Wednesday 21 September 2016

पाकिस्तान मिट जायगा

उरी में शहीद हुए,शहीदों को समर्पित
पकिस्तान मिट जायगा !

कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान|
सोना, मरना एक जैसा, निर्जीव शव है जैसा
सोता अनजान होता है, आस पास कौन कैसा|
कायर हो तुम अधम, सोते में उनकी जान ली
निर्जीव शव को मार कर, बहादुरी क्या कर ली?
परिणाम नहीं जानते तुम, नतीजे से हो अनजान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान|
गर हिम्मत हो तुम में तो. मैदाने जंग में आओ
बीरता से मैदाने जंग में अपनी बहादुरी दिखाओ|
छुप छुप कर कपटी तुम, अब भी खेलते खेल
जगे सिंह की मार तुम, कभी नहीं पाते झेल |
बचकानी हरकतें छोडो, दीखाओ तुम हो जवान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान|
हमें मत डराओ देकर धमकी, उस एटम बम्ब की
तुम भूल गए क्या शर्मनाक अंजाम इकहत्तर की ?
इतराओ न, पड़े रहेंगे ख्वाब के सारे पटाखे तुम्हारे
न कोई बाहन होगा न हाथ, ये चलेंगे किसके सहारे?
हमारे ब्रह्मोस से न बचेगा, न रहेगी किसी की जान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान |
आतंक पल रहा है पाकिस्तान के हर गाँव शहर में
कराची लाहोर के कोने कोने, स्वतंत्र खंड काश्मीर में
खोदा गड्ढा भारत के वास्ते, बनेगा वही पाक का मजार
आहिस्ता आहिस्ता अब होंगे, पाकिस्तान के टुकड़े हज़ार
उन सबसे बेखबर हो, पाकिस्तान के तुम हुकुम रान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान|
©कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday 20 September 2016

क्षमा (कविता)

बुद्ध, जैन, सिख, ईशाई, हिन्दू , मुसलमान
सबका मत एक ही है, क्षमा ही महा दान |

हर धर्म मानता है क्षमा, शांति का है मूल
जानकर भी फैलाते नफरत, क्यों करते यह भूल?

त्यागना होगा खुद का स्वार्थ, करके अंगीकार
त्यागना होगा भेद भाव, धन जन का अहंकार |

धर्म के नाम से धंधा कर, बोते हैं विष वेल 
क्षमा-अमृत, ईर्ष्या-विष में नहीं है कोई मेल |

होते सच्चे धर्मात्मा, मन से सुन्दर क्षमाशील
सुदृढ़ विश्वास, प्रवुद्ध, उदार, असीम सहनशील |

उत्तम गुणी परोपकारी जो, होते जगत में क्षमावान
क्षमा मांग कर सबसे, करते सबको क्षमा दान |

होगा जब हर व्यक्ति क्षमावान, शांति होगी देश में
हिंसा, द्वेष, ईर्ष्या का स्थान, नहीं रहेगा ह्रदय में |

सामर्थ्यवान और बुद्धिमान का क्षमा है उत्तम गुण
कायर, कमजोर और बुद्धिहीन होते है सदा निर्गुण |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Sunday 18 September 2016

दोहे - (हिन्दी)

अर्ज करो भगवान से, वे हैं बड़े महान |
सफ़ल करे हर काम में, सबको देते ज्ञान ||

गए नहीं गर स्कूल तुम, आओ मेरे पास |
उन्नति होगी वुद्धि की, छोडो ना तुम आस ||

वर्णों का परिचय प्रथम, बाकी उसके बाद |
याद करो गिनती सही, होगे तुम आबाद ||

पढ़ो लिखो आगे बढ़ो, करो देश का नाम |
पढ़ लिख कर सब योग्य बन, करना विशेष काम ||

कभी नष्ट विद्या नहीं, होता है तू जान |
अनपढ़ लोगों के लिए, दुर्लभ होता ज्ञान ||

‘अ’ से अजगर ‘क’ से कलम, तनो ’त’ से तलवार |
सरहद पर जो हैं खड़े, कर रिपु का संहार  ||

योद्धा कभी न मानता, रण में अपनी हार

रक्षक हो तुम देश के, हो तुम अग्नि कुमार ||

कालीपद 'प्रसाद'

Saturday 17 September 2016

कर्मणि अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

कर्मणि अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन 

भाग इंसान भाग
तेरा भाग्य तभी उठेगा जाग,
सुस्त पड़ा सोता रहेगा
यह जग तेरे आगे निकल जायगा |
यह शरीर मिला है तुझे
इसका कुछ कर्म है
हर अंग का कुछ धर्म है
उसका तू पालन कर |
श्रीकृष्ण ने कहा,
“बिना फल की इच्छा
तू कर्म कर .......”
किन्तु बिना फल की इच्छा,
तेरी कर्म करने की इच्छा जायगी मर |
इसीलिए तू फल की इच्छा कर
और कुछ तो कर्म कर !
जगत में .....
तू है एक विद्यार्थी
सदा एक शिक्षार्थी,
पढ़ना, लिखना, सीखना
फिर हर परीक्षा में पास होना
लेकर प्रभु का नाम
है यही तेरी नियति, तेरा काम |
परीक्षा कक्ष में ...
जब तक कापी कलम
तेरे हाथ में हैं,
सब कुछ तेरे वश में हैं |
जो मन करे, तू लिख
न मन करे, न लिख
पर ध्यान रख
जैसा लिखेगा
वैसा फल मिलेगा...
कापी तूने निरीक्षक को दिया,
तेरे हाथ से सब कुछ निकल गया |
अब सब कुछ परीक्षक के हाथ में है |
जितना अंक देता है,
परीक्षा कक्ष में किये
वही तेरा कर्मफल है |
गलत मत समझ तू
श्रीकृष्ण ने सही कहा है,
तेरा काम परीक्षा देना है
परीक्षक का काम फल देना है;
परीक्षा देने(कर्म) का अधिकार
तेरे पास है,
फल देने का अधिकार
परीक्षक के पास है |
सबको अपने कर्मों का
सही फल मिलता है
“जैसा कर्म करता इंसान
वैसा फल देता भगवान् ” |
© कालीपद ‘प्रसाद

Wednesday 14 September 2016

दोहे - आज का लोकतंत्र



प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज
वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज|
वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश
परदेशी हम देश में, लगता है परदेश|
लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग
हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग|
हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद
अंग्रेज भी किये नहीं, तू सुन अंतर्नाद|
संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार
स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार|
बना कर लोकतंत्र को, खुद की अपनी ढाल
लूट रहे नेता सकल, जनता का सब माल|
हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान
विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान?
प्रजा करे अब फैसला, करे साफ़ परिवार
जनता से मंत्री बने, मिले राज अधिकार |
© कालीपद ‘प्रसाद’