मेरा मन उदास है
हर साख पर फुल खिले हैं, वसन्त का पदार्पण है
भौंरें गुण गुना रहे हैं, पर मेरा मन उदास है |
फल-फूलों के खुशबु से, हवाएं सुवासित है
चिड़ियाँ चहक रही है, पर मेरा मन उदास है |
पीले-पीले सरसों फूल से, खेत सब भरे पड़े है
तितलियाँ मंडरा रही हैं, पर मेरा मन उदास है |
वासंती हवा गा रही है, कोयल के संग संग
पुष्प-लता सब झूम रही है, पर मेर मन उदास है|
लाल लाल टेसू के फूल, अनंग जगा रहा है
जीवन साथी के वियोग में, मेरा मन उदास है |
धरती ने किया अनुपम श्रृंगार, फुल-पत्ते हैं अलंकार
मोह रही है धरा वासी को, पर मेरा मन उदास है |
पिया ने सजाया था इस बाग़ को, बाग़ उजाड़ गया
श्रीहीन,सौरभ हीन इस बाग़ में, मेरे मन उदास है |
अली-गुन्जन,कोयल-कुजन, मधुमास का आभास है
पिया विहीन इस बाग़ में, मेरा मन उदास है |
कालिपद ‘प्रसाद’
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धन्यवाद यशोदा बहन !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " मालिक कौन है - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन का आभार
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ReplyDeleteभावपूर्ण
ReplyDeleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।