Sunday, 30 December 2012

नया वर्ष मुबारक हो सबको

 

 

 

 वर्ष 2013 आप सबको मंगलमय हो , सुख समृद्धि दायक हो।



नया वर्ष मुबारक हो सबको  
नई किरणे प्रेरणा दायक हो सबको 
नया प्रभात की नई किरणे 
उमंग पंख लगा दे सबको 
और ले जाये उस ऊंचाई पर 
छू ले आप नई शिखर को 
नया वर्ष मुबारक हो सबको। 

भेद -भाव ,धर्म -धर्म का 
ऊँच -नीच ,जात -पात का 
विषमता जन -जन का 
सबको धरती में दफ़न कर 
उसपर प्रेम का नया पौध लगाकर 
स्वागत करो नया वर्ष को 
नया वर्ष मुबारक हो सबको। 

काल चक्र की गति अविराम 
नया  सहस्राब्दी है जिसका परिणाम 
नई  शताब्दी  के त्रयोदश वर्ष के 
आगमन का शाक्षी हम 
आओ करे मिलकर स्वागत 
नवीन सूर्य की नई किरणों को 
नया वर्ष मुबारक हो सबको। 

नई निशा, नई उषा  
नया सूरज और नई किरण 
आशा, विश्वास  और उत्साह से 
भर दे सबका मन।

नई दिशा हो ,प्रेम की भाषा हो 
आनन्द , ख़ुशी ,सुख ,समृद्धि हो 
छुए आप  सफलता की नई ऊंचाई को 
आओ करे मिलकर स्वागत 
नई आशा ,नया विश्वास को 
नया वर्ष मुबारक हो सबको। 



 कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित
नोट : यह कविता जनवरी 2000 में मैंने लिखा था। 17 वीं पंक्ति में मैंने परिवर्तन  कर "प्रथम " के स्थान पर" त्रयोदश " किया है।

Tuesday, 25 December 2012

जागो कुम्भ कर्णों



मंत्री ,सन्तरी  और 
देश के ठेकेदारों !
जागो!
भारत की आधी जनता 
जाग गई है ,
बचे आधी ने
करवट ले ली है।
कुम्भ कर्णी  नींद से तुम जागो 
समझो कि तुम्हारी प्रिय कुर्सी 
अब हिल रही है।
समय रहते यदि नहीं जागे 
बलात्कार ,अत्याचार 
भ्रष्टाचार  के विरुद्ध 
यदि शक्त जनहित क़ानून नहीं बनाये 
जान लो यह निश्चित 
तुमने अपना कब्र  खुद खोद लिए।
राजनीति का खिलाडी हो,
जनशक्ति को दबाकर 
उसे ललकारते हो ?
लगता है अनाड़ी खिलाडी हो।
क्या कभी तुमने इतिहास पढ़ा ?
जरा  इतिहास के पन्ने पलटो 
या 
यूगांडा ,मिश्र का सैर कर लो 
दादा अमिन का हाल  जानलो 
और 
हुस्न मुबारक का क्या हुआ 
उससे ही पूछ लो। 

मंत्री ,संत्री, सांसद 
सबको आता है आनंद
विदेश  यात्रा में।
अब तुम लीबिया जाना 
जरा कर्नल गद्दाफ़ी का  
ख़बर जानकार आना ,
शायद तुम्हारी नींद खुल जाय 
जानकर बिरादरी का ठिकाना।

बाप बेटे ने मिलकर 
किया औरत की इज्जत को तार तार 
होकर रक्षक बन गया भक्षक 
बढाया भ्रष्टाचार   ।
बेटा गया ,परिवार गया 
सत्ता गई ,उसकी जान भी गई 
सहन शक्ति  जनता की
जब जवाब दे गई।

इतिहास में एक नहीं
अनेक है ऐसे किस्से ,
इसलिए प्यारे कहता हूँ प्यार से।
अँधेरा छट  रहा है  
उजाला आनेवाला है 
आधी जनता जाग चुकी है 
आधी जागने वाली है 
जब सब जाग जायेंगे 
तुम्हारा क्या होगा प्यारे ?


कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित
कुम्भ कर्णों 



Thursday, 20 December 2012

गांधारी के राज में नारी !


                                                               ( गूगल के सौजन्य से )



पढ़ा है महाभारत में
द्रौपदी का चीर हरण हुआ था सभा में
सभी मर्द थे ,पर चुप थे ,भय से ,अचरज से ,
कोई न आया बचाने द्रौपदी को
लाज बचाया केवल कृष्ण  ने।

आज" भारत महान" की राजधानी ....
दिल्ली - पुरातन इन्द्रप्रस्त में
हो रहा है पुनरावृति वही  कहानी की
पर राजसभा अब धृतराष्ट्र की नहीं
अब यह  है गांधारी की।
नारी का राज है
नारी के राज में
नारी ही बेआबरू है
सभा में नहीं
अब सड़क  पर।

नारी बेआबरू है ,
उसकी इज्जत जर्जर है
सड़क पर ,बस में, कार  में ,
रक्षा के आस्था स्थल , थाने में ,
कोई कृष्ण नहीं  आया उसे बचाने  में,
क्योंकि सड़क से राजसभा तक
दु:शासनों का राज है।
सड़क पर,
थाने पर
दू:शासन का ही प्रहरी है
इसलिए नारी निर्वस्त्र होने के लिए
मजबूर है।

कृष्ण हीन द्वारका में
नहीं बचा पाया अर्जुन
गोपियों का मान ,
जल समाधी लिए गोपियाँ
बचाने आत्म सम्मान।

नारियों !जागो !!
यह नहीं  है द्वापर युग
जल समाधी कभी न लेना
यह है कलियुग ,
सशरीर कृष्ण नहीं आया
तो क्या ?
दुर्गा, काली की शक्ति है तुम में
उसका क्या हुआ ?
जगाओ उस शक्ति को
ललकारो दुस्शासनों को ,
न रक्तबीज रहा न महिषासुर
दुराचारी दूस्शासन  भी नहीं रहेगा।
आओ निकलकर घर से
वध करो सब दुस्शासनों  को
तीर ,तलवार ,बन्दुक न बुलेट से
अपना अ-मूल्य  मत पत्र "वेलेट" से।

कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित       

Monday, 10 December 2012

क्षणिकाएँ

अपनी   असफलता   पर, तू न मायूस हो, न गम कर ,
खाई से होकर ही चढ़ते हैं  शिखर पर ,शिखर पर तू नज़र रख।

अपनी कमज़ोरी का तू न नुमाइश कर , उसे पह्चानले ,
याद रख ,वही दिलायेगी सफलता ,तू उसका ख्याल रख।

वाक पटुता है,  शब्द शक्ति है,  शब्दों में मिठास भी है,
गर ये किसी के दिल में दर्जा न पाये ,तो सब ना काफ़ी है।

मन्जिल तक पहुँचने के लिए चलना तो पढ़ेगा ,
लड़ाई जितने के लिए हिम्मत से लड़ना तो पड़ेगा।

जिसने भी हिम्मत हारा ,परीक्षा से मुहँ मोड़ा ,
मिट गया वह ,जग ने भी उसको भुला दिया।


कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday, 3 December 2012

पर्यावरण -एक वसीयत








हे मनुज !
वसीयत माँगती  तुम्हारी संतति
सुजला   सुफला   धरती
पूर्वजों की धरोहर धरती,
पशु पक्षी के  कलरव से
प्रफुल्लित ,उल्लसित धरती
वृक्ष लता से सज्जित सजीव धरती ,
प्राणवायु से भरपूर और  अमृत जल
जीवन के स्पंदन से स्पंदित धरती।

नहीं मांगती तुम्हारी संतति
वृक्ष लता हीन  वंजर धरती ,
संहारक विषाक्त वायु, अप्राकृतिक निर्झर
सिमटती वन और उजड़ी पर्यावरण

दूषित जल और मुमूर्ष जन
 धरती , जिसमे हो दुर्लभ जीवन।

हे मानव !
लिख दो वसीयत अपनी संतति के नाम
न गज ,न बाजी ,न चाँदी ,न कंचन
केवल हरित धरती ,स्वच्छ जल-वायु
और स्वच्छ पर्यावरण !!!








कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित