Thursday 18 October 2018

दशहरा और रावण दहन



दशहरे में विजयोत्सव मनाना तो उचित है
पर रावण का पुतला जलाना क्या उचित है ?
पढ़िए छै मुक्तक

1.
आदि काल से बुरा रावण को जलाया जाता है २८
बुराई पर सत्य की जय, यही बताया जाता है
लोभ, मोह, काम, क्रोध, हिंसा, द्वेष ये बुराई हैं
जलाने वाले क्या इन सबको जलाया जाता है ?
२.
बुराई सभी अपने अंदर हैं, उसको जलाओ २७
रावण को बदनाम कर उसका पुतला न जलाओ
हर इंसान के मन भीतर छुपा है एक रावण
उसे निकालो और सरेआम उसे ही जलाओ |
,
सब बुराई के प्रपंच के आगोश में हो तुम२६
पुरानी रीति रिवाजों के बंधनों में हो तुम
स्वार्थ  बस बंधन को नहीं तुम तोड़ना चाहते
क्षणिक सुख के लिए व्यर्थ रावण जलाते हो तुम |
४.
सीता हरण  कर उसने गंभीर गलती की थी

पर लंका में सीता को भी,हानि  नहीं की थी
प्रकांड विद्वान थे, राम भी उसे मानते थे
 मृत्यु शय्या पर राम को नैतिक शिक्षा दी थी |
५.
 जिस से शिक्षा ली जाए, वह तो गुरु होता है
 यही बात शास्त्र पुराण दृढ़ता से कहता है
 राम ने रावण से राजनीति की शिक्षा ली
 शिष्य का पूजन, गुरु का दाहन न्याय होता है ?
राजनीति का खेल होता सर्वथा निराले
आज भी चल रहा है आप जरा आजमा ले
क्या आज दुष्ट नेता को जलाया जाता है?
दिमाग का द्वार खोलिए, होने दे उजाले  |

कालीपद 'प्रसाद'
सर्वाधिकार सुरक्षित 

Thursday 11 October 2018

देवी -प्रर्थना - गीतिका


१२२  १२२  १२२  १२२
करो कुछ कृपा, दींन  के चौक आए
सभी दीन  इक बार,आशीष पाए |

नहीं भक्ति, श्रद्धा,  तुम्ही कुछ बताओ
सभी संग आराधना गीत गाए ? 
            
भले भक्ति गाढ़ा न, विश्वास तो है
तुम्हें सर्वदा मातु हम शीश झुकाए |

सदा ख्याल रखती तूपीड़ित जनों का
कभी रूपअपना भवानी दिखाएं |

दुखों का महा सिंधु संसार तेरा
मनोरोग औ काय पीड़ा भगाए |

नहीं जानते आवरण जिसमें ढके तुम
सती, भगवती, पार्वती रूप भाये  |

नवीन और नव रूप दुर्गा व गौरी
कृपा मातु  का प्रेम सरिता बहाए |

कालीपद 'प्रसाद
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Wednesday 3 October 2018

ग़ज़ल

दोषी’ हूँ पर न दे सजा दिलबर
तेरी’ नाराजगी कज़ा दिलबर |
कौन किस से कहाँ मिले क्या’ पता
फक्त तौफीक तू मिला दिलबर |
प्यार में तो वफा किया मैंने
बावफा माँगता वफा दिलबर |
प्यार में सिंधु तैरता रहा हूँ
साथ अब तैर के बता दिलबर |
मर्ज़ अब बढ़ गया सनम मेरे
चाहिए अब दुआ, दवा दिलबर |
क्यों खफा है जरा बता मुझको
हिज्र की आग को बुझा दिलबर |
सरफिरा किंतु बेवफा नहीं’ हूँ
नाखुदा मेरा’ तू खुदा दिलबर |
यह जमाना है दो मुँहा ,यही’ सच
तू सचाई को आजमा दिलबर |
चोट 'काली' यदा कदा दी मुझे
भुला दी मैं गले लगा दिलबर |
तौफीक =दैव योग
हिज्र -वियोग
नाखुदा =कर्ण धार , मल्लाह
©स्वरचित , सर्व अधिकार सुरक्षित
कालीपद 'प्रसाद'