Sunday, 31 March 2019

ग़ज़ल

शिक्षा  नसीब होती, कहना जरूर आता
गर  धूर्तता  भीहोती, छलना जरूर आता |

इस देश के सभी नेता झूठ पर टिके हैं
गर देश प्रेम होता, हटना जरूर आता |

प्रासाद के लिए नेता झोपड़ी जलाते
निस्वार्थ रहनुमा को जलना जरूर आता |

गर  जिंदगी मेंसुख का सूरज कभी उग आता
तो फिर कभी कभी तो हँसना जरूर आता |
आजन्म जोखिमों से हम खेलते रहे हैं
होते अगर मुलायम डरना जरूर आता |

गर चाहते सभी नेता जात पात से मुक्ति
तब फिर समाज को भी ढलना जरूर आता |

कालीपद 'प्रसाद'

Thursday, 28 March 2019

गीतिका

  हमेशा प्रेम पाना चाहता हूँ
    तुम्हें अब मैं बताना चाहता  हूँ |

    बहुत झेले दुखों के क्षण निराले
    अभी तो मुस्कुराना चाहता  हूँ |

    नयन  से  नीर बहना थम गया है
    खुशी में गुनगुनाना चाहता  हूँ  |

    छुपाए  जख्म जो दुनिया हमें दी
    निशानी को मिटाना चाहता हूँ |

    निराली जिंदगी है जान लो यह
     सभी को अब  हँसाना चाहता  हूँ |

      पीड़ा, कष्ट कोई, जिंदगी में
    खुशी का इक जमाना चाहता  हूँ |

    गगन में चाँद  सूरज सब  चमकते
    नखत बन टिमटिमाना चाहता  हूँ  |

कालीपद 'प्रसाद'


Wednesday, 27 March 2019

हम कहाँ जा रहे हैं ?

हम कहाँ जा रहे हैं ? दुनिया विकास की राह पकड़, आगे ही बढ़ी जा रही है, विश्व मंच पर ज्ञान विज्ञान, की अब तारीफ हो रही है |
उद्योग चीन के घर घर में, अब जोरों से पनप रहे हैं चीन में बने बम ओ बाजी, अब हिंदुस्तान में फट रहे हैं |
हिन्दोस्तां विज्ञान छोड़कर, मंदिर मस्जिद बना रहे हैं, विकास का मार्ग छोड़ कर, हम मध्य युग में जा रहे हैं |
टीवी चैनल दिन और रात सदाचार का करते कलरव किंतु देश में बलात्कार का, होता रहता प्रतिदिन तांडव |
आशा, राम-रहीम को सुना, है कोई लाभ प्रवचनों से ?
जनता की बर्बादी होती, चैनल बनते धनी इसी से |
आर्थिक उन्नति सभी का लाभ, पश्चिम में मुद्दा होता है, भारत में पार्टी चुनाव में, घूस का प्रस्ताव रखता है |
मुफ्त गैस फिर ऋण माफ़ कहीं, विकास को भूला देते हैं, अनपढ़, निरीह, बेवस मानुष, भीख लेकर वोट देते हैं |
कलीपद 'प्रसाद'

Tuesday, 26 March 2019

ग़ज़ल

सताकर हमें तुम रुलाना नहीं
जलाकर अगन अब बुझाना नहीं|
किया है मुहब्बत तुम्ही से सनम
वफा चाहता हूँ भुलाना नहीं |
नजर से नजर को मिलाकर कभी
कसम ली, नजर अब चुराना नहीं |
लुकाते छुपाते यहां तुम मिले
मिले तो सही पर ठिकाना नहीं |
मुहब्बत करूं तो बताना बुरा
करूं क्या कहो तुम, छिपाना नहीं |
मिलन के दिनों की’ यादें बची
निशाने अभी तुम मिटाना नहीं |
मिलेंगे कभी फिर यही आस है
ये' अरमान दीपक बुझाना नहीं |
कालीपद 'प्रसाद'

Saturday, 23 March 2019

ग़ज़ल

दोस्तों , करीब दो साल से   मेरा ब्लॉग dormant था क्योंकि मिस align हो गया था | अभी ठीक कर पाया हूँ | आशा है अब नियमित रूप से  रचनाओं आदान प्रदान एवं टिप्पणी कर पायेंगे ,टिप्पणी के लिए धन्यवाद भी दे पायेंगे | अभी तक मेरे ब्लॉग में ये बटन काम नहीं कर रहा था | नमस्कार !



इश्क ज्वार में सदा आदमी लुटा गया
बेवफा सनम मुझे ख्वाब में जगा गया |

प्यार की कसम सनम ने ली’ थी कई दफा
क्या कहूँ अभी, मुझे छोड़ कर चला गया |

स्वार्थ में निमग्न है, आदमी निडर सदा
यह उथल-पुथल धरा पर, यही डरा गया |

पेड़ हीन यह धरा खौफनाक जान लो
काटना सही नहीं, जलजला दिखा गया |

जिंदगी में मौज मस्ती व दिल्लगी की थी
प्रेयसी की मौत ने नींद से जगा गया |

दर्द से कराह गहरी निकल रही सदा
मर्म बीच में विरह शूल जो चुभा गया |

बिन प्रिया तमाम दुनिया तन्हा  क्यों हो गई
वक्त तेरे गाल ‘ काली’ चपत लगा गया | |
कालीपद 'प्रसाद'