Saturday, 29 September 2018

एक विचार


“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना…”
कितनी अच्छी  पंक्ति है, किंतु क्या सच में मजहब बैर करना सिखाता नहीं है ? सदियों से  इतिहास साक्षी है एक धर्म के लोगों ने दूसरे धर्म के लोगों के ऊपर बर्बरीक अत्याचार किया है | जितनी लड़ाई मजहब की  दुहाई देकर की गई, शायद किसी और वजह से इतनी लड़ाई नहीं लड़ी गई | इसलिए एक प्रश्न यह उठता है --क्या मजहब बच्चे को इंसान बनाता है या मजहबी बनाता है ? क्या मजहबी बनना जरूरी है या इंसान बनना जरूरी है ? इस पर आप अपना विचार जरुर प्रकट करें  | कम से कम सहमत है या असहमत हैं , इतना लिख दे लेकिन लिखे जरूर | (मित्रों मेरे कमेंट बॉक्स में रिप्लाई बटन काम नहीं कर रहा है| मैं रिप्लाई देता हूँ वह पब्लिश नहीं होता है |क्या कोई मुझे बता सकता है कि कौन सा ऑप्शन चूज करना है )


एक विचार

         सदियों से यह विश्वास चला रहा है कि  बच्चा जिस धार्मिक परिवार में जन्म लेता है, बच्चे का धर्म भी वही होता है ,जैसे हिंदू परिवार में जन्मे बच्चे हिंदू , मुस्लिम परिवार में जन्मे बच्चे मुस्लिम होंगे क्रिश्चियन परिवार में जन्मे बच्चे, क्रिश्चियन होंगे |  बच्चे का परवरिश भी धर्म के आधार पर किया जाता है और उस से आशा की जाती है कि वह भी उसी धर्म का अनुयाई बने | लेकिन ये धार्मिक लोग पूर्वाग्रही होकर यह भूल जाते हैं कि बच्चा एक इंसान ( मानव) के रूप में जन्म लिया है | वह मानव या इंसान सबसे पहले हैं, बाद में और कुछ | तथाकथित  धार्मिक लोग धर्म की वास्तविक परिभाषा ही नहीं जानते | वे तो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने ग्रुप को बड़ा बनाने के चक्कर में किसी को भी उस धर्म में शामिल करने में जी तोड़ कोशिश करते हैं | इसके लिए उनके धार्मिक गुरु उन्हें प्रोत्साहित करते हैं | पूजा पाठ, आराधना, इबादत,सजदा  मानव धर्म का अंग नहीं है , न इसके लिए किसी को बाध्य करना धर्म है | जिसमें शांति, अहिंसा, दया, संवेदना इत्यादि मानवीय गुण है वहीं सच्चा मानव है, वही इंसान है | ये गुण  मानव धर्म का अंग है | तथाकथित धर्म भी इन्हीं गुणों का गान किया करते हैं | धर्म के नाम से अगर अहिंसा किया जाए या शांति भंग किया जाए तो वह धर्म नहीं हो सकता  और ऐसे करने वाले व्यक्ति धार्मिक व्यक्ति या अच्छा इंसान तो हो नहीं सकता |संवेदनशील होकर अपने परिवार, अपने देश के लिए निर्धारित कर्म का पालन करना ही इंसान का धर्म है|  वृद्ध माता पिता को वृद्ध आश्रम में छोड़ कर समाज सेवा करना धर्म नहीं है पाखंडी है| ना तो वह मानव धर्म को निभाता है ना व्यक्तिगत धर्म को | कहते हैं कि पिता  माता इस धरती पर साक्षात देव देवी का स्वरूप है| उनके जीवित रहते हुए उनकी सेवा ना करके मरने के बाद उनकी याद में दान दक्षिणा करना भी लोक दिखावा और पाखंडी है |
धर्म का उद्देश्य होता है बच्चे को एक अच्छा इंसान बनाना , उसे मानवतावादी बनाना  | प्रेम, शांति सहानुभूति संवेदना आत्मीयता जैसे मानविक गुणों से संपन्न व्यक्ति ही सच्चा इंसान है, वही मानव है  | घृणा, नफरत, जात-पात,ऊंच-नीच, भेद-भाव के दुर्गुणों का मानवतावाद में या इंसानियत में कोई स्थान नहीं है | कोई धर्म में भी इनका स्थान नहीं है| जो इंसान अपने को धार्मिक कहता है और साथ में  इन दुरगुणों का प्रश्रय देता है वह किसी हालत में धार्मिक तो नहीं हो सकता और इंसान तो कतई नहीं |सच्चा मानवतावादी ही सच्चा इंसान है| इसलिए धार्मिक बनना  जीवन का उद्देश्य नहीं है| जीवन का उद्देश्य इंसान बनना है अर्थात धार्मिक बनना जरूरी नहीं है परंतु इंसान बनना जरूरी है |

कालीपद प्रसाद'

Thursday, 20 September 2018

ग़ज़ल

राही’ तो राह चला करता है
डाह में दुष्ट जला करता है |

चाँद सा चेहरा’ जुल्फों में ज्यूँ 
चाँद बादल में छुपा करता है |

स्वच्छ आकाश में’ इक दो बादल
ज़ुल्फ़ का मेघ हुआ करता है |

प्यार में प्यार जताना हक़ है
प्रेमी इस राह चला करता है |

जख्म दिलदार दिया है, तो क्या
ज़ख्म हरहाल भरा करता है |

काम पूरा हो’ न हो,पर सबकी
रहनुमा बात सुना करता है |

खूबसूरत है.वफ़ा भी है क्या ?
वस्ल में शक्ल दगा करता है |

दिल जहाँ भग्न है, उस रोगी पर  
प्यार अक्शीर दवा करता है |

बेवफा प्रेयसी से गर हो प्यार 
प्यार में शूल चुभा करता है |

बेवफाई हुई इक दिन काली”
प्यार का बुर्ज़ ढहा करता है |


कालीपद 'प्रसाद 

Thursday, 13 September 2018

कविता

मात्रा १६,१५,=३१ , अंत २१२ 
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मीठी मीठी हिंदी बोलें, जन मानस को मोहित करे
सहज सरल भाषा हिंदी से, हम सबको संबोधित करे |
रंग विरंगे फूल यहाँ है, यह गुलदस्ता है देश का
हिंदी के सुगंध फैलाकर, भारती को सुगन्धित करे |
गलती होगी सोचो मत यह, बोलो बेधड़क होकर तुम
गलती करे अहिन्दी भाषी, गलती को संशोधित करे |
भिन्न भिन्न भाषा अनेक, उत्तर दक्षिण ,पश्चिम पूर्व
हिंदी का प्रचार प्रसार हो, सभी को प्रोत्साहित करे |
पूजा चाहे कोई भी हो, काली दुर्गा शंकर विष्णु
हिंदी में सब मंत्र पढ़ें औ, फूल अर्घ सब अर्पित करे |
घर हो या दफ्तर या होटल, हिंदी में ही सब बात करे
आपसी बात हिंदी में ही, अपना विचार प्रेषित करे |
कालीपद ‘प्रसाद’

Wednesday, 12 September 2018

ग़ज़ल


जमाने बाद देखा, प्यार पाने का ख़याल आया
मोहब्बत के तराने गुनगुनाने का खयाल आया |

अभी तक शर्म का पर्दा उठा है, नाक के ऊपर
कुतूहल से उसे अब, आजमाने का खयाल आया |

मिला है वक्त वर्षों बाद, आई दूर से जानम
तमन्ना भी जगी है, प्यार जताने का ख़याल आया  |

सनम के चेहरे में  मंद मुस्कान और आंखें बंद
यही सब देख मुझको मुस्कुराने का खयाल आया |

मिली है दिलनशी मेरी, कयामत बाद हमसे फिर
कहानी जो अधूरी थी, सुनाने का ख़याल आया |

दिलों में कुछ जगह भी थी, उन्हें अनुमान था निश्चित
मेरे दिल में भीअब इक,  घर बसाने का ख़याल आया |

बहारें वक्त पर आई नहीं, पर जीस्त बेपरवाह
अजल के साथ अब रिश्ते निभाने का ख़याल आया |

सनातन कॉल से जो लोग नीचे थे, उन्हें अब क्या
खुशी से तो नहीं, उनको उठाने का खयाल आया |

सियासत दाँव में सब पार्टियां देते प्रलोभन भी
सभी को अब  मोहब्बत ही, लुटाने का ख़याल आया |

कभी हमसे नहीं होती खफा वो दिलनशी मेरी
हुई है आजकालीतो मनाने का खयाल आया |

कालीपद 'प्रसाद'

Monday, 10 September 2018

ग़ज़ल

भाई देकर भाई से’ अलग क्यों कर दिया ?
कभी इकट्ठा ना रहे ऐसा क्यों घर दिया ?
धरती पर्वत तारे विस्तृत अंबर दिया
पूछा प्रश्न हजार नहीं तू उत्तर दिया |
सरकार नरम है, सैनिक भी शरीफ हैं
रक्षक सेना को तुम मार क्यों’ पत्थर दिया ?
शब हो या दिन आवाज गूंजती पल पल
पत्थर गोली बरस रहा क्या मंजर दिया !
देव सभी को अमर किया तू , किंतु बशर
आत्मा है'अमर पर काया क्यों नश्वर दिया ?
सच, मानव जीवन देकर उपकार किया
अपना जीवन संवारने’ का अवसर दिया ?
इंसान किया है ग़फ़लत जीवन भर जब
गलती सुधार का तू मौका अक्सर दिया |
मुझको भेजा जग में करने काम भला
देना था सुख जीवन में, दुख क्यों भर दिया ?
जीवन काटा तेरे’ भरोसे अब कुछ कर
‘काली चमके रवि सम’ रब ने यह वर दिया |
कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday, 4 September 2018

जगत में क्यों सदा तनहा रहा हूँ ?

जगत में बारहा आता रहा हूँ
खुदा का मैं बहुत प्यारा रहा हूँ |
वफ़ा में प्यार मैं करता रहा हूँ
निभाया प्यार मैं सच्चा रहा हूँ |
मिले मुझसे यहाँ सब प्यार से यार
मुहब्बत गीत मैं गाता रहा हूँ |
खुदा की यह खुदाई है बहुत प्रिय
खुदाई देखने आता रहा हूँ |
नहीं है दोस्तों में फासला फिर
जगत में क्यों सदा तनहा रहा हूँ ?
हमेशा साथ हम मिलकर रहे पर
मुहब्बत में सदा प्याषा रहा हूँ |
सभी की जो जरुरत थी, मिटाया
लुटाने प्यार मैं दरिया रहा हूँ |
किया है अजनबी की भी भलाई
भलाई का सदा जरिया रहा हूँ |
बुढापा फ़क्त दुख का इक बहाना
दुखी की जिंदगी जीता रहा हूँ
किया है प्यार उसने प्राण भर कर
प्रिया का मैं सदा सजना रहा हूँ |
भुलाया दोष सबका, दोस्त ‘काली’
गिले सब भूलकर अपना रहा हूँ |
 कालीपद 'प्रसाद'

Monday, 3 September 2018

जागो उठो !


सुनो सुनो सब बच्चे प्यारे, यही अनसुनी एक कहानी
किस्सा है भारत वासी का, कुछ लोगों की नादानी |
फूट डालो और राज करो, यही नीति किसने अपनाई 
जात-पात, भेदभाव सबको, यही नीति ने भारत लाई |
अंग्रेज चतुर थे,तुरंत भाँपा, इनमें कितने कौन बुराई
एक-एक कर चुनचुन सारे, जिनकी नीति उन पर चलाई |
समाज बट गया वर्ग में जब, दो भाई में दरार आई
मर्म से मर्म की दूरी बढ़ी, ऊँच नीच खाई गहराई |
जाति,वर्ण,वर्ग,सभी दुश्मन, गुप्त रूप से रंग दिखाया
एक को दिया चैन की नींद, दूजे का सुख चैन चुराया |
अंग्रेज नहीं बदलाव किया, भारत की वो प्राचीन नीति
उससे फायदा उन्हें भी था, अपनाया दमनकारी नीति |
भारत है अब आजाद मुल्क, नीति मुल्क की है संविधान
इसकी तुम अब करना रक्षा, करना इसका सदा सम्मान |
यही दिलाया मान मर्यादा, हमारा किया मस्तक ऊंचा
सुरक्षित रहेगा संविधान, सर न किसी का होगा नीचा |
छेड़छाड़ इस संविधान से, कभी न तुम अब करने देना
यही तुम्हारी त्राण कवच है, इसकी रक्षा में सिर देना |
जान जाय कोई बात नहीं, संविधान की रक्षा करना
इसकी रक्षा में तन मन धन, अपना सभी कुछ लुटा देना |
सरहद पर सैनिक डटे हुए, रक्षा करते आक्रमणों से
चौकन्ना तुमको भी रहना, अंदर के सभी दुश्मनों से |
चुपके चुपके छुपकर करते, जयचंदों की उनकी टोली
खुद के घर को जलाकर कभी, खुशी खुशी खेली है होली |
वंचित,शोषित,पीड़ित जन सब, उठो खड़े हो अपने दम पर
आत्मविश्वास जगाओ अभी, हो जाओ तुम खुद पर निर्भर |
अधिकार नहीं मिला किसी को, हाथ जोड़कर माँगो न कभी
ताकतवर शक्ति छीन लेते, तुम भी छीनो झुकना न कभी |
यह देश है तुम्हारा, मालिक तुम्ही हो इस हिंदुस्तान के
दुश्मनों को भी रखना पास, अपने प्यार में कैद करके |
कालीपद 'प्रसाद'