माँ बाप की दुलारी
बेटी
सबकी आँखों की तारा
बेटी
कभी झूले में झूलती
बेटी
चीखकर शोर मचाची
बेटी |
माँ के आँचल में
छुपती बेटी
तोतली बोली बोलती
बेटी
नखरे करती प्यारी
बेटी
लाड जताती लाडली
बेटी |
नाजों से पली नाजुक
बेटी
बड़ी होकर हुई जवान
बेटी
पढ लिखकर हुई
शिक्षित बेटी
साजन घर जाने तैयार
बेटी |
साजन आया लेकर प्यारी डोली
विदा होकर बेटी
ससुराल चली
बहन-भाई, पिता-माता रो कर
बोली
खुशियों से भरी रहे
तुम्हारी झोली |
ससुराल में जब उतरी
डोली
सास ने पूछा बहु तुम
क्या लायी ?
मेरे लिए ,धर के जो
साजो सामान
दिखलाओ अभी ,सभी
पड़ोसन आयी!
बहू बोली "माँ...........
चीज जो टूटने फूटने
वाली
ऐसे कोई चीज मैं
नहीं लाई
खुशबु तो दिखाई नहीं
देता है
पर वह सबका मन मोह
लेता है |
आपके लिए मेरे माँ
बाप की दुआएँ लायी
श्रद्धासुमन से सजी
पूजा की थाली लायी
श्रद्धासुमन अर्पित
करुँगी आपके चरणों में
पूजा करुँगी आपकी जब
तक जान है शरीर में |"
पड़ोसन ने कहा किस
भिखारिन को लाई
साथ में कुछ भी दहेज़
नहीं लाई
मेरी बहु घर भर
सामान लाई
फिर भी मैं उसे
मायके को भगाई|
सास पड गई सोच में
,कुछ समझ ना आयी
पड़ोसिन के सामने हो
रही थी नाक कटाई
दूल्हा आया सामने
बचाने सास बहू को ,
”मौसी” शुरू किया
कहना संबोधन कर पड़ोसिन को |
आपकी बहू नहीं करती
नौकरी
दहेज़ लाई होगी कोई
पांच सात लाख की
मेरी माँ की बहू नौकरी
करती है,
साल में कुल चौदह
लाख कमाती है|
लेन देन की मामले
में आप थोड़ी कच्छी हैं
रिश्ते निभाने में
मेरी माँ बहुत पक्की है
माँ हमारी बहुत
अनुभवी जौहरी हैं
तभी तो उसको माँ ने
अपनी बहु बनाया है |
कुछ सालों में वह करोड़पति होगी
हमको भी वह करोड़पति
का पति बनाएगी
आपके घरके सब साजो
सामान पुराने हो जायेंगे
हम नए घर में नए
सामान के साथ ख़ुशी मनाएंगे |
किन्तु ........
मौसी, चाची तुम सब
सुनो ध्यान से
एक बात और तुम सबको
बताना है
हमारे देश का कानून
यह कहता है
दहेज़ लेना/देना एक
दंडनीय अपराध है |
बहू का मूल्य ना
आंको नौकरी ना दहेज़ से
आंको उसके सुविचार
,सद्व्यवहार ,संस्कार से
दहेज़ की बात करके ना
उसके दिल को दुखाओ
और ना क़ानून के फंदे
में अपनी गर्दन फंसाओ |
गर उसको समझो तुम
अपनी बेटी
वह सदा हो जायेगी
तुम्हारी बेटी
तुम्हारा स्नेह,प्यार,ममतामयी
गोद पाकर वह
माँ बाप से
विछुड़नेका दुःख भूल जाएगी वह |
धरती से उखाड़कर एक
पौधे को
जब रोपते हो कहीं नए
खेत में
उसको भी समय लगता है
कुछ
नई धरती पर जड़ जमाने
में |
बहू है नयी ,जगह नई
है ,नया है घरद्वार
हँसकर करो स्वागत
उसका,लगे उसको अपना घर
एक घर छोड़कर ,दुसरे
घर में बहू बनकर आती है
सरबत में शक्कर ज्यों
घुलकर मिठास वह फैलाती है|
कालीपद "प्रसाद"
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