Tuesday 30 June 2015

नई पीढ़ी ,पुरानी पीढ़ी





पिता ने पुत्र से कहा ,
“बेटा अब तुम बड़े हो गए हो
पढ़ लिखकर
नौकरी में स्थापित हो गये हो  
अब भाग दौड़ कम कर
एक गृहस्थी बसा लो
अब तुम शादी कर लो |”

आधुनिक परिवेश में पले,पढ़े,बढे
मॉडर्न होने का दावा करने वाले
पुत्र ने थोड़ी देर पिता को गौर से देखा  
फिर बोला ,
”पापा मैं अब बड़ा हो गया हूँ
मैं अपना ख्याल रख सकता हूँ
अपना भला बुरा समझ सकता हूँ ,
यह जिंदगी मेरी है
मैं घूमूँ फिरूँ मौज मस्ती करूँ
या एक औरत से
अपने गले में फंदा डलवा लूँ
और उस खूंटे से सदा के लिए
बंधा रहूँ ,
आपको क्या फरक पड़ता है ?
जीना मुझे है
भुगतना भी मुझे है
आप चिंतित क्यों हैं ?”

“यह जिंदगी मेरी है “
हर युवक ,हर युवती का
आज यही बीज मंत्र हैं
सोचने समझने का नया ढंग है |
लड़कियां भी नहीं चाहती
एक खूंटे से बंधे रहना
हरित चरागाह के खोज में यद्यपि
उन्हें पड़ता है दर-दर भटकना |  

“हमारी जिंदगी सबसे जुडी है
सुख-दुःख में सब ,समान भागीदार है “
पुरानी पीढ़ी की यह सोच है |

नई पीढ़ी सोचती है
“जिंदगी मेरी है
इसमें किसी की
हस्तक्षेप की जरुरत नहीं है “
माँ, बाप,बड़ों की बातों को
कुशलता से दरकिनार करने की
नई पीढ़ी को महारत हासिल है |
भाव,भावना की बातें
उनके लिए इमोशनल ब्लैक मेल है |

स्वतंत्र सकारात्मक सोच अच्छी है
नकारात्मक सोच खतरनाक है ,
पारिवारिक रिश्ते के धागे को काट
उसे अलग-थलग कर देती  है,
अंत में नतीजा वही होता है
जो एक कटी पतंग का होता है | 


कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित

Friday 19 June 2015

तुम्हारी याद !






क्या कहूँ कुछ सूझता नहीं ,काल-कर्कट है बड़ा क्रूर
तुड़वा दिया कसम हमारी ,कर दिया तुमको मुझ से दूर|
खाए थे कसम हमने मिलकर ,साथ रहेंगे जिंदगी भर
तुम हो कहीं पर ,मैं हूँ कहीं ,हो गए हम लाचार मजबूर |
हवा करती शोरगुल जब ,पत्तों का होता है सर- सराहट
लगता है यहीं कहीं पास में हो तुम,नहीं हो हमसे दूर |
रजनी-गंधा रजनी भर जगकर, बिखेरती जब अपनी महक
मन-कोयल मेरा चाहता है गाना,पर गायब है उसका सुर |
बादल के काले घुंघराले बाल ,ज्यों उड़ते फिरते आस्मां में |
लगता है तुम उड़ रही हो ,उड़ रहे हैं तुम्हारे काले चिकुर |
लड़ना झगड़ना ,चुप रहना, फिर बोलना याद आ रही है
अंतिम क्षण तक तेरी याद,दिल को मेरे बेक़रार करेगी जरुर |


 कालीपद "प्रसाद"

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