Thursday 6 December 2018

भारत का भ्रमित लोकतंत्र


भारत का भ्रमित लोकतंत्र
***********************

भारत के लोकतंत्र की उम्र
अभी 71 साल है |
अभी यह बचपन में है ?
जवानी में है ?
या वयस्क है ?

इंसान के लिहाज से
वयस्क तो होना चाहिए,
देश के हिसाब से
यह जवान है |
जवानी में जोश होता है,
नई सोच होती है,
नया कुछ करने का जज्बा होता है |
किंतु
भारत जवानी में सठिया गया है,
राष्ट्र के निर्माण में
लोकतंत्र के मूलभूत मुद्दे
शिक्षा, नौकरी, उद्योग धंधे,
गरीबी उन्मूलन, नागरिक सुविधाएं
जैसे मूलभूत विकासशील
मुद्दों को छोड़कर,
जाति, गोत्र,  धर्म  मोक्ष,
इहलोक, परलोक
मंदिर मस्जिद जैसे
मध्यकालीन, मुद्दों को आगे कर
चुनाव प्रचार हो रहा है |
नेता मंदिरों, दरगाह के
चक्कर काट रहे हैं,
बाबाओं और मौलानाओं
के आशीर्वाद ले रहे हैं |
भारत आगे बढ़ रहा है?
या लौटकर मध्य युग में जा रहा है?
विकास के मुद्दों से
जनता का ध्यान हटाया जा रहा है |
चुनावों में
गाय, हनुमान, राम का
सहारा लिया जा रहा है,
जिसे अब तक
भगवान मानते थे
अब उसे
दलित कहा जा रहा है |
स्वार्थ की राजनीति से
भगवान भी परेशान हैं|
 कोई हनुमान को
 दलित और मनुवादी
 का दास कह रहा है |

लोकतंत्र में मीडिया अर्थात
समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन
इत्यादि को चौथा स्तंभ कहते हैं,
इनका काम निष्पक्ष होकर
सच को जनता तक पहुंचाना है,
समाज को जागरूक रखना,
अंधविश्वास से मुक्ति देना,
और प्रगति के रास्ते में
चलने के लिए प्रेरित करना |
किंतु  अफसोस,
मीडिया अपने कर्तव्य में असफल है |
टीवी चैनल लोगों को भ्रमित कर रहा है
बाबा मौलानाओं  के प्रवचन
को 24 घंटे प्रसारण कर रहे हैं,
भोले भाले जनता को
अंधविश्वासी और
अकर्मण्य  बना रहे हैं |
मीडिया को समझना चाहिए
भारत के लोकतंत्र क्या
संत बाबाओं के नियम से चलेगा
या
भारत के संविधान से चलेगा

कालीपद 'प्रसाद'

Monday 3 December 2018

गंगा की सफाई

अतुकांत कविता
***************
गंगा की सफाई
***********
थेम्स नदी का जल
गंगा जल से शुद्ध और निर्मल |
क्या है कारण ?
ब्रितानी शुद्ध विचार
दृढ़ संकल्प और लगन |
करीब पचास, पचपन साल पहले
यह नदी कचरों से
दबकर मर गई थी |
किंतु आज एक सजीव
विश्व में सबसे स्वच्छ नदी है |
लोग थेम्स को पवित्र नदी
नहीं मानते हैं, वरण
नदी को स्वच्छ रखने का
अपना पवित्र कर्तव्य मानते हैं |
गंगा को हम पवित्र मानते हैं,
किन्तु उसे स्वच्छ रखना
आपना कर्तब्य नहीं मानते है |
स्वच्छ गंगा के लिए
करोड़ों रुपए पानी में बहा दिए
फिर भी भक्ति नहीं होती
उस में डुबकी लगाकर नहाए |
एक लाश निकलती है
तो दूसरी बह कर आती है,
आस्था के नाम से,
गंगा मैली रखने के लिए
हम सब ने कसम खाई है |
गंगा को थेम्स से भी गर
स्वच्छ बनाना है,
तो आस्था के नाम से
पूजा सामग्री, शव
गंगा में डालना बंद करना है |
कारखानों के विषाक्त उत्सर्जन
पूजा की प्रतिमा का विसर्जन
भी बंद करना होगा |
रासायनिक रंग
जल को करता है दूषित ,
सरकार भी वोट के लिए
आस्था और कु-संस्कार को
करती है पोषित |
दोगला नीति बंद करना होगा
आवश्यकता पड़े,
कुंभ में स्नान भी बंद करना होगा |
गंगा से घड़े भर पानी लेकर
गंगा किनारे नहा ले,
हर कीमत पर
गंगा साफ करने का प्रण ले |
संस्कृति, समर्थ का
झूठा दंभ ना भरें,
अंग्रेजों ने थेम्स को
दुनिया का सबसे स्वच्छ नदी बनाया है ,
दृढ़ प्रतिज्ञाबद्ध हो
हम भी गंगा को उससे
ज्यादा स्वच्छ करें |
गंगा को आप पवित्र माने या न माने
गंगा को साफ़ रखना अपना
पवित्र कर्तब्य माने |
कालीपद 'प्रसाद'

Sunday 18 November 2018

ईश्वर को पत्र

वर्तमान परिस्थिति पर शिकायत किस् से करें ? सो ईश्वर को पत्र लिख दिया | ईश्वर को पत्र हे ईश्वर ! संसार से जो निराश होते हैं वह तेरे द्वार आते हैं | हम भी निराश हैं, जनता से, सरकार से | तू निर्विकार है, निराकार है, अदृश्य अमूर्त है| फिर भी भ्रमित लोग अपनी इच्छा अनुसार कल्पना से तेरी मूर्ति बनाकर, आस्था की दुहाई देकर आम जनता, सरकार, यहां तक की अदालत को भी मजबूर कर देते हैं | आस्था के चरमपंथी अदालत के आदेश को भी महत्व नहीं देते हैं| अब तू बता हम न्याय के लिए किसके पास जाएं ? तू अपने मन की बात बता तुझे,मन का कोमल मंदिर चाहिए या कंकड़ पत्थर से सजे महल चाहिए ? गरीब जनता जी भर पुकारती तुझे नगण्य फल फूल से पूजती तुझे तुझे यह अश्रु सिक्त अर्पण चाहिए या आलीशान मंदिर के सुगंधित छप्पन भोग चाहिए ? दीन हीन बेसहारा जो तेरे सहारे की आस में बैठे हैं , तू उनके साथ जमीन पर बैठेगा ? या मुट्ठी भर धनी, पुजारी साधु,संत के आडंबर से भरपुर रत्न सिंहासन पर विरेजेगा ? तुझे यहां छप्पन भोग मिलेगा बाहर अश्रु जल और शबरी का जूठा बेर मिलेगा | तू ही बता, तुझे क्या पसंद है? कहते हैं जो लेता है वह छोटा होता है, जो देता है वह बड़ा होता है, हर पूजन में जो लेता है तू उसे धनी बना देता है और जो भक्ति से तुझे देता है उसे तू गरीबी का दंड देता है | यह कैसा तेरा न्याय ? तू अवतारी है, तुझे क्या धनी और राजघराना ही पसंद है? रानी कौशल्या के राम बना राजकन्या देवकी के कृष्ण बना तू बता तू शंबूक क्यों नहीं बना ? सुदामा क्यों नहीं बना ? गरीब, निम्न वर्ग का उद्धार हो जाता| तू भगवान है, तू जवाब नहीं देगा मुझे पता है | मुझे यह भी पता है कि तू राम कृष्ण बना नहीं तुझे बनाया गया है | हिंसा द्वेष स्वार्थ भेद-भाव की दुर्नीति तेरे ही आड़ में सब का अंजाम दिया गया है | जानता हूं पत्र का उत्तर नहीं मिलेगा कुछ चिढ़ेगा ,मुस्कुराएगा फिर संसार ऐसा ही चलता रहेगा | कालीपद ‘प्रसाद'

Thursday 18 October 2018

दशहरा और रावण दहन



दशहरे में विजयोत्सव मनाना तो उचित है
पर रावण का पुतला जलाना क्या उचित है ?
पढ़िए छै मुक्तक

1.
आदि काल से बुरा रावण को जलाया जाता है २८
बुराई पर सत्य की जय, यही बताया जाता है
लोभ, मोह, काम, क्रोध, हिंसा, द्वेष ये बुराई हैं
जलाने वाले क्या इन सबको जलाया जाता है ?
२.
बुराई सभी अपने अंदर हैं, उसको जलाओ २७
रावण को बदनाम कर उसका पुतला न जलाओ
हर इंसान के मन भीतर छुपा है एक रावण
उसे निकालो और सरेआम उसे ही जलाओ |
,
सब बुराई के प्रपंच के आगोश में हो तुम२६
पुरानी रीति रिवाजों के बंधनों में हो तुम
स्वार्थ  बस बंधन को नहीं तुम तोड़ना चाहते
क्षणिक सुख के लिए व्यर्थ रावण जलाते हो तुम |
४.
सीता हरण  कर उसने गंभीर गलती की थी

पर लंका में सीता को भी,हानि  नहीं की थी
प्रकांड विद्वान थे, राम भी उसे मानते थे
 मृत्यु शय्या पर राम को नैतिक शिक्षा दी थी |
५.
 जिस से शिक्षा ली जाए, वह तो गुरु होता है
 यही बात शास्त्र पुराण दृढ़ता से कहता है
 राम ने रावण से राजनीति की शिक्षा ली
 शिष्य का पूजन, गुरु का दाहन न्याय होता है ?
राजनीति का खेल होता सर्वथा निराले
आज भी चल रहा है आप जरा आजमा ले
क्या आज दुष्ट नेता को जलाया जाता है?
दिमाग का द्वार खोलिए, होने दे उजाले  |

कालीपद 'प्रसाद'
सर्वाधिकार सुरक्षित 

Thursday 11 October 2018

देवी -प्रर्थना - गीतिका


१२२  १२२  १२२  १२२
करो कुछ कृपा, दींन  के चौक आए
सभी दीन  इक बार,आशीष पाए |

नहीं भक्ति, श्रद्धा,  तुम्ही कुछ बताओ
सभी संग आराधना गीत गाए ? 
            
भले भक्ति गाढ़ा न, विश्वास तो है
तुम्हें सर्वदा मातु हम शीश झुकाए |

सदा ख्याल रखती तूपीड़ित जनों का
कभी रूपअपना भवानी दिखाएं |

दुखों का महा सिंधु संसार तेरा
मनोरोग औ काय पीड़ा भगाए |

नहीं जानते आवरण जिसमें ढके तुम
सती, भगवती, पार्वती रूप भाये  |

नवीन और नव रूप दुर्गा व गौरी
कृपा मातु  का प्रेम सरिता बहाए |

कालीपद 'प्रसाद
©स्वरचित , सर्व अधिकार सुरक्षित