Tuesday 26 November 2019

ग़ज़ल

नेता चरित्रम 
२२१  १२२२  २२१  १२२२
क्यों साँप चिता अजगर से लोग बिचलते हैं
इस मुल्क के’ नेता पूरा देश निगलते हैं |

भाषण नहीं’ देते रिपु का दोष बताते सब
हर बात में नेता घातक जह्र उगलते हैं |

अब देख लड़ाई चारो सिम्त फरीकों में
दुर्नीति को’ अपना कर दुश्मन को’ कुचलते हैं |

इस मुल्क के’ सब रहबर बेपीर तहे दिल से
मासूम सरल सब जनता को सदा’ छलते हैं |

सब झूठ कहीं ना सच का नाम निशाँ उसमे
गिरगिट से’ जियादा नेता रंग बदलते हैं |

हर बार की’ है चोरी सरकार के’ बैंकों से
चोरी गयी’ पकड़ी तो गुस्से में उबलते हैं |

बेपीर सभी रहबर है आग लगाते हैं
मासूम प्रजा को वो हर बार बिदलते हैं |

सिम्त ओर ,फरीक =पार्टी ,दल

कालीपद 'प्रसाद'

Thursday 21 November 2019

ग़ज़ल


२१२२ १२१२  २२ (११२)
रहनुमा कोई बेकसूर नहीं
उस जहन्नुम में’ बेहुजूर नहीं |

बोलता कम मगर गुरूर नहीं
क्या कहूँ उनका’ वो कसूर नहीं |

शर्म से दोहरा हुआ जाता
झेंपू’ है किन्तु बेहसूर नहीं |

नाक ऊपर इताब उनका है
किन्तु नादान नासबूर नहीं |

प्रेम में भूख ख़त्म हो गई’ है
कुम्हलाये वदन में नूर नहीं |

बावफा संग छोड़ कर गई’ है  
प्रिय मिलन अब अनेक दूर नहीं |

बाग़ की सब कली हलाल हुई
रिक्त जन्नत मे कोई हूर नहीं |  
शब्दार्थ :-
बेहुजूर=गैरहाजिर, बेहसूर= औरतों की
ओर आकर्षित न होने वाला
नासबूर=अधीर अधैर्यवान 

कालीपद 'प्रसाद'

Saturday 16 November 2019

ग़ज़ल


        तरही ग़ज़ल 
जिस राह से भी’ गुजरा है कारवाँ हमारा
भारत वतन वही है, हिन्दोस्तां हमारा |

ऐ पाकि, चीन सुनलो हिन्दोस्तां हमारा
अब भूलकर कभी ना लो इम्तिहाँ हमारा |

हर डाल पर बसा पंछी देश का दुलारा
हर डाल पर बसेरा है, आशियाँ हमारा |

तैनात शूरवीरों की फ़ौज सरहदों पर
भारत के पासबाँ जो, वो पासबाँ हमारा |

हम है अनीक, भारत की भक्ति है दिलों में
आसां नहीं मिटाना नाम-ओ–निशां हमारा | *

सारे जहां है’ वाक़िफ़ हिन्दोस्तां की’ गरिमा
अब तुम भी’ जान लो गौरव दास्ताँ हमारा |

उस म्यानमार से इस गुजरात तक हमारे
कश्मीर की हवा, धरती आसमां हमारा |

कश्मीर का विलय ‘काली’ फायदा किया है
अब भेद भाव ना झगडा, दरमियाँ हमारा |

 कालीपद 'प्रसाद'

Friday 15 November 2019

ग़ज़ल


२२१ २१२१ १२२१ २१२
मिलकर सभी ने मत दिया सरकार के लिए
हो कुछ बिशेष जनता’ के’ उपकार के लिए |

इस इश्क से बहुत हुए’ बरबाद इस जहां
हिम्मत जरुरी’ इश्क के’ इज़हार के लिए |

तू जो गई तो’ आँख में’ अब नींद ही नहीं
आँखे तड़प रही ते’रे’ दीदार के लिए |

दिलदार बेवफा दिया’ धोखा मुझे कभी
पर दिल धड़कता’ है उसी’ दिलदार के लिए |

जो निष्कपट उन्हें ही’ मिला दंड सर्वदा
क्यों ना कठोर दंड हो मक्कार के लिए |

हक़ के लिए कभी नहीं आगे बढ़े कोई
क्यों ना लडे अभी सही अधिकार के लिए |

यह जन्म मृत्यु चक्र बनाया बशर को’ दास
क्या आयगा कभी कोई उद्धार के लिए ?

कालीपद 'प्रसाद'

Monday 11 November 2019

ग़ज़ल


१२१२  ११२२  १२१२  २२ (१)
उन्हें अतीव ख़ुशी क्यों क़ज़ा के’ आने की
खबर मिली नहीं’ उस बेवफा के आने की |

मुसीबतों से’ अभी हो गई मे’री यारी
है’ इंतज़ार भयानक बला के’ आने की |

बहुत कसम लिए’ वो इन्तखाब के पहले
चनाव में गए सौगंध खा के’, आने की |

गली गली के’ हुए हैं मलिन हवा पानी
उमीद कैसे’ करे पाछुआ के‘ आने की |

रहीम राम वही है, वो’ बुद्ध गुरुनानक
नवीन रूप में प्रतीक्षित खुदा के’ आने की |

समाज को अभी’ अब इंतज़ार है कुछ और
रहीम राम के’ वो काफिला के’ आने की |

रहीम राम मिले जब, गले मिले ‘काली’  
रहीम राम कहे दिल मिला के’ आने की |

कालीपद 'प्रसाद'

Saturday 9 November 2019

ग़ज़ल


१२२२  १२२२  १२२ 
दिलों में जब वफ़ा का स्थान होगा
वही इंसान का ईमान होगा |

हमारे वीर का कुर्बान होगा
जवानों पर हमें अभिमान होगा |

जितेंगे हम पराजय शत्रु का है
हमारे देश का सम्मान होगा |

विजय का यह तिरंगा ना झुकेगा
वही तो देश का पहचान होगा |

शहीदों के घरों में जगमगाहट
अदू के घर सदा बीरान होगा |

विजय डंका बजेगा आठ यामें
सभी के चेहरे पर मुश्कान होगा |

न कोई भूख तृष्णा से मरेगा
यही भारत सुखद गुलदान होगा |

सदाचारी हितैषी लोग हों जब
विदेशों में तभी गुणगान होगा |

सभी सहयोग गर ‘काली’ करे तो
निवासी को सुखद अहसास होगा |
कालीपद 'प्रसाद'


Thursday 7 November 2019

ग़ज़ल

१२२२  १२२२  १२२
निखारो खूब इस काया-मकां को
दुबारा तो नहीं आना जहां को |

लकीरों के भरोसे काम ना कर
मिटा दो हाथ के सारे निशां को |

खजाना लूटना इतना सहज था ?
मिलाया साथ में उस पासबां को |

बहुत तो बोलते थे, मौन क्यों अब ?
हुआ क्या रहनुमा के उस जुबां को ?

गरीबो में भी’ प्रतिभा होती’ है पर
उपेक्षा तो धनी करते खूबियाँ को |

युगों से यह चला आया जगत में
कहाँ सुनता गरीबों की फुगाँ को ?

मनाया जश्न अपनी जीत की सब
सूना क्या मुफलिसों की हिचकियाँ को ?

विजय से खुश सभी, है जश्न में मग्न
भुला ‘काली’ मदद की दास्ताँ को |

कालीपद 'प्रसाद'

Monday 4 November 2019

ग़ज़ल

१२२२  १२२२ १२२
सिवा श्रम क्या मिलेगा देहकां से
उगाता है फसल वो शादमां से |
हमेशा झेलते जो रात दिन दुख
झलकता दुख किसानों के फुगाँ से|
कभी ना हौसला खोना यहाँ तुम
गुजरना है सभी को इम्तिहाँ से |
विदेशों में कभी मिलते किसी को
सभो को प्यार होता हमजुबां से |
भले हो शत्रु यह सारा ज़माना
कभी ना दुश्मनी हो राजदां से |
सनम तो है मिजाजी बच के’ रहना
रहो तुम दूर उनकी सरगिराँ से |
पराजय पाकि का तकदीर, सुन लो
कभी तो सीख लें इन पस्तियाँ से |
नहीं डर चोर डाकू का यहाँ अब
बना है गुप्त खतरा पासबाँ से |
मना था फूल चुनना बाग़ से, पर
चुराया फूल डाकू बागबाँ से |
मुहब्बत जख्म से बेजान “काली”
मिलेगा क्या अभी इस नीमजां से |
शब्दार्थ :- देहाकाँ = किसान
शादमां =ख़ुशी, फुगाँ =चीत्कार,रोदन
हमजुबां= एकभाषी, सरगिराँ=गुस्सा
पस्तियाँ =पराजय,पासबाँ=पहरेदार
नीमजां =अधमरा
 कालीपद 'प्रसाद'

Saturday 2 November 2019

ग़ज़ल


२१२२  १२१२  १२२
सोच में दोष, शर्मसार है दिल
दोष को काटता, कटार है दिल |

प्यार में प्यार ही दिया तुझे मैं
हिज्र में फ़क्त गम गुसार है दिल |

प्यार को यदि कभी मना किया है
तो हसीनों ! गुनाहगार है दिल |

जब कभी प्यार में हुई कमी तो
दीख जाता कि बेकरार है दिल |

लो ! मुहब्बत नहीं है नसीब में
क्या कहूँ यार दागदार है दिल |

इश्क करना गुनाह हो गया है
गल्त फहमी का अब शिकार है दिल |

और ऊपर उछालो’, गेंद है यह 
अब समझ लो लिया उधार है दिल |

धोखा’ खाया हुआ शिकस्त ‘काली’
बन गया खूब होशियार है दिल |

कालीपद 'प्रसाद'

Friday 1 November 2019

गीतिका



जिंदगी जो जी रहा हूँ वह मेरा आज है
कर्म जो करता हूँ उसी पर बेशक नाज़ है |

जनता भोली भाली बेचारी गाय समान
रहनुमा बने ये आदम सब सट्टेबाज़ है  |

परिवर्तन प्रकृति का नियम, प्रगति का मूल वजह
बदली है रीति-रिवाज़, बदला यह समाज है |

सूर्य देता रश्मि, कवि फैलाता अक्षय ज्योति
सूर्य, शायर नहीं तारीफ के मोहताज़ है |

आज लिख रहा हूँ, आज शायद कोई न पढ़े
एक न एक दिन होगा पढने का आगाज़ है |

कविता, मुक्तक ग़ज़ल, गीतिका, दोहे छंद सब
लिखे सभी दिल से हम, उसीपर बहुत नाज़ है |

आयगा एक दिन जब इनको कोई पढेगा
उनको मज़ा आयगा ‘काली’ को अंदाज़ है |

कालीपद 'प्रसाद'