Tuesday 21 July 2015

दो अजनबी !



चलते चलते अनन्त यात्रा के राह में
एक अजनबी से मुलाक़ात हो गई
कुछ दूर साथ-साथ चले कि
हम दोनों में दोस्ती हो गई |
कहाँ से आई वह ,मैंने नहीं पूछा
मैं कहाँ से आया ,उसने नहीं पूछा
शायद हम दोनों जानते थे
जवाब किसी के पास नहीं था |
अजनबी थे हम मिलने के पहले
अजनबी रहे हम,जब मिलते रहे
अलविदा के बाद भी अजनबी रहेंगे
जैसे अजनबी थे मिलने के पहले |
सफ़र कितनी लम्बी है?न वो जाने न मैं
छोटी सी इस जीवन-सफ़र में
हर कदम पर रही साथी वो मेरा
और उसका हम सफ़र रहा हूँ मैं |    
सुख-दुःख के हर पल को
दिल से लगाकर बनाया अपना
हम दोनों के मिलन का सफ़र
बन गया एक यादगार अफ़साना |


© कालीपद ‘प्रसाद ‘

Tuesday 7 July 2015

कटु सत्य (मृत्यु शय्या )



यह तो तय था
जिस दिन हम मिले थे
उससे बहुत पहले
यह निश्चित हो गया था
एक दिन हम मिलेंगे और
एक दिन तुम
मुझे छोड़ जाओगी
या मैं तुम्हे छोड़ जाउंगा ,
कौन किसको छोड़ जायगा
यह पता नहीं था l

इस कटु सत्य को
हम जानते थे ,
फिर भी हँसते थे,खेलते थे  
साथ मिलकर
एक दुसरे का
सहारा बनकर आगे कदम बढाते थे l
जीवन के सुख-दुःख के
हर एक पल को
एहसास करने की
कोशिश करते थे ,
कभी लड़ते थे ,झगड़ते थे
फिर मिलकर बतियाते थे ,
पर हमें पता नहीं था
परछाईं की भांति
काल हमारे पीछे खड़े थे l  

कुछ काम इस जनम में
मुझे दिया था ईश्वर ने
साझा करना था तुमसे
किया मैंने, 
जितना बन पड़ा मुझसे l
इंसान गलतियों का पुतला है
गलतियाँ मैंने की
गलतियाँ तुमने की ,
दुखी हूँ मैं                                      
सज़ा केवल तुमको मिली l

इसे सज़ा कहूँ या
अनन्त यात्रा की तैयारी कहूँ ?

एक प्रश्न सदा उठता है मेरे मन में ,
क्या हम साथी रहे किसी और जनम में ?
यदि नहीं......
तो इतना लगाओ क्यों है ?
स्मृति साथ नहीं दे रही है
विछुडने के सोच से
आंसू नही थम रही है l

नहीं पता मुझे
आत्मा होती है या नहीं
अगर होती है ....
तो तुम्हारी भी होगी
उसका भी एक आशियाना होगा *
वादा करता हूँ
मेंरी आत्मा,तुम्हारी आत्मा से
उस आशियाना में मिलेगी l


कालीपद 'प्रसाद '
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday 5 July 2015

इस देश की हालत क्या होगी ?





जैसे नेताओं के वादे पर
कोई भरोसा नहीं,
मेघ तो आया यहाँ ,पर
मेघ में भी पानी नहीं |
नेता ,पैसा चमचों पर खरचता है
जरुरतमंदों पर नहीं ,
वर्षा वहां हो रही है
जहां उसकी जरुरत नही |

बादल फटा पहाड़ों में
समतल के गाँव जलमग्न हुए,
पहाड़ी नदियां उफान पर हैं
किनारों पर सब तबाह हुए |

त्राहि त्राहि पुकार रही जनता
शासक अभी सो रहा है ,
खोकर सबकुछ जल प्रलय में
नंगे बदन लोग ,भूख से तड़प रहे हैं |
जन कष्ट दिखा-दिखा कर, हर चेनेल
अपना अपना टी आर पी बढ़ा रहा है |  
 
 देर से जगी देश की सरकार
 घोषणाओं की लगा दी अम्बार
 किन्तु पीड़ित को मदत कहाँ ?
 वह तो हाथ फैला खड़ा है ,
 किन्तु दलाल के चहरे पर
 मंद मंद मुस्कान है |
 सरकारी गोदाम का माल से  
 नेताओं चालित एन जी ओ के
 गोदाम भर रहे हैं |

इस देश की हालत क्या होगी यारो
जहां काम नहीं ,
घोषणाओं से सरकार चलती है,
देश सेवा के नाम से नेता
अपनी तिजोरी भरते हैं |  

कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित