भारत का भ्रमित लोकतंत्र
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भारत के लोकतंत्र की उम्र
अभी 71 साल है |
अभी यह बचपन में है ?
जवानी में है ?
या वयस्क है ?
इंसान के लिहाज से
वयस्क तो होना चाहिए,
देश के हिसाब से
यह जवान है |
जवानी में जोश होता है,
नई सोच होती है,
नया कुछ करने का जज्बा होता है |
किंतु
किंतु
भारत जवानी में सठिया गया है,
राष्ट्र के निर्माण में
लोकतंत्र के मूलभूत मुद्दे
शिक्षा, नौकरी, उद्योग धंधे,
गरीबी उन्मूलन, नागरिक सुविधाएं
जैसे मूलभूत विकासशील
मुद्दों को छोड़कर,
जाति, गोत्र, धर्म मोक्ष,
इहलोक, परलोक
मंदिर मस्जिद जैसे
मध्यकालीन, मुद्दों को आगे कर
चुनाव प्रचार हो रहा है |
नेता मंदिरों, दरगाह के
चक्कर काट रहे हैं,
बाबाओं और मौलानाओं
के आशीर्वाद ले रहे हैं |
भारत आगे बढ़ रहा है?
या लौटकर मध्य युग में जा रहा है?
विकास के मुद्दों से
जनता का ध्यान हटाया जा रहा है |
चुनावों में
गाय, हनुमान, राम का
सहारा लिया जा रहा है,
जिसे अब तक
भगवान मानते थे
अब उसे
दलित कहा जा रहा है |
स्वार्थ की राजनीति से
भगवान भी परेशान हैं|
कोई हनुमान को
दलित और मनुवादी
का दास कह रहा है |
लोकतंत्र में मीडिया अर्थात
समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन
इत्यादि को चौथा स्तंभ कहते हैं,
इनका काम निष्पक्ष होकर
सच को जनता तक पहुंचाना है,
समाज को जागरूक रखना,
अंधविश्वास से मुक्ति देना,
और प्रगति के रास्ते में
चलने के लिए प्रेरित करना |
किंतु अफसोस,
मीडिया अपने कर्तव्य में असफल है |
टीवी चैनल लोगों को भ्रमित कर रहा है
बाबा मौलानाओं के प्रवचन
को 24 घंटे प्रसारण कर रहे हैं,
भोले भाले जनता को
अंधविश्वासी और
अकर्मण्य बना रहे हैं |
मीडिया को समझना चाहिए
भारत के लोकतंत्र क्या
संत बाबाओं के नियम से चलेगा
या
भारत के संविधान से चलेगा