Sunday 25 December 2016

ग़ज़ल

प्यार की धुन बजाता जायगा
राज़ जीवन का सुनाता जायगा |

पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ  
दोस्ती सबसे निभाता जायगा |

बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा
दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |

पेट खुद का चाहे हो खाली मगर
खाना भूखों को खिलाता जायगा |

ले धनी का साथ अपनी राह में
मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |

छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा
प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा |

उस फरिस्ते की प्रतीक्षा है अभी
स्वर्ग धरती को बनाता जायगा |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Thursday 22 December 2016

ग़ज़ल /गीतिका

न किसी को कभी रुलाना है
हर दम हर को तो हँसाना है|१

कर्मों के फुलवारी से ही
यह जीवन बाग़ सजाना है |२

दुःख दर्द सबको विस्मृत कर
जश्न ख़ुशी का ही मनाना है |३

मौसम का मिजाज़ जैसा हो
प्रेम गीत तो गुनगुनाना है |४

रकीब की मरजी पता नहीं
अपना घर नया बसाना है |५

चश्मा द्वेष का उतार देखो
दुनियाँ प्यार का खज़ाना है |६

गरीब और धनी बीच फर्क
भेद भाव सभी मिटाना है |७

मज़हब अलग अलग पर इक रब
सबको ये राज बताना है |८


© कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday 20 December 2016

ग़ज़ल

बन्दे का काम घेर, उसूलों ने ले लिया
है गलतियाँ रहस्य, बहानों ले लिया |१
वो बात जो थी कैद तेरे दिल की जेल में
आज़ाद करना काम अदाओं ने ले लिया |२
चुपके से निकले घर से, सनम ने बताया था
वो जिंदगी का राज़ निशानों ने ले लिया |३
धरती को चाँदनी ने बनायीं मनोरमा
विश्वास नेकनाम सितारों ने ले लिया |४
मिलता है सुब्ह शाम समय रिक्त अब नहीं
पूरा दिवस व रात्रि किताबों ने ले लिया |५
बादल बरसते पौष, हुए फायदा बहुत
आनंद सब उधार फिजाओं ने ले लिया |६
सामान थे अनेक प्रसाधन के थे सकल
चारो तरफ से घेर हसीनों ने ले लिया |७
आकाश है पलंग बिछाना कपास है
नीरद उड़ान तेज हवाओं ने ले लिया |८
वादा बहुत किया है कुशल क्षेम आयगा
सबका है साथ हाथ बयानों ने ले लिया |
© कालीपद ‘प्रसाद’

Monday 12 December 2016

दोहे

नोट बंद जब से हए, लम्बी लगी कतार
बैंकों में मुद्रा नहीं, जनता है लाचार |
लम्बी लम्बी पंक्ति है, खड़े छोड़ घर बार
ऊषा से संध्या हुई, वक्त गया बेकार |
बड़े बड़े हैं नोट सब, गायब छोटे नोट
चिंतित है सब नेतृ गण, खोना होगा वोट |
नोटों पर जो लेटकर, लुत्फ़ भोगा अपार
नागवार सबको लगा, शासन का औजार |
तीर एक पर लक्ष्य दो, शासन किया शिकार
आतंक और नेतृ गण, सबके धन बेकार |
व्याकुल है नेता सकल, कैसे होगा पार
बिकते वोट चुनाव में, होता यह हर बार
सचाई और शुद्धता, प्रजातंत्र आधार
मिलकर सभी बना लिया, शासन को व्यापार |
जनता खड़े कतार में, चुपचाप इंतज़ार
संसद में नेता सकल, विपक्ष की हुंकार |
© कालीपद ‘प्रसाद’

Thursday 8 December 2016

ग़ज़ल

कुछ को लगा कि नाव डूबता नज़र आ रहा है
तो कोई अपनी सत्यता का गीत गाता रहा है |

तो कोई माँगता है हक़ तमाम संपत्ति स्वामित्व
फिर इंदिरा को याद कर प्रशस्ति गाता रहा है |

दिन भर खड़े खड़े हताश लोग सब हैं परेशां 
कुछ नोट वास्ते तमाम दिन ही प्यासा रहा है |

आशा कभी रही नहीं कि अच्छे दिन गप्प होगा
चेहरा सभी कुसुम कली निराश मुरझा रहा है |

वादा बहुत हुआ प्रसाद कुछ मिला भी नहीं अब
मुँह अब झुका झुका इधर उधर छिपाता रहा है |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Wednesday 7 December 2016

ग़ज़ल

दिया है वचन तो निभाना पड़ेगा
प्यार की कशिश में आना पडेगा |
तुम्ही ने लिए है कसम और वादे
तुम्हे अब कहो क्या मनाना पडेगा ?

जो भी हूँ जहाँ हूँ, हमें ना भुलाओ
जो वादा किया वो निभाना पडेगा |

ज़माना कभी भी बुरा तो नहीं है
बुरा आदमी है, सुधरना पडेगा |

गुलों में जो खुशबु है, उसको भी जानो
क्रिया का ही खुशबू, बढ़ाना पडेगा |



कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday 6 December 2016

एक ग़ज़ल



कमजोर जो हैं तुम उन्हें बिलकुल सताया ना करो
खेलो हँसो तुम तो किसी को भी रुलाया ना करो |
दो चार दिन यह जिंदगी है मौज मस्ती से रहो
वधु भी किसी की बेटी है उसको जलाया ना करो |
चाहत की ज्वाला प्रेम है इस ज्योत को जलने ही दो
लौ उठना दीपक का सगुन उसको बुझाया ना करो |
अच्छी लगी हर बात जब बोली मधुर वाणी सदा
कड़वी नहीं अच्छी कभी, कड़वी बताया ना करो |
हम मान लेते हैं सभी बातें तुम्हारी किन्तु तुम
आगे अभी ज्यादा कभी मुझको नचाया ना करो |
© कालीपद ‘प्रसाद

Friday 2 December 2016

एक शेर :

नोटबंदी कर दिया है  वह बिना सोचे विचारे
ध्यान से देखो किधर अब देश को ले जाता बन्दा
कालीपद 'प्रसाद'