Wednesday 23 March 2016

भ्रष्टाचार ,रिश्ते

भ्रष्टाचार का बेल सारे देश में फ़ैल गई  
जन-नेता पर से जनता की आस्था टूट गई
हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार बन गया नासूर कैंसर
पाखंडी धर्म गुरुओं के चंगुल में जनता आ गई |

चाँद तारों की चमक है, सूर्य के  आने तक
यार दोस्तों का भरमार है, जेब भरी है जब तक
रिश्ते-नाते, धन-दौलत का भरपूर उठाओ आनंद
इनका साथ रहेगा केवल शमशान जाने तक |


कालीपद 'प्रसाद'

Friday 4 March 2016

दोहे !




कोई नहीं सुखी यहाँ, राजा हो या रंक
प्रजा से दुखी राजा, राज-जुल्म से रंक ||1||
वक्त कभी रुकता नहीं, सुख-दुःख विराम हीन
ख़ुशी में मन आनान्दित, दुख में मन है मलिन ||२||
सुख-दुःख नहीं अलग चीज़, सुख का हिस्सा है दुःख
सुख ज्यादा, दुःख कम कभी, सुख न्यून, ज्यादा दुःख ||३||
सुख गैरहाजिर है तो, दुःख होत है हाज़िर
सुख जब प्रबल होत है, दुःख है गैर हाज़िर ||४||
कर्मचक्र चलता सदा, कर्म में बंधे जीव
कृत्य से मिलती मुक्ति, कर्म मुक्ति की नीव ||५||
पशु पक्षी मूक जीव है, पर उनमें हैं समझ
जीव में मानव श्रेष्ठ, है स्वार्थी नासमझ ||६||
समझना चाहते नहीं, समझ के बावजूद
स्वार्थी बनकर आदमी, गंवाता है वजूद ||७||

  कालीपद ‘प्रसाद’
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