गूगल से साभार |
हे निरंजन ,हे निर्गुण निराकार
बड़ी देर से बैठा हूँ मैं
तेरे द्वार
इस आशा और दृढ विश्वास के
साथ
मुझे पास बुलाओगे पकड़ मेरा
हाथ |
मेरा विश्वास को टूटने न
देना
भव सागर को पार करा देना
डगमग डगमग दोल रहा है नाव
मेरा
नहीं पार जायगा बिन तेरा
सहारा |
सागर किनारे खडा हैं भक्त तेरा
तैरना नहीं आता कौन बनेगा
मेरा सहारा ?
शिला जो तैरे पानी में
,उसका पुल बना दे
या नाविक बनकर ,तु मुझको पार
लगा दे !
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
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