जलाशय सूखे, नहर, कुएं सब
सुख गए
खेतों में पानी नहीं, जमीन
में दरारे पड गए ||1||
दैवी प्रकोप है या, है यह
प्रकृति का रोष
स्वार्थी बने मानव, दिल में
दरार पड़ गए ||२||
बूंद बूंद पानी के लिए, खगवृन्द
तरसते रहे
बिन पानी सबके प्राण, एक
साथ निकल गए ||३||
सुखा पीड़ित घूँट घूँट पानी के
लिए तरसते रहे
लाखों लीटर पानी, एक
क्रिकेट मैंदान पी गए ||४|
‘प्रसाद’ कहे सुनो नेता,
जनता को ना यूँ मारो
तुम्हारे खेल कूद, जनता पर
भारी पड गए ||५||
कालीपद ‘प्रसाद’
© सर्वाधिकार सुरक्षित