Tuesday 26 March 2013

धर्म क्या है ?


चित्र गूगल से साभार 


धर्म क्या है ?
वे करणीय कर्म है ..........
करने पर मिलती है मन को शांति
सीमित नहीं ,असीमित ,अनंत, शाश्वत शांति ,
मिलती है आत्मा को परमात्मा ,
होता है आत्मा और परमात्मा का पूर्ण मिलन।
इसे "मोक्ष" कहते है ज्ञानीजन।
धारणा  है ,मान्यता है ...
आत्मा का योनियों में आना जाना रुक जाता है ,
मुक्त होता  है "जनम -मृत्यु" का बंधन। 

निरन्तर शाश्वत अनन्त  शांति
चाहता है प्राप्त करना  हर नर नारी।
एक नहीं, पथ है अनेक इसका
उस असीम ,अन्तरिक्ष तक पहुँचने का।
कोई पथ किसी महा मानव  का मत है
कोई पथ किसी समूह का सामूहिक अनुभव है।
कुछ कांटे है तो कुछ फुल भी है
कंकड़ पत्थर भी पथ पर है,
हर पथ पर कुछ अर्थहीन,भाव हीन
कर्मकांडों का उलझे जाल है।
कोई पथ   अच्छा या कोई बुरा पथ नहीं है
इसपर चलने वालों ने ही
इसे बुरा, भला बनाया है।
गर ,पथ शाश्वत शांति तक ले जाय
पथ अच्छा है,
अन्यथा वह भूलभुलैया है,भ्रामक है।

अनन्त  अदृश्य सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान
विस्तार है विश्व ब्रह्माण्ड और
सीमित है क्षुद्र परमाणु कण।
यही है आस्था
यही मंजिल है
यही अंतिम पड़ाव है
हर पथ का
कहते हैं इसको गॉड ,अल्लाह ,भगवान
भक्तजन  कहते है इसे कण कण में  भगवान।



रचना : कालीपद "प्रसाद'"  
©सर्वाधिकार सुरक्षित





Friday 22 March 2013

भक्तों की अभिलाषा



राम   रहीम . ईश्वर  अल्लाह .  पूरी कायानात में एक ही ईश्वर के अलग अलग नाम है .हर धर्म का मूल मंत्र भी यही है . जिसे हम धर्म कहते है ,वास्तव वह में वे सब अलग अलग पथ है उस परमेश्वर तक पहुँचने के लिए .धर्म तो एक ही है ,मनुष्य धर्म ,,,,,,,,,,,, मनुष्य मनुष्य में प्रेम का भाव फैलाते हुए ऐसा काम करना जिस से हम ईश्वर को खुश कर सके। लेकिन कुछ स्वार्थी  तत्व अपने स्वार्थ के लिए भोलीभाली भक्तों को गुमराह करते है और अलग अलग  धर्मो में लड़ाई झगडा करवाते है .क्या  इस से ईश्वर  ,अल्लाह खुश होते हैं Æ 
                    



            Ba@taoM kI AiBalaaYaa


ihndu:       “maisjad kao taoD,nao kI
            Sai@t dao ho² [-Svar.”
mausalamaana:   “Allaah maohrbaana hao
             Kak maoM imalaa du^
             maMidr kao taoDkar.”
 नास्तिक       ihndu nao p`aqa-naa kIÊ
                 mauslaIma nao duAa maa^gaIÊ
                 ApnaI ApnaI saflata
                 ko ilae [-Svar Allaah sao.

Ba@taoM kI AMQaa Bai@t doK kr,
]nakI ivanaaSakarI [-rada jaanakr,
[-Svar­ Allaah Ba`imat hue
nahI ptaÊ  KuSa yaa naaraja hueÊ
pr maMidr maisjad daonaao TuT gaeÊ
[-Svar ­Allaah daonaao baoGar hue
ihndu mauislama KuSa hue.

KuSa ² ha^ KuSa hI tao hue
daonaao nao ApnaI ApnaI
saflata kI kamanaa kI qaI
daonaao safla hue  AaOr
Apnao Apnao AaraQya kao
KnDhr maoM laakr KDa ike.
            laoikna²
            taD,nao vaalaao ² jara zhrao²
            jara puCao Apnao KUda sao
            AaOr pUCao Apnao [-Svar sao
            Agar [nho tuD,vaanaa hI qaa
            tao @yaaoM banavaayaa qaa
            Apnao AnauyaayaI saoÆ

            [-Svar ­Allaah @yaa tora hI naamaÆ
            yiad ha^²
            tao AnauyaayaI toro @yaaoM hO naadanaÆ
            @yaaoM nahI dota [nho
            sauvauiQd AaOr idvya&ana Æ
            @yaaoM nahI batlaata [nho ik
            tu hI rhIma AaOr tu hI rama.

jaat pat }^ca naIca ka
ivaYa fOlaanao vaalaoÊ
dUsaraoM kao naaistkÊ kafIr
khnao vaalao
rama rihma ko naama sao
samaaja kao TukD,,ao maoM
baa^Tnao vaalaoÊ
toro hI naama sao tuJao
QaaoKa donao vaalaoÊ
@yaa sacamauca Ba@t hOM yao toroÆ

yao naadana hOM¸ naasamaJa hOM,¸
saMkuicat hOM [nako ivacaar¸
KUd hI Ba`imat hOM @yaa kroMgao
tora maihmaa p`caarÆ
                      
           balaI kao praijat ikyaa qaa
           tu nao baamana banakr
           AaiSavaa-d idyaa ]sao
           Paatala jaaAao pa^ca &anaI laokr.
           ho [-Svar²
           balaI gayaa patala &ainayaaoM ko saaqa
           AaOr rh gayaa tu Qara pr
           saaO kraoD, mauKao- ko saaqa.

mauK- jaao tuJao dovata samaJaa
isaf- ima+I AaOr p%qar kaÊ
inaja-Iva mautI- baMd maMidr ka¸
AaOr KUda samaJaa
KalaIpna maisjad ka¸
ijasaka AiQakar isaf- [tnaa
 ik
saubah Saama sabakao Tukuur ­Tukur doKnaa
kuC na khnaa AaOr
maMidr ­maisjad ko JagaD,ao ka
maUk saaxaI bananaa.


कालीपद "प्रसाद" 
©सर्वाधिकार सुरक्षित 

Saturday 16 March 2013

ऋण उतार!

 

चित्र गूगल से साभार 

 

 

ऐ !मेरे सपने !

तू क्यों आता है बार बार ?

ले जाता है मुझे 

उस जगह पर 

जहाँ मैंने एक पौधा लगाया था ,

आज वह विशाल वृक्ष बन गया है ,

पक्षियों को रात का  आसरा और 

 दिन के तपती धुप में 

पंथियों को शीतल छाया देता है।

 

एक आम का पौधा 

जिसे मैंने सींच सींच कर 

गुड़ाई कर खाद डालता था 

उसके किसलयों को देखकर 

मन ही मन खुश होता था ,

आज फल से लदकर  

झुक गया है।

बच्चे ,जवान बूढ़े,पशु ,पक्षी सब 

खुश हैं ,

उसके मीठे फल खाकर पूर्ण तृप्त हैं। 

उसे भी ख़ुशी होती होगी जानकर 

उसका फल किसीका पेट भर रहा है।

मुझे भी गर्व होता है सोचकर कि 

मैंने उसे लगया था।

मन में अपार  शान्ति है  कि 

मैंने अपना ऋण उतार दिया है 

क्योकि मैंने भी आम खाया था 

किसी और पेड़ का 

जो मैंने नहीं लगाया था 

किसी और ने लगाया था।  

 

 

रचना : कालीपद "प्रसाद"       
 ©सर्वाधिकार सुरक्षित

 

  

 

Wednesday 13 March 2013

उड़ान

आज कल के बच्चों को बचपन से ही महत्वकांक्षी बनाया जाताहै।  उसमें बच्चों का कम, माता पिता का महत्वकांक्षा ज्यादा होता है। वे यह भूल जाते है कि प्रतिभा सब बच्चों में एक समान नहीं होती ।बच्चों में जितना सामर्थ है, मंजिल उनसे कही ज्यादा ऊंचाई पर होती  है। बच्चे उड़ान तो भरते है अपनी पूरी ताकत लगा कर ,परन्तु उनकी मानसिक एवं शारीरिक, दोनों शत्कियाँ जब जवाब दे देती है तो उन्हें निराशा  होती है।उनमे हीन भावना घर कर जाती है।इसलिए  उन्हें सावधान करना भी जरुरी है कि  जिन्दगी में समझौता  करना और असफलता को स्वीकार करना भी सीखना चाहिए।

चित्र गूगल से साभार 


                     उड़ान 



ऐ पंछी इतना उड़ना, जितना तुम्हारी मर्जी हो
पर साँझ ढले नीड़ पर लौटना है ,इसका तुम्हे इल्म हो।

उड़ो जहाँ तक नज़र जाय , अनंत उन्मुक्त आकाश में
पर इतना भी दुर मत जाना ,पंख इनकार दे लौटने में।

सीमित शक्ति है पंख में .मिशन है नापना सीमांत नभ को
कहीं निराश न होना पड़े ,चुनौती दी गर रब को।

हिम्मत अदम्य है ,उमंग असीमित है ,चाहत भी बेइंतहा
किन्तु नभ को पार  कर सके ,नहीं शक्ति पंख में इतना ।

अभिलाषा ,हिम्मत, उमंग जरुरी है ऊँची उड़ान के लिए
समझौता, स्वीकृति भी चाहिए निराशा से बचने के लिए।

जहाज की पंछी चाहती है, पार कर जाय   समंदर
कुछ दूर जाकर थक जाती है ,लौट आती है जहाज पर।


रचना : कालीपद "प्रसाद"       
 ©सर्वाधिकार सुरक्षित




 

Saturday 9 March 2013

महाशिव रात्रि


                                                          ॐ नम : शिवाय 
महाशिव रात्रि में शिवजी की पूजा न केवल भारत में  वरन पूरा विश्व में होती है , जहाँ हिन्दू है।  शिव जी के  बारे में भिन्न भिन्न बिचार पढने को मिलता है।  कोई कहते है देवादि देव महादेव है। यही हैं  सब देवतावों में श्रेष्ट ।इन्ही के आदेश से ब्रह्मा जी  सृष्टि की रचना करते हैं।विष्णु भगवान  उस रचना का देखभाल करते है। शिव जी  के इच्छा  से पुरानी ,अनोपयोगी रचनाएँ विनाश को प्राप्त होता है और  नई  सृष्टि होती है। शिव जी की पूजा शिवलिंग के रूप में किया जाता है। जिसे हम शिव लिंग कहते है ,वह् केवल शिव लिंग  नहीं वह तो संगम है शिव और पार्वती लिंगो का ,प्रतीक है नई सृष्टि का। इसलिए शिव संहारक नहीं सिरजनहार है। .
चित्र गूगल से साभार 


ईश्वर कौन हैं ? कहाँ हैं ? कैसा सुन्दर रूप है ?
इंसान में हमेशा इन्हें जानने का कौतुहल है ।
कोई कहता ईश्वर है आत्मा ,वही है परमात्मा,
मन है उसका मंदिर,मस्जिद,वही है गुरुद्वारा।
मन जब प्रसन्न होता है ,घर आँगन महकने लगते हैं,
धरती ही स्वर्ग , धरती ही गोलकधाम  लगने लगते हैं।
कपोल कल्पित रमणीय स्वर्ग किसी ने ना  देखा ,
धरती का कैलाश ,मानसरोवर ,वैतरणी गंगा देखा।
मानो तो स्वर्ग यही है ,नरक यहीं है ,यहीं हैं भगवान
तन मन से निरोगी स्वर्ग भोगते ,नरक का कष्ट लालची इंसान।
प्रकृति पोषण करती जग को, बनकर शस्य श्यामला धरती
रहस्यमय ,विकराल रूप इसका ,जब वह प्रलयंकारी होती।
प्रकृति ही सृष्टिकर्ता  है, वही है  विष्णु पालनहार  ,
सडा ,बिगड़ा ,बेकार सृष्टि को शिव  करते है संहार।
प्रकृति ही ब्रह्मा  ,प्रकृति ही विष्णु , प्रकृति ही हरिहर
एक ही ईश्वर तीन  रुप में ,रचते,पालते ,करते है संहार।
ना शिव , ना लिंग ,यह लिंग संगम है शिव-पार्वती का
यह प्रतीक है, यह श्री गणेश है ,नई नई सृष्टि का।
तैंतीस कोटि देव देवी हैं ऐसा मानते है सारे संसार .
एक ही शिव है द्वीतीय नास्ति जग के सिरजनहार।


 रचना : कालीपद "प्रसाद'\
            सर्वाधिकार सुरक्षित 




Sunday 3 March 2013

होली

चित्र गूगल से साभार 


आई होली का त्यौहार                     झूमे मस्ती में ग्वालबाल
                          उड़े हवा में  गुलाल।
होली मस्ती  का त्यौहार              है रंगों का बहार 
                      नीले  ,पीले ,हरे और लाल।
मन में  भरा उमंग तरंग            नाचे सब संग संग
                      जोरसे बोले जय कन्हैया लाल।

गोप नाचे  गोपी नाचे              गाँव के बाल वृद्ध नाचे
                    नन्द नाचे  और नाचे नन्दलाल।
ढोल बाजे मृदंग बाजे              बाजे खोल करतल
                   झूम उठे वृदावन  ,सब है बेहाल। 
कोई मारे पिचकारी                कोई  मले  गुलाल
             रंग में डूबे ऐसा लगे, सब है नंदलाल। 


नटखट है यशोदा लाल          मले फ़ाग गोपियों के गाल 
              गोपियाँ ना  पकड़ पाय कभी, हरि।
भर भर कर पिचकारी            मारे गोपियाँ,  मारे  मुरारी
          भीगे सब साथ साथ, नहीं गोपियाँ एकाकी।
तन भीगे मन भीगे               भीगे चुनरी और चोली
     गोपियां भी मजे लेकर करती हरि  से ठिठोली।


राधारानी है  खड़ी अकेली         हाथ में लिए मोहन की मुरली
                   आँख में लिए सूरज का अंगार।
देखे कृष्ण को बार बार            नटखट कृष्ण जाने संसार
         कनखियों से देखे राई को मुस्कुराकर।

गुस्से में राई  तिलमिलाकर          खड़ी हो गई मुहँ  मुड़कर
                            लेकर गुलाबी गाल।
चतुर छैला  कृष्ण कन्हैया       पीछे से आकर
             मल  दिया गाल पर गुलाल।   

मारी पिचकारी                 भीगी राधा रानी
            डाले रंग ,राधे पर ,गोप गोपी।
राधे का अभिमान           कृष्ण किया भंग
                मन का अंगार हुआ शांत।
 होली का त्यौहार             त्याग मन का हलाहल
            नाचे गोप गोपी राधाकृष्ण संग।

झूले में बैठा कर          करे पुष्प-वर्षा राधाकृष्ण पर
               हर्षाये सब मन ही मन।
झुलाये गोप गोपी         झूले राधा रानी
             लेकर संग देवकी नन्दन।  


रचना : कालीपद "प्रसाद"       
 ©सर्वाधिकार सुरक्षित