो जाय ,
भरी दोपहरी में कब
सूरज डूब  जाय ....
उम्मीद के पतले सेतु के सहारे
मकड़ी सा आगे कदम बढ़ा रहे है
और खुद के बुने जाले में फंसकर
छटपटा रहे है |

क्या यह मेरा भ्रम है ?
कि जाले मैं ने बुने हैं ,या
मुझे बनाने वाले ने
मेरी क्षमता की परिक्षण हेतु
मुझे अभिमन्यु बना कर
इस चक्रव्यूह में डाला है ?

मुझे अभिमन्यु नहीं
अर्जुन बनना पड़ेगा
चक्रव्यूह को तोड़कर
बाहर निकलना पड़ेगा
मुझे बनाने वाले के सामने
अपनी योग्यता 
साबित करना पडेगा |

मेरा ज्ञान सिमित है
ज्ञान-क्षितिज के पार
है गहन अँधेरा
आँख खुली हो या बंद
कुछ नहीं दीखता, सिवा अँधेरा |
यही अँधेरा मेरी अज्ञानता है
हर इन्सान 
इसी अन्धकार में भटक रहा है|
ज्ञानियों ने ज्ञान के प्रकाश से
बाहर निकले हैं अन्धकार से |
अँधेरी राह में यात्रा कितनी भी
दुर्गम क्यों न हो,
चीरकर उस अँधेरे को
मुझे भी आगे जाना होगा 
हर हालत में मुझे
इस परीक्षा को पास करना होगा |

© कालीपद “प्रसाद”


 

16 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-05-2015) को "कचरे में उपजी दिव्य सोच" {चर्चा अंक- 1992} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. माफी चाहूँगा
    इस सुंदर रचना में टंकण में हुई गलतियाँ दिख रही हैं कृपया दुरुस्त कर लें ।
    भरोसा, डूब, पतले, मकड़ी से ,छटपटा, सीमित,

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    1. आपका आभार सुशील कुमार जोशी जी ! दुरुस्त कर दिया 1

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  3. खुद ही निकलना होता है इस चक्रव्यूह से ...
    अच्छी रचना ...

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, क्लर्क बनाती शिक्षा व्यवस्था - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. ब्लॉग बुलेटिन टीम का आभार !

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  5. बहुत सुंदर । इंसान की जिंदगी ही एक चक्रव्यूह है ।

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  6. बहुत सुंदर । इंसान की जिंदगी ही एक चक्रव्यूह है ।

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  7. गहन, गूढ़ एवं परिपक्व सोच को दर्शाती बेहतरीन प्रस्तुति !

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  8. भ्रम के जाले
    बुने नहीं जाते
    लग जाते हैं अपने आप
    मन के कोनों में
    फिर कितना भी चाहो
    इन्हें हटाना
    मुश्किल ही नहीं
    नामुमकिन हो जाता है
    जीवन में कई बार

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  9. बढ़िया कविता

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  10. बहुत ही भावपूर्ण रचना. अच्छा लगा पढ़कर

    http://chlachitra.blogspot.in/
    http://cricketluverr.blogspot.in/

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  11. is zindgi ke chakravyuh se nikalne ka upaye insan ant tak doondhta hi rehata hai.. bahut sunder

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  12. इस चक्रव्यूह से निकलने का प्रयास स्वयं ही करना होता है..बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..

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  13. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  14. बहुत सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

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