Wednesday 25 December 2019

ग़ज़ल


जिंदगी में यही’ पल शाद आया
जश्न का वक्त कि जल्लाद आया |

कौन बेपीर ये’ बेदाद आया
ध्यान देना जरा’ उन्माद आया |

सब सितमगर मिले दुनिया में
मेहरबां देख खुदा याद आया |

और करना न शरारत बगां में
तीर लेके अभी’ सैय्याद आया |

चाह थी शाद मिले जीवन में
अजनबी ये दिले’ नाशाद आया |

शांति फैलाने’ ही’ आया गाँधी
गाँधी’ को मार उगरबाद आया |

क्यों प्रगति भी पड़ी धीमी ‘काली’
अर्थ शासन में’ही’ अवसाद आया |

कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday 24 December 2019

ग़ज़ल


१२२  १२२   १२२   १२२
कहाँ है सितारे जहाँ अच्छे अच्छे
कहाँ दिन हमारे निहाँ अच्छे अच्छे|

यहीं थी मेरी झोपडी अब नहीं है
यहाँ ढह गए आशियाँ अच्छे अच्छे |

वो’ ईमान का क्या करे जो बिकाऊ
बिके हैं सभी पासबाँ अच्छे अच्छे |

भरोसा करो पर रखो सावधानी
दिया झाँसना राजदां अच्छे अच्छे |

न मायूस हो तुम अभी से, समय है
अभी तो बचे मेहरबां अच्छे अच्छे |

गरजता भयानक किसी वक्त में था
सुखे सिन्धु वो बेकराँ अच्छे अच्छे |

लडे क्यों जमाने से’ कुस्ती बिरादर
धराशायी’ हैं पहलवां अच्छे अच्छे |

सियासत करो मत सरल आदमी से
बनो तुम कभी कद्रदां अच्छे अच्छे |

न राजा रहा राज-दरबार है अब
न वे हैं न उनके मकाँ अच्छे अच्छे |

फलक का सितम जो गिरा इस धरा पर
उजाड़े सभी वो बगां अच्छे अच्छे |

कालीपद प्रसाद 

Sunday 8 December 2019

ग़ज़ल


२१२२ २१२२ २१२
फेरकर मुँह, मेरे वो दिलवर चले
मेरे दिल पर तीक्ष्ण, वो खंजर चले |

लोग तो मरते रहे हैं भूख से
आँख दोनों बंद कर रहबर चले |

आगे’ पीछे दायें’ बाएं क्यों चले
राह सीधी, टेढ़े’ क्यों अख्तर* चले |* सितारे 

वो नहीं चलते कभी पैदल यहाँ
गर नफा हो, लाभ में बे-पर* चले |* बिना पैर 

वक्त पर मिलते नहीं रहबर* यहाँ * नेता 
वे चुनावी दौर में दर दर चले |

हो गया आकुल सनम अब प्यार में
इश्क अपना काम नस नस कर चले |

रहनुमा वादे निभाया क्या कभी
सब यहाँ से वोट लेकर घर चले |

कालीपद 'प्रसाद'


Saturday 7 December 2019

गीतिका


बार बार होता बलात्कार जिम्मेदार कौन है
जिस्म का होता ब्यापार जिम्मेदार कौन है ?

आज जनता के साथ न्यायालय भी चुप है
कानून हुआ निस्सार जिम्मेदार कौन है ?

बेटी बचाओ बेटी पढाओ, नारा क्या खोखला है
बेटी की राह है पुरखार, जिम्मेदार कौन है ?

भारत में क्रिमिनल कानून, कमजोर लाचार क्यों है
स्वतंत्र भारत में अत्याचार, जिम्मेदार कौन है ?

न्याय में देर के कारण, जनता हो गई हतास
सिस्टम में खो दिया एतबार, जिम्मेदार कौन है ?

अपराधी बच जाते हैं न्यायालय के दंड से क्यों
धोखा देते हैं बलबान गद्दार, जिम्मेदार कौन है ?

नेता के रक्षक चौदह, पांच सौ आम, रक्षक एक सिपाही
रक्षक हीन बेटी का घर हाहाकार, जिम्मेदार कौन है ?

तप्तिस का, न्यायालय निर्णय का वक्त निर्धारित हो
सुधार कानून में अति दरकार, जिम्मेदार कौन है ? 

कालीपद 'प्रसाद'

Friday 6 December 2019

ग़ज़ल

देश में अब हर गली में कुछ असर होने लगा है
गाँव अब हर मामले में बेहतर होने लगा है |

डर लगा रहता हरिक क्षण,आज दिन कैसा बितेगा
अब खबर सुनता नहीं, दिल बे-खबर होने लगा है |
  
हर जगह होती लड़ाई डर नहीं कानून का भी
न्याय में है देर, इस कारण ग़दर होने लगा है |

मामला संगीन है,कोई नहीं सुनता किसी का
धीरे’ धीरे देश में जन का कदर होने लगा है |

वो फ़साना कुछ अलग है, लोग सब मायूस हैं अब
हर बशर के हाथ का रूमाल तर होने लगा है |

आदमी मजबूर होकर खोल देता मुँह कभी भी
शांत था जो जन अभी तक, अब मुखर होने लगा है |

सींप में मोती जनमती है यही फितरत बताती
काल आया कलि अभी घर में गुहर* होने लगा है |*मोती

कल तलक गुंडे लुटेरा था अभी कानून रक्षक
देश निष्काषित था’ जो, वो राहबर* होने लगा है | *मार्गदर्शक
 

कालीपद 'प्रसाद'

Thursday 5 December 2019

ग़ज़ल



२२१  २१२२ २२१  २१२२
कोई अगर कहे इक कटु सच, बुरा न माने
अब आपके प्रशासन सब हो गए पुराने |
संतो अभी कथा वाचन बंद कर दिए हैं
विश्वास अब नहीं, झूठे हैं सभी फ़साने |
परदेश में सभी लालायित, ब्रिटेन, डच, फ्रेंच
वो पोर्तगीज आये डेरा यहीं जमाने
झगडा अभी नहीं निपटा दैर–ओ-हरम का
जो आग दैर की, कोशिश कर अभी बुझाने |
तस्वीर तेरी’ भी बिलकुल साफ़ तो नहीं है
नादान ! इसलिए कहता हूँ न मार ताने |
हर बार मात खाया है जंग में सरापा
अब तू कभी न कोशिश कर शक्ति आजमाने |
ये वक्त गत्लियाँ सारे है सुधारने का
तुझको शर्म नहीं क्या इस वक्त को गँवाने |
कालीपद 'प्रसाद'

Monday 2 December 2019

ग़ज़ल


१२१२  ११२२  १२१२  २२ (११२)
चनाव में अभी’ पार्टी बहुत धमाल किया
गरीब लोग के’ ही वोट ने कमाल किया |

विकास-ढोल बजाते, कहीं विकास नहीं
कहाँ हुई है’ प्रगति? जानता’ ने सवाल किया |

लिया है वोट किया फायदा सदा अपना
कठोर झूठ-छुरा आम को हलाल किया |

कभी यहाँ कभी’ परदेश में किया विस्फोट
हरेक देश में’ आतंक ने बबाल किया |

ढकोसले में’ सभी पार्टियां निपुण होते
शहद-वचन सदा’ नुक्सान बेहिसाब किया |

उन्हें दिये थे’ यही इक जबाबदेही हम
हिसाब लिखने’ में’ आपाद गोलमाल किया |

फरेब, स्वार्थ, विभेदन सभी अधर्म किये  
यही तो’ देश की’ ‘काली’ ख़राब हाल किया |

कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday 26 November 2019

ग़ज़ल

नेता चरित्रम 
२२१  १२२२  २२१  १२२२
क्यों साँप चिता अजगर से लोग बिचलते हैं
इस मुल्क के’ नेता पूरा देश निगलते हैं |

भाषण नहीं’ देते रिपु का दोष बताते सब
हर बात में नेता घातक जह्र उगलते हैं |

अब देख लड़ाई चारो सिम्त फरीकों में
दुर्नीति को’ अपना कर दुश्मन को’ कुचलते हैं |

इस मुल्क के’ सब रहबर बेपीर तहे दिल से
मासूम सरल सब जनता को सदा’ छलते हैं |

सब झूठ कहीं ना सच का नाम निशाँ उसमे
गिरगिट से’ जियादा नेता रंग बदलते हैं |

हर बार की’ है चोरी सरकार के’ बैंकों से
चोरी गयी’ पकड़ी तो गुस्से में उबलते हैं |

बेपीर सभी रहबर है आग लगाते हैं
मासूम प्रजा को वो हर बार बिदलते हैं |

सिम्त ओर ,फरीक =पार्टी ,दल

कालीपद 'प्रसाद'

Thursday 21 November 2019

ग़ज़ल


२१२२ १२१२  २२ (११२)
रहनुमा कोई बेकसूर नहीं
उस जहन्नुम में’ बेहुजूर नहीं |

बोलता कम मगर गुरूर नहीं
क्या कहूँ उनका’ वो कसूर नहीं |

शर्म से दोहरा हुआ जाता
झेंपू’ है किन्तु बेहसूर नहीं |

नाक ऊपर इताब उनका है
किन्तु नादान नासबूर नहीं |

प्रेम में भूख ख़त्म हो गई’ है
कुम्हलाये वदन में नूर नहीं |

बावफा संग छोड़ कर गई’ है  
प्रिय मिलन अब अनेक दूर नहीं |

बाग़ की सब कली हलाल हुई
रिक्त जन्नत मे कोई हूर नहीं |  
शब्दार्थ :-
बेहुजूर=गैरहाजिर, बेहसूर= औरतों की
ओर आकर्षित न होने वाला
नासबूर=अधीर अधैर्यवान 

कालीपद 'प्रसाद'

Saturday 16 November 2019

ग़ज़ल


        तरही ग़ज़ल 
जिस राह से भी’ गुजरा है कारवाँ हमारा
भारत वतन वही है, हिन्दोस्तां हमारा |

ऐ पाकि, चीन सुनलो हिन्दोस्तां हमारा
अब भूलकर कभी ना लो इम्तिहाँ हमारा |

हर डाल पर बसा पंछी देश का दुलारा
हर डाल पर बसेरा है, आशियाँ हमारा |

तैनात शूरवीरों की फ़ौज सरहदों पर
भारत के पासबाँ जो, वो पासबाँ हमारा |

हम है अनीक, भारत की भक्ति है दिलों में
आसां नहीं मिटाना नाम-ओ–निशां हमारा | *

सारे जहां है’ वाक़िफ़ हिन्दोस्तां की’ गरिमा
अब तुम भी’ जान लो गौरव दास्ताँ हमारा |

उस म्यानमार से इस गुजरात तक हमारे
कश्मीर की हवा, धरती आसमां हमारा |

कश्मीर का विलय ‘काली’ फायदा किया है
अब भेद भाव ना झगडा, दरमियाँ हमारा |

 कालीपद 'प्रसाद'

Friday 15 November 2019

ग़ज़ल


२२१ २१२१ १२२१ २१२
मिलकर सभी ने मत दिया सरकार के लिए
हो कुछ बिशेष जनता’ के’ उपकार के लिए |

इस इश्क से बहुत हुए’ बरबाद इस जहां
हिम्मत जरुरी’ इश्क के’ इज़हार के लिए |

तू जो गई तो’ आँख में’ अब नींद ही नहीं
आँखे तड़प रही ते’रे’ दीदार के लिए |

दिलदार बेवफा दिया’ धोखा मुझे कभी
पर दिल धड़कता’ है उसी’ दिलदार के लिए |

जो निष्कपट उन्हें ही’ मिला दंड सर्वदा
क्यों ना कठोर दंड हो मक्कार के लिए |

हक़ के लिए कभी नहीं आगे बढ़े कोई
क्यों ना लडे अभी सही अधिकार के लिए |

यह जन्म मृत्यु चक्र बनाया बशर को’ दास
क्या आयगा कभी कोई उद्धार के लिए ?

कालीपद 'प्रसाद'

Monday 11 November 2019

ग़ज़ल


१२१२  ११२२  १२१२  २२ (१)
उन्हें अतीव ख़ुशी क्यों क़ज़ा के’ आने की
खबर मिली नहीं’ उस बेवफा के आने की |

मुसीबतों से’ अभी हो गई मे’री यारी
है’ इंतज़ार भयानक बला के’ आने की |

बहुत कसम लिए’ वो इन्तखाब के पहले
चनाव में गए सौगंध खा के’, आने की |

गली गली के’ हुए हैं मलिन हवा पानी
उमीद कैसे’ करे पाछुआ के‘ आने की |

रहीम राम वही है, वो’ बुद्ध गुरुनानक
नवीन रूप में प्रतीक्षित खुदा के’ आने की |

समाज को अभी’ अब इंतज़ार है कुछ और
रहीम राम के’ वो काफिला के’ आने की |

रहीम राम मिले जब, गले मिले ‘काली’  
रहीम राम कहे दिल मिला के’ आने की |

कालीपद 'प्रसाद'

Saturday 9 November 2019

ग़ज़ल


१२२२  १२२२  १२२ 
दिलों में जब वफ़ा का स्थान होगा
वही इंसान का ईमान होगा |

हमारे वीर का कुर्बान होगा
जवानों पर हमें अभिमान होगा |

जितेंगे हम पराजय शत्रु का है
हमारे देश का सम्मान होगा |

विजय का यह तिरंगा ना झुकेगा
वही तो देश का पहचान होगा |

शहीदों के घरों में जगमगाहट
अदू के घर सदा बीरान होगा |

विजय डंका बजेगा आठ यामें
सभी के चेहरे पर मुश्कान होगा |

न कोई भूख तृष्णा से मरेगा
यही भारत सुखद गुलदान होगा |

सदाचारी हितैषी लोग हों जब
विदेशों में तभी गुणगान होगा |

सभी सहयोग गर ‘काली’ करे तो
निवासी को सुखद अहसास होगा |
कालीपद 'प्रसाद'


Thursday 7 November 2019

ग़ज़ल

१२२२  १२२२  १२२
निखारो खूब इस काया-मकां को
दुबारा तो नहीं आना जहां को |

लकीरों के भरोसे काम ना कर
मिटा दो हाथ के सारे निशां को |

खजाना लूटना इतना सहज था ?
मिलाया साथ में उस पासबां को |

बहुत तो बोलते थे, मौन क्यों अब ?
हुआ क्या रहनुमा के उस जुबां को ?

गरीबो में भी’ प्रतिभा होती’ है पर
उपेक्षा तो धनी करते खूबियाँ को |

युगों से यह चला आया जगत में
कहाँ सुनता गरीबों की फुगाँ को ?

मनाया जश्न अपनी जीत की सब
सूना क्या मुफलिसों की हिचकियाँ को ?

विजय से खुश सभी, है जश्न में मग्न
भुला ‘काली’ मदद की दास्ताँ को |

कालीपद 'प्रसाद'

Monday 4 November 2019

ग़ज़ल

१२२२  १२२२ १२२
सिवा श्रम क्या मिलेगा देहकां से
उगाता है फसल वो शादमां से |
हमेशा झेलते जो रात दिन दुख
झलकता दुख किसानों के फुगाँ से|
कभी ना हौसला खोना यहाँ तुम
गुजरना है सभी को इम्तिहाँ से |
विदेशों में कभी मिलते किसी को
सभो को प्यार होता हमजुबां से |
भले हो शत्रु यह सारा ज़माना
कभी ना दुश्मनी हो राजदां से |
सनम तो है मिजाजी बच के’ रहना
रहो तुम दूर उनकी सरगिराँ से |
पराजय पाकि का तकदीर, सुन लो
कभी तो सीख लें इन पस्तियाँ से |
नहीं डर चोर डाकू का यहाँ अब
बना है गुप्त खतरा पासबाँ से |
मना था फूल चुनना बाग़ से, पर
चुराया फूल डाकू बागबाँ से |
मुहब्बत जख्म से बेजान “काली”
मिलेगा क्या अभी इस नीमजां से |
शब्दार्थ :- देहाकाँ = किसान
शादमां =ख़ुशी, फुगाँ =चीत्कार,रोदन
हमजुबां= एकभाषी, सरगिराँ=गुस्सा
पस्तियाँ =पराजय,पासबाँ=पहरेदार
नीमजां =अधमरा
 कालीपद 'प्रसाद'