Friday 31 October 2014

प्रार्थना !

  

गूगल से साभार



हे निरंजन ,हे निर्गुण  निराकार
बड़ी देर से बैठा हूँ मैं तेरे द्वार
इस आशा और दृढ विश्वास के साथ
मुझे पास बुलाओगे पकड़ मेरा हाथ |
मेरा विश्वास को टूटने न देना
भव सागर को पार करा देना
डगमग डगमग दोल रहा है नाव मेरा
नहीं पार जायगा बिन तेरा सहारा |
सागर किनारे खडा  हैं भक्त तेरा
तैरना नहीं आता कौन बनेगा मेरा सहारा ?
शिला जो तैरे पानी में ,उसका पुल बना दे
या नाविक बनकर ,तु मुझको पार लगा दे !

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित

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Thursday 23 October 2014

दिवाली किसकी ?




                                         दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

"दीपावली का त्यौहार
अन्य त्यौहारों की भांति
मनाया जाता है घर घर ,
सुसुप्त आशा को जगाता है
सुख शांति ख़ुशी
सबको दे जाता है |"
यही धारना है
यही विश्वास है
शासक ,शोषित समाज का .....
नर- नारी हर  इंसान का |

किन्तु संवेदनशील व्यक्ति का दिल
रौशनी में नहायी रात्रि में
सुख के सागर दिवाली में
देखता है जब दिवाली का उजाला 
और तिमिर गभीर निशा-अंधेला......

एक बच्चा नए वस्त्रों में 
ख़ुशी ख़ुशी सज धज कर 
फुलझड़ी जलाकर 
ताम्बे के तार को फेंकता है |
दूसरा बच्चा  मैले ,फटे कपडे पहने 
टकटकी लगाकर उसे देखता है 
फिर गर्म तार को लपककर 
अपने बोरे  में डालता है 
आने वाले दिन में 
पेट की भूख मिटाने की जुगाड़ में
ताम्बे की छड ,पटाखे के कागज़ 
भर लेते हैं बोरे  में !

गरीब के सपने में उजाला आता है 
ठीक फुलझड़ी की तरह 
थोड़ी देर जलकर रौशनी देती है 
फिर अँधेरा का राज होता है 
जागृत जीवन में केवल अँधेरा है !
यह दिवाली किसकी ?
गरीब की या पैसे वालों की ?


कालीपद "प्रसाद "
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Monday 20 October 2014

रहने दो मुझे समाधि में !













खोजता  हूँ तुझे यहाँ वहां

भटका हूँ तेरे लिए न जाने कहाँ कहाँ !

थक कर बैठ जाता हूँ आँख मूंदकर

बन्ध आँखों में आता है तु प्रकाशपुंज बनकर !

सहस्र कोटि सूर्य सम वह तेज

कर देता है मेरी आखों को निस्तेज !

मेरी आँखों की रश्मि खो जाती है रश्मिपुंज में

भूलकर अस्तित्व ,मैं खो जाता हूँ उस ज्योतिपुंज में !

उस प्रकाश पुंज  में तुझे ढूंढ़ता हूँ

अहसास होता है ,देख नहीं पाता,मैं सूरदास हूँ |

निर्बाध विचरण करता हूँ प्रकाशपुंज में यहाँ-वहां

जैसे महा सागर में विचरती हैं मछलियाँ !

मुग्ध हूँ ,तेरे खुशबु से ,सब खुशबु से जुदा है

संविलीन हूँ आनंद में ,जिसके लिए जग पागल है !

मुझसे ना छीनो इस आनंद को

महसूस करने दो मुझे इस परमानंद को !

रहने दो मुझे इस  महा समाधि में

तुम तो नहीं मिलते हो किसी और राह में ! 

कालीपद "प्रसाद"
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Friday 17 October 2014

इश्क उसने किया .....**

इश्क उसने किया,सन्देश मुझे मिला
इश्क मैं ने किया सन्देश उन्हें न मिला !

वो खमोश थी ,उन्हें तारीफ़ मिली
मैंने इज़हार किया ,मुझे दुत्कार मिला |

निगाहों निगाहों में पैगाम भेजती थी वो
पैगाम को पढना चाहा ,निगाह का ताड़न मिला .

शोख़ अदाओं की मलिका है वह ,नाजुक ,कमसिन है
तारीफ़ के कसीदे पढ़े हमने ,कोई इनाम न मिला |

नाज़ुक दिल है उनका ,कमल सा कोमल बदन है 
सुना था मैंने भी ,सबुत कोई न मिला |

सुरमा लगी आँखें ,लाल जादुई पिया का लब
भेजा था न्योता उसने ही ,पता नहीं किसको मिला |

इश्क में तड़पना ,धोखा खाना आम बात है 
खुश नशीब हो "प्रसाद "उनसे इनकार तो न  मिला |


कालीपद "प्रसाद "
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Monday 13 October 2014

खुदा है कहाँ ?**

मन जब चंचल होता है ,भटकता है यहाँ वहाँ
ढूंढ़ा तुझको सारे जहाँ ,पता नहीं तु छुपा है कहाँ |

वन में ढूंढ़ा ,पर्वत में ढूंढ़ा ,ढूंढ़ा बाग़ बगीचे में
दिल को कुछ शुकून मिला ,फूलों में ताजगी जहाँ |

इंसानों में तो नफ़रत भरा है ,नफ़रतों में तू  कहाँ
कुछ एहसास हुआ मुझ को ,दिल में है प्यार जहाँ |

प्रेमी चालाक ,प्रेमिका चतुर ,प्रेम में वो वफ़ा कहाँ
तेरा एहसास होता है वहाँ ,प्यार में सादगी जहाँ |

पूछा तेरा पता हर प्राणी ,हर खुदाई से यहाँ
मूक संकेत मिला मुझे ,तू  है ,खिला नव पल्लव जहाँ |

निश्छल हँसी बच्चों में ,सुमन के सौरभ जहाँ
तेरा दर्शन तो नहीं हुआ,पर तू मिले मुझ से वहाँ |

तू है यहीं कहीं मेरे आस पास ,मानते है सारे जहाँ !
दीदार को दिल दीवाना है ,एहसास है पर दीदार कहाँ ?


कालीपद "प्रसाद "
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Saturday 11 October 2014

साजन नखलिस्तान **

कैसा साँचा बनाया तूने ,मेरे मन के आंगन में
कोई भी मूरत समाता नहीं ,मन के इस सांचे में |

चाहत का कौन सा रंग चुना ,न जानू ,तू ने
कोई भी रंग फबता नहीं , मन के इस मूरत में |

ढूंढा  उसको नगर नगर ,छूटा न कोई शहर
कहाँ मिलेगा साजन मेरा ,मैं हूँ उसके इन्तजार में |

बदल दो इस साँचे को रब , या बना दो कोई मूरत
साँचा मूरत एक हो जाय ,एक रंग चढ़ जाय दोनों में |

सूरत ,सीरत ,रंग ,रूप सब भर दो एक मूरत में
नापतौल में व्यावधान न हो ,समागम हो मेरे सांचे में |

साजन है पानी ,बिन पानी नहीं कटता जीवन
साजन है नख्लिस्तान*, जीवन के रेगिस्तान में |        

   *नख्लिस्तान -oasis -मरुभूमि  में  जहाँ पानी मिलता है


कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday 9 October 2014

"लौ " ***




झंझाबात से  जिन हाथों ने "लौ " को घेरकर बुझने से बचाया था
'लौ ' बुझाने का दोष लगाकर ,"लौ " ने ही हाथ को  जला दिया।

हवा का हर झोंका आता है "लौ " को बुझाने के लिए , पर "लौ " की हिम्मत देखो
वह  हिलता है ,डुलता है,कांपता है ,झुकता  है ,फिर तन कर खड़ा हो जाता है।

रातभर जागकर दुआ करते रहे उनकी सलामती  का
अब उनको खामिया नज़र आती है हमारे हरेक काम  में।

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित  
 .

Friday 3 October 2014

शुम्भ निशुम्भ बध :भाग -10



   
घर में देवी माँ की मूर्ती







 आप सबको शारदीय नवरात्रों  ,दुर्गापूजा एवं दशहरा की   शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर   बधकी  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०5    तांका पद हैं ! आज नवमी और दशमी दोनों है | दशहरा भी आज है ! इसलिए भाग ९ और भाग 10 (अन्तिम भाग ) आज ही दो अलग अलग पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी समाप्त हुआ !

भाग ९ से आगे यह अन्तिम भाग है|
शुम्भ बध
         १८३ 
तदनन्तर
देवी और शुम्भ में 
संघर्ष छिड़ा 
वाण वृष्टि तुमुल 
हुए सस्त्र  निर्मूल |
           १८४ 
काटे शुम्भ ने 
देवी के दिव्य अस्त्र 
नाशक अस्त्र,
काटकर वे अस्त्र 
चलाये दिव्या अस्त्र |
           १८५
परमेश्वरी ने 
भर शब्द हुंकार
खिलवाड़ में 
किया नष्ट वाणों को
हुआ कुपित दैत्य |
            १८६ 
शुम्भ ने किया 
आच्छादित देवी को 
वाण वर्षा से 
क्रोधित देवी ने भी
काटे शुम्भ धनुष |
         १८७ 
दैत्यराज ने 
लिया शक्ति हाथ में 
काटी देवी ने 
उसके शक्ति को भी 
अपने चक्र द्वारा |
         १८८ 
दैत्य के स्वामी
ढाल और तलवार
उठाता तब 
धावा किया क्रोध में 
महादैत्य शम्भू  ने |
          १८९ 
उज्ज्वल ढाल
सूर्य रश्मि चमक 
तलवार को
तीखे वाणों के द्वारा 
देवी ने काट डाला |
           १९० 
शम्भू के घोड़े 
सारथि मारे गए 
रथ हीन थे 
,उठाकर मुद्गर 
उद्दत देवी ओर|
         १९१ 
देख देवी ने 
काटी तीक्ष्ण वाणों से 
दैत्य हाथ के 
भयंकर मुद्गर 
बहुत आसानी से |
           १९२ 
इस पर भी 
झपटा देवी ओर
बड़े वेग से 
मारा मुक्का देवी को 
शुम्भ दैत्यराज  ने |
           १९३ 
मारा देवी ने 
जोरसे चांटा एक 
शुम्भ छाती में 
मार खाकर शुम्भ 
गिर पड़ा भू पर |
           १९४ 
किन्तु पुनश्च 
तेजी से उठकर 
खड़ा हो गया 
उछला दैत्य फिर
चंडिका के ऊपर|
           १९५ 
असुर शुम्भ 
आकाश में जाकर 
खड़ा हो गया 
चण्डिका भी उछली 
आकाश में पहुंची |
          १९६ 
लड़ने लगे 
बिना किसी आधार 
एक दूजे से 
बहुत देर तक 
संग्राम के दौरान .....
          १९७ 
चण्डिका देवी 
उठाकर घुमाया 
शम्भू दैत्य को 
और पटक दिया 
जोर से पृथ्वी पर |
        १९८ 
दुष्टात्मा दैत्य 
फिर खड़ा होकर 
दौड़ा वेग से 
सम्पूर्ण ताकत से 
मारने चंडिका को |
        १९९ 
दैत्य के राजा 
शुम्भ को आते देख 
उठाया शूल 
त्रिशूल से देवी ने 
छेदा शुम्भ छाती को ....
          200 
शुम्भ असुर 
गिर पड़ा भू पर 
काँपी धरती 
उड़ा प्राण पखेरू 
महा दैत्य शुम्भ के |
        २०१
पूरा त्रिलोक 
हुआ प्रसन्न स्वस्थ 
आकाश स्वच्छ 
शांत सब उत्पात 
समित  उल्कापात |
        २०२ 
शुम्भ मृत्यु से 
गाये गन्धर्व गण 
मधुर गीत 
देवता भी प्रसन्न 
जगत उल्लसित |
         २०३ 
बाजा बजाए 
देव-गन्धर्व सब 
अप्सरा नाची 
मधुर संगीत से 
प्लावित जगत भी |
         २०४ 
समाप्त हुआ 
कहानी शुम्भ बध 
जय चण्डिका 
जय जय चण्डिका 
नम:त्वम चण्डिका |
           २०५ 
देवी की स्तुती
गाये सब गण भी
देवगण  भी
गाये त्रिशूल धारी
गाये ब्रह्मा विष्णु भी |

     ---इति---

दुर्गा पूजा और दशहरा का हार्दिक शुभकामनाएं !


कालीपद "प्रसाद "
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शुम्भ निशुम्भ बध :भाग ९

                                                  

        आप सबको शारदीय नवरात्रों  ,दुर्गापूजा एवं दशहरा की   शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर   बधकी  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०5    तांका पद हैं ! आज नवमी और दशमी दोनों है | दशहरा भी आज है ! इसलिए भाग ९ और भाग 10 (अन्तिम भाग ) आज ही दो अलग अलग पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी समाप्त हुआ !


    भाग ८ से आगे
     १६३
दैत्यराज ने
दस भुजा से फेंका
चक्र सहस्र
बना चक्र का जाल
आच्छादित भवानी |
       १६४
माता दुर्गा ने
काट दिया चक्रों को
वाण वर्षा से
निशुम्भ देखकर
गरजे भयंकर |
       १६५
बध करने
महा चण्डिका देवी
वेग से दौड़ा
उत्तेजित असुर
हाथ में लिए गदा |
       १६६
देवी चंडी ने
काट डाली गदा को
तलवार से
महादैत्य क्रोधित
शूल हाथ में लिया |
      १६७
चंडिका ने भी
वेग से फेंका शूल
लक्ष निशुम्भ
शूल से छाती छेद
गिर पड़े निशुम्भ |
       १६८
दूसरा एक
महावली असुर
प्रगट हुआ
दैत्य वक्षस्थल से
निशुम्भ के ही जैसे |
      १६९
कहा उसने ....
खड़ी रह आता हूँ
कहाँ भागोगी ?
सुनकर उसको
जोर से हँसी देवी |
         १७० 
खड्ग से काटा
मस्तक असुर का 
गिरा भू पर
तदनंतर सिंह
उसको खाने लगा |
          १७१
शिवदूती ने
दुसरे दैत्यों का भी
भक्षण किया
कुमारी की  शक्ति से
दैत्य हत अनेक |
          १७२
माहेश्वरी ने
त्रिशूल द्वारा किया
शत्रु हनन
बाराही के थूथुन
किया दस्यु  हनन !
        १७३
वैष्णवी ने भी
टुकड़े टुकड़े की
बहु दैत्यों को
मन्त्रपूत जल से
ब्राह्मणी की निस्तेज
        १७४
ऐन्द्री के हाथ
 बज्र से हताहत
हाथ धो बैठे
महादैत्य अनेक
खुद प्रिय प्राण से |
         १७५
असुर नष्ट
कुछ बचाके प्राण
किया प्रस्थान  
कुछ बने भोजन
काली ,सिंह के ग्रास |
       १७६
शम्भू बध

निशुम्भ हत
सेना क्षत विक्षत
शुम्भ कुपित
शुम्भ किया गर्जन
इकट्ठा सेना फिर |
       १७७
कहा शम्भू ने
बल का अभिमान
झूठ मुठ का
मुझे न दिखा दुर्गे
दम्भ तोडूंगा तेरा |
        १७८
तू सोचती है
तू बड़ी मानिनी है
तू है निर्बला 
लडती है लेकर
दुसरे स्त्री सहारा |
        १७९
कहा देवी ने
दुष्ट ! मैं अकेली हूँ
देख ध्यान से
देख ,ये सब रूप
है विभूतियाँ मेरी  |
         १८०
तदनंतर
ब्राह्मणी शिव आदि
सब देवियाँ
देवी के शरीर में
शीघ्र लीन हो गई |
       १८१
अम्बिका एक
देवी ही रह गई
देख ऐ दुष्ट !
कहा देवी ने चीखा
मैंने लिया समेट |
      १८२
सब रूपों को
अब अकेली ही हूँ
युद्ध में खड़ी
संभल जा अब तू
आसन्न मृत्यु तेरा !


नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं !
        
 क्रमशः

कालीपद "प्रसाद'
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Wednesday 1 October 2014

शुम्भ निशुम्भ बध :भाग ८

                                              



आप सबको शारदीय नवरात्रों  ,दुर्गापूजा एवं दशहरा का  शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं ! दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !


  भाग 7 से आग
   निशुम्भ बध

        १४३
विशाल सेना
रक्तबीज समेत
हुए निष्प्राण
देख शुम्भ निशुम्भ
क्रोधित भयंकर |
        १४४
दैत्य प्रधान
निकुम्भ अमर्ष में
सेना के साथ
दौड़ा देवी की ओर
पार्श्वभाग में सेना |
         १४५
सेना के साथ
पराक्रमी शुम्भ भी
मात्री गणों से
युद्ध के लिए आया
मारने चण्डिका को |
                            १४६                               
चण्डिका संग 
शुम्भ निशुभ घोर
संग्राम किया
वे दोनों महा दैत्य
वाणों की वृष्टि किया |
            १४७
मेघों की भांति
वाण वर्षा झुण्ड को
निरस्त किया
चण्डिका ने वाणों से
अन्य अस्त्रों शास्त्रों से |
           १४८-149
चोटिल किया
दैत्य पति अंगों को
जख्मी असुर
निशुम्भ तलवार
सिंह मस्तक पर .....
किया प्रहार
अपने बाहन को
घायल देख
वाण से निशुम्भ की
तलवार काट दी |
      १५०
निशुम्भ शूल
चलाये देवी पर
चलायी  शक्ति
चक्र और मुक्के से
देवी ने चूर्ण किया |
     १५१
गदा फरसा
देवी के त्रुशुल से
भस्म हो गया
वाण वर्षा से बींध
गिरा दिया भू पर |
        १५२
मुर्च्छित भाई
शुम्भ क्रोध बढाई
सीमा के पार
अम्बा देवी का बध
मन में लिए साध |
          १५३
बढ़ाया पग
रथ पर आरूढ़
श्रेष्ट आयुध
सुसज्जित सारथि
वह अद्भुत शोभा |
        १५४
शंख बजाया
देवी ने उसे देखा
चढ़ा प्रत्यंचा
धनुष की टंकार
दुस्सह शब्द किया |
          १५५
घंटा ध्वनी  से
दिशाएँ की गुंजित
महादेवी ने
दैत्य तेज बिनष्ट
की सम्पूर्ण रूप से
          १५६
तदनंतर
सिंह ने की गगन
भेदी दहाड़
सुनकर जिसको
टुटा गज का मद |
        १५७
इससे हुआ
शुम्भ को बड़ा क्रोध
थर्राया दैत्य
देवी ने कहा ,-रुक
दुरात्मन असुर |
         १५८
शक्ति चलायी
दैत्यराज शुम्भ  ने
ज्वाला से युक्त
अग्निमय शक्ति को
देवी ने हटा दिया |
           १५९
शुम्भ गर्जन
प्रकम्पित त्रिलोक
प्रतिध्वनी से
बज्रपात समान
भयंकार आवाज़|
         १६०
काटा देवी ने
शुम्भ के वाण वृष्टि
कोटि वाणों से
क्रोध में भरी हुई
चण्डिका महादेवी |
        १६१
दैत्य शुम्भ को
शूल मारा तेजी से
शुम्भ मुर्च्छित
भू पर गिर पडा
भीषण आघात से |
         १६२
चेतना लौटी
अनुज निशुभ को
इसके बीच
हाथ में ले धनुष
की घायल सिंह को |

नवरात्रों की हार्दिक  शुभकामनाएं

क्रमशः

कालीपद'प्रसाद "
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