Sunday 31 December 2017

ग़ज़ल

अहबाब की नज़र
जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त
हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |
एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती
किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |
दोस्ती है नाम के, मैत्री निभाने में नहीं
वक्त मिलते ही शिकायत, और ताने मारे’ दोस्त |
कृष्ण अच्छा था सुदामा से निभाई दोस्ती
ऐसे’ इक आदित्य ज्यो हमको मिले दीदारे’ दोस्त |
संकटो में साथ दे ऐसा ही’ साथी चाहिए
जिंदगी भर दुःख के साथी है’ वो गम ख्वारे’ दोस्त |
एक या दो चार दिन की दोस्ती अच्छी नहीं
जीस्त भर ‘काली’ खरा यारी निभाने लारे’ दोस्त |
कालीपद 'प्रसाद'

Thursday 7 December 2017

ग़ज़ल

किसी को’ भी’ नेता पे’ एतिकाद नहीं
प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |

किये तमाम मनोहर करार, सब गए भूल
चुनाव बाद, वचन रहनुमा को’ याद नहीं |

गरीब सब हुए’ मुहताज़, रहनुमा लखपति
कहा जनाब ने’ सिद्धांत अर्थवाद नहीं |

जिहाद हो या’ को’ई और, कत्ल धर्म के’ नाम
मतान्ध लोग समझते हैं’, उग्रवाद नहीं  |

कृषक सभी है’ दुखी दीन, गाँव में बसते
वो’ घोषणाएँ’ भलाई की’, ग्राम्यवाद नहीं |

हरेक धर्म में’ कुछ बात काबिले तारीफ़
को’ई भी’ धर्म कभी होता’ शुन्यवाद नहीं |

को’ई भी’ बात में’ विश्वास जो करे बिना’सोच
इसे कहे सभी’ धर्मान्ध, वुद्धिवाद नहीं  |

करे यकीन सभी वाद में, सही हैं’ सभी
विवेक पर करे’ विश्वास, भूतवाद नहीं|

सभी चुनाव सभा में बवाल हो जाते
कि धर्म जलसा’ में’ कुछ फ़ित्ना’-ओ-फसाद नहीं |

 शब्दार्थ अर्थवाद= पूंजीवाद    
 ग्राम्यवाद-गाँव/गाँववासी की बराबर उन्नति के कार्य   
शुन्यवाद=जिसमे ज्ञान और सत्य का कोई मूल और
वास्तविक आधार न हो |

भूतवाद=भौतिकवाद 
कालीपद 'प्रसाद'

Wednesday 6 December 2017

ग़ज़ल

तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं
मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |
वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर
इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |
वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी
जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |
जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में
हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं |
अल्लाह ने दिया मेरा’ जीवन, करीम हैं
उन्नत नसीब लान से ऊपर नहीं हूँ’ मैं |
समझो मुझे प्रवाहिनी’ सरिता, बुझाती’ प्यास
खारा नमक भरा हुआ’ सागर नहीं हूँ’ मैं |
हर बात पर विकाश की’ बातें नहीं मैं’ की
मंत्री या’ बेवफा को’ई’ रहबर नहीं हूँ’ मैं |
इस देश की वजूद, हिफाज़त के’ वास्ते
खुश हो चढ़ूँ सलीब पे’, कायर नहीं हूँ’ मैं |
शब्दार्थ : लान=आजार वैजन के खुबसूरत पर्वत
रहबर-नेता ,अगुआ ; सलीब=सूली
कालीपद'प्रसाद