Wednesday 3 February 2016

यादें

यादें !

देख पीड़ा तेरी अरसों से
दिल रोता रहा अन्दर से |

आँसू बहकर सुख गए नयन में
खून रिस रहा है दिल में  |

नहीं हूँ, जैसा राम भक्त हनुमान
कैसे दिखाऊँ तुझे, दिल है लहुलुहान |

सी लिया होंठ मैंने अपना
केवल एहसास करता हूँ तेरी वेदना |

और न यादों का नस्तर चला मुझ पर

परेशां हूँ मैं, तेरे गैरहाजिर पर |


कालीपद 'प्रसाद'





1 comment: