नेता चरित्रम
२२१ १२२२ २२१ १२२२
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क्यों साँप चिता अजगर से लोग बिचलते
हैं
इस मुल्क के’ नेता पूरा देश
निगलते हैं |
भाषण नहीं’ देते रिपु का दोष
बताते सब
हर बात में नेता घातक जह्र
उगलते हैं |
अब देख लड़ाई चारो सिम्त फरीकों
में
दुर्नीति को’ अपना कर दुश्मन को’
कुचलते हैं |
इस मुल्क के’ सब रहबर बेपीर तहे
दिल से
मासूम सरल सब जनता को सदा’ छलते
हैं |
सब झूठ कहीं ना सच का नाम निशाँ
उसमे
गिरगिट से’ जियादा नेता रंग
बदलते हैं |
हर बार की’ है चोरी सरकार के’
बैंकों से
चोरी गयी’ पकड़ी तो गुस्से में
उबलते हैं |
बेपीर सभी रहबर है आग लगाते हैं
मासूम प्रजा को वो हर बार
बिदलते हैं |
कालीपद 'प्रसाद'