Sunday, 27 October 2019

गीत


गीत –दिवाली मात्रा (१०,१६)


दीपों का उत्सव, घर घर झिलमिल अब दीप जले
इस दिवाली में, एक दीप झोपडी में जले |

कोने कोने में, महलों के, फ़ैल गया प्रकाश
धनी रहनुमा के, घरों में है, लक्ष्मी का बास |
जगमगाते महल पास, अँधेरी झोंपड़ी मिले  
इस दिवाली में, एक दीप झोंपडी में जले |

नया वस्त्र आवृत, नया आभूषण तनपर सजे
घर आँगन मंडप, में हर कोई लक्षी पूजे
माँ लक्ष्मी तुम अब, महल से उतर अहले–गहले
झुग्गी में आओ, एक दीप झोंपड़ी में जले | 

अभागा देश के, स्वार्थी आकाओं धीर धरो
गरीब ने तुमको चुनकर भेजा, कुछ भला करो
भूखे हैं सब, यहाँ सबके सब हैं दिल जले
इस दिवाली में, एक दीप झोपडी में जले |

कालीपद 'प्रसाद'






Saturday, 26 October 2019

ग़ज़ल


२१२२ १२१२ २२ (११२)
जीत पर मित्र वाह वाह न की
तोहफे पर अदू ने’ डाह न की |
मुश्किलों से नजात चाह न की
जीस्त में कोई’ भी गुनाह न की |
छोड़ने का वो’ फैसला उसका
खुद ब खुद सब किया, सलाह न की |
प्यार तो था नहीं कभी मुझसे
उसने’ अच्छा किया निबाह न की |
बेवफा तो नहीं, न विश्वासी
पहले उसने कभी अगाह न की |
जल प्रदूषित कभी न हो. गर
गंगा’ में शव कभी प्रवाह न की |
भौंरे’ संसार में बहुत ‘काली’
जिंदगी में कभी विवाह न की |
कालीपद 'प्रसाद'

Friday, 25 October 2019

ग़ज़ल

२१२२/११२२ ११२२ ११२२ २२
प्यार जिसको मिला’ खुश्बख्त बड़ा होता है
जिसे’ दुत्कार मिला दिल का’ जला होता है |
जीस्त जिसने दिया’ वो कष्ट दिया जीवन में
और कोई नहीं बस जंद खुदा होता है |
आपसे क्या कहूँ’ बर्बाद किया जीवन को
बेवफा प्यार भी’ दर्दीला’ क़ज़ा होता है |
जिंदगी में जिन्हें’ सुख ही मिला’,सब है कच्चे
शुद्ध सोना सदा’ तपकर ही’ खरा होता है |
रहनुमा हो या’ सनम वादे’ किया करते हैं
सभी वादे न निभाये तो’ दगा होता है |
काम जनता के‘ बहाने किया’ करते नेता
पर दिलों में स्वयं का स्वार्थ छुपा होता है |
और क्या क्या छुपा रक्खा है ? बताओ ‘काली’
राज है जो छुपा, जनता को’ पता होता है |
शब्दार्थ =
खुश्बख्त= भाग्यशाली
जंद = महान
क़ज़ा =आँख में पड़ा कचडा, मौत
कालीपद 'प्रसाद