प्रकृति है निरंतर ,न कुछ नया न कुछ पुराना
न कोई घडी है न कोई चौघडी
प्रकृति के लिए न कोई साल नया
प्रकृति नहीं मनाती नया साल का उत्सव
वसन्त में खुश होती प्रकृति ,हंसती फूलों की हँसी
शरद, हेमन्त शांति के मौसम ,धरती रहती शांत
आप सबको नया वर्ष २०१४ मुबारक हो |मंगलमय हो |
कालीपद "प्रसाद "
प्रकृति चलती है अपनी गति से
हर पल कदम बढाती है धीरे से
करती है समय का माप दिन रात्रि से
छै मौसम में भ्रमण करती अपनी गति से |
न कोई घडी है न कोई चौघडी
न कोई दिन नया ,न कोई रात पुरानी
दिन रात्रि आते जाते हैं एक के बाद एक
बीत गए दिनरात्रि ,सप्ताह, माह, वर्ष अनेक |
प्रकृति के लिए न कोई साल नया
न कोई साल प्रकृति मानती पुराना
प्रकृति जानती केवल बीता हुआ समय है
वर्तमान आज है और भविष्य काल है |
प्रकृति नहीं मनाती नया साल का उत्सव
किन्तु दिखाती है, हर मौसम का तेवर |
ग्रीष्म में तड़पाती जीव को ,सुखाती है धरती
खुलकर बरसती पावस में ,होती जलमग्न धरती |
वसन्त में खुश होती प्रकृति ,हंसती फूलों की हँसी
फुल फुल घुमती तितली, होकर मधु की प्यासी |
शीत का मौसम है कष्टदायी तो कहीं है सुहानी
बदन में धुंधला चादर, मस्तक पर सफ़ेद ओढ़नी|
शरद, हेमन्त शांति के मौसम ,धरती रहती शांत
शुभ्र कपसिले बादल उड़ते जाते हैं दिग दिगन्त |
नया क्या है ,क्या है पुराना?मौसम आते जाते है
जाने वाले की विदाई न आनेवाले का स्वागत करते है |
मानव मनाते जश्न नया साल की भूलकर प्रकृति को
आडम्बर का प्रदर्शन है , मज़ाक उड़ाता गरीब को |
मानव निर्मित तिथि-पत्र मान, नव वर्ष तुम मनाना
पर गरीब जो है ,अपने ख़ुशी में उन्हें भी शामिल करना |
आप सबको नया वर्ष २०१४ मुबारक हो |मंगलमय हो |
कालीपद "प्रसाद "
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