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Monday, 24 July 2017

दोहे

मानव जीवन में सदा, कोशिश अच्छा कर्म |
मात पिता सेवा यहाँ, सदा श्रेष्ट है धर्म ||
प्रारब्ध नहीं, कर्म है, भाग्य बनाता कर्म |
पाप पुण्य होता नहीं, जान कर्म का मर्म ||
छुएगा आग हाथ से, क्या होगा अंजाम |
सभी कर्म फल भोगते, पाप पुण्य का नाम ||
बुरा काम का जो असर, उसे जान तू पाप |
है पुण्य नेक कर्म फल, करे दूर संताप ||
कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday, 20 June 2017

दोहे

दोहे ( दार्जिलिंग पर )
बेकाबू पर्वत हुए, प्रश्न बहुत है गूढ़
हिंसा से ना हल मिले, मसला है संरूढ़ |

स्वार्थ लिप्त सब रहनुमा, प्रजागण परेशान
जनता का हित हो न हो, उनकी चली दूकान |


दोहे (रिश्तों पर )
यह रिश्ता है एक पुल, मानव है दो छोर
व्यक्ति व्यक्ति से जोड़ते, इंसान ले बटोर |

रिश्ते में गर टूट है, समझो पुल बेकार
टूटा पुल जुड़ता नहीं, नागवार संसार | 

कालीपद प्रसाद'

Monday, 5 June 2017

विश्व पर्यावरण दिवस पर पांच दोहे

भावी पीढ़ी चाहती, आस पास हो स्वच्छ
पूरा भारत स्वच्छ हो, अरुणाचल से कच्छ |

हवा नीर सब स्वच्छ हो, मिटटी हो निर्दोष
अग्नि और आकाश भी, करे आत्म आघोष |* (खुद की शुद्धता की घोषणा उच्च स्वर में करे )

नदी पेड़ सब बादियाँ, विचरण करते शेर
हिरण सिंह वृक तेंदुआ, जंगल भरा बटेर |

पाखी का कलरव जहाँ, करते नृत्य मयूर
निहार अनुपम दृश्य को, मदहोश हुआ ऊर |


समुद्र की लहरें उठी, छूना चाहे चाँद
खूबसूरती सृष्टि की, भाव रूप आबाद |
कालीपद 'प्रसाद'

Thursday, 11 May 2017

दोहे

, गौतम बुद्ध के मूल उपदेश चार दोहे में ( एक प्रयास )
********************************
जाति क्षेत्र के नाम से, समाज को ना बाँट
धर्म पन्थ भाषा नहीं, दोष गुणों पर छाँट |

समता ममता सब रहे, भाव भावना मूल
एक बद्ध कर चेतना,  भेद भाव है शूल |

तृष्णा इच्छा मूल है, कारण सब दुख दर्द
दीप स्वयं अपना बनो, और बनो हमदर्द |

जीव कामना शून्य हो, अहंकार मिट जाय
शील प्रज्ञा साधना, समाधि एक उपाय |***

नाच गान जो भी किया, मानव सभी प्रकार
कीर्तन जैसा गान में, है आनंद अपार |


कालीपद ‘प्रसाद’

Sunday, 12 March 2017

व्यंग



दोहे (व्यंग )
हमको बोला था गधा, देखो अब परिणाम |
दुलत्ती तुमको अब पड़ी, सच हुआ रामनाम||
चिल्लाते थे सब गधे, खड़ी हुई अब खाट|
गदहा अब गर्धभ हुए, गर्धभ का है ठाट ||
हाथ काट कर रख दिया, कटा करी का पैर |
बाइसिकिल टूटी पड़ी, किसी को नहीं खैर ||
पाँच साल तक मौज की, कहाँ याद थी आम |
एक एक पल कीमती, तरसते थे अवाम ||
करना अब कुछ साल तक, बेचैन इन्तिज़ार |
खाकर मोटे हो गए , घटाओ ज़रा भार ||
*****
होली पर एक दोहा
*************
होली फागुन पर्व है, खेलो रंग गुलाल |
हार जीत है जिंदगी, रखना दूर मलाल ||
© कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday, 31 January 2017

हे राम जी ! सुनो

.

एक बार फिर राम जी,तारो नैया पार |
यू पी में सरकार हो, मंदिर हो तैयार ||
झूठ नहीं हम बोलते, पार्टीहै मजबूर |
हमें करो विजयी अगर,बाधा होगी दूर ||
जाति धर्म सब कट गया, वजह सुप्रीम कोर्ट|
आधार कुछ बचा नहीं, कैसे मांगे वोट ||
तुम ही हो मातापिता, बंधू भ्राता यार |
साम दाम या भेद हो,ले जाओ उस पार ||
मंदिर ज़िंदा जीत है, मृत मुद्दा है हार |
राम राम जपते रहो,होगा बेड़ा पार ||
© कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday, 3 January 2017

फल -महिमा -दोहे

मधुर आम उपवन उपज, करते सब रस पान |
तिक्त करेला कटु बहुत, करता रोग निदान ||
काला जामुन है सरस, मत समझो बेकार |
दूर भगाता मर्ज सब, पेट का सब बिकार ||
पपीता बहुत काम का, कच्चा खाने योग्य |
पक्का खाओ प्रति दिवस, है यह पाचक भोज्य ||
खट्टा मीठा रस भरा, अच्छा है अंगूर |
खाओ संभल के इसे, अम्ल कारी प्रचूर ||
मीठा होता सन्तरा, ज्यों अंगूर-शराब |
रस इसका खुल पीजिये, पाचन अगर ख़राब ||
कलिन्दा सभी मानते, उपज ग्रीष्मकालीन |
खाता हरेक चाव से, मुहताज या कुलीन ||
छाल इस पर हराभरा, अन्दर पूरा लाल |
रस पीओ ठण्डा करो, जैसा हो अनुकाल ||
रोगी सभी प्रकार के, करे सेवन अनार |
आंव,कब्ज कै दस्त भी, होता दूर विकार ||
द्रव्य पचाने में निपुण, गुणवान अनन्नास |
करता बाहर अम्लता, ऐसा है विश्वास ||
कदली खाओ प्रेम से, पर भोजन के बाद |
रिक्त पेट कदली सदा, करत काय बरबाद ||


@कालीपद ‘प्रसाद’

Monday, 12 December 2016

दोहे

नोट बंद जब से हए, लम्बी लगी कतार
बैंकों में मुद्रा नहीं, जनता है लाचार |
लम्बी लम्बी पंक्ति है, खड़े छोड़ घर बार
ऊषा से संध्या हुई, वक्त गया बेकार |
बड़े बड़े हैं नोट सब, गायब छोटे नोट
चिंतित है सब नेतृ गण, खोना होगा वोट |
नोटों पर जो लेटकर, लुत्फ़ भोगा अपार
नागवार सबको लगा, शासन का औजार |
तीर एक पर लक्ष्य दो, शासन किया शिकार
आतंक और नेतृ गण, सबके धन बेकार |
व्याकुल है नेता सकल, कैसे होगा पार
बिकते वोट चुनाव में, होता यह हर बार
सचाई और शुद्धता, प्रजातंत्र आधार
मिलकर सभी बना लिया, शासन को व्यापार |
जनता खड़े कतार में, चुपचाप इंतज़ार
संसद में नेता सकल, विपक्ष की हुंकार |
© कालीपद ‘प्रसाद’

Sunday, 18 September 2016

दोहे - (हिन्दी)

अर्ज करो भगवान से, वे हैं बड़े महान |
सफ़ल करे हर काम में, सबको देते ज्ञान ||

गए नहीं गर स्कूल तुम, आओ मेरे पास |
उन्नति होगी वुद्धि की, छोडो ना तुम आस ||

वर्णों का परिचय प्रथम, बाकी उसके बाद |
याद करो गिनती सही, होगे तुम आबाद ||

पढ़ो लिखो आगे बढ़ो, करो देश का नाम |
पढ़ लिख कर सब योग्य बन, करना विशेष काम ||

कभी नष्ट विद्या नहीं, होता है तू जान |
अनपढ़ लोगों के लिए, दुर्लभ होता ज्ञान ||

‘अ’ से अजगर ‘क’ से कलम, तनो ’त’ से तलवार |
सरहद पर जो हैं खड़े, कर रिपु का संहार  ||

योद्धा कभी न मानता, रण में अपनी हार

रक्षक हो तुम देश के, हो तुम अग्नि कुमार ||

कालीपद 'प्रसाद'

Wednesday, 14 September 2016

दोहे - आज का लोकतंत्र



प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज
वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज|
वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश
परदेशी हम देश में, लगता है परदेश|
लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग
हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग|
हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद
अंग्रेज भी किये नहीं, तू सुन अंतर्नाद|
संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार
स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार|
बना कर लोकतंत्र को, खुद की अपनी ढाल
लूट रहे नेता सकल, जनता का सब माल|
हर पद पर परिवार के, सदस्य विराजमान
विनाश क्या होगा कभी, रक्तबीज संतान?
प्रजा करे अब फैसला, करे साफ़ परिवार
जनता से मंत्री बने, मिले राज अधिकार |
© कालीपद ‘प्रसाद’

Monday, 22 August 2016

माँ

                                                                           
माँ

भाव भरा है मातृ दिल, बहता जैसे नीर
देख कष्ट संतान के, माता हुई अधीर

पशु पक्षी इन्सान में, माँ हैं एक समान
सबसे पहले सोचती, बच्चे उनकी जान

चिड़िया चुगती चोंच से, मिला चोंच से चोंच
माँ लाती चुन कर सकल, दाने है आलोच

कभी कहीं खतरा नहीं, जब माँ होती पास 
बच्चे इसको जानते, करते हैं अहसास

धन्य धन्य मायें सभी, धन्य सभी संतान
करती रक्षा प्रेम से, पक्षी या इन्सान

माता है सबसे बड़ी, दूजा हैं भगवान
शीश झुका आशीष लो, कर माँ का सम्मान 

©कालीपद ‘प्रसाद

Sunday, 21 August 2016

दोहे

  1. मौसम है बरसात का, मच्छर के अनुकूल
  2. डेंगू और मलेरिया , गन्दी नाली-कूल |
  3. मसक भगाने वास्ते, उत्तम पत्ती नीम   
  4. जलाओ इसे शाम को, नीम का गुण असीम 
  5. छत की टंकी साफ़ हो, घर में पहुँचे धूप
  6. बचने दोनों मर्ज से, करो कुछ दौड़–धूप 
  7. राग द्वेष सब दूर हैं, मन जब होता शांत  
  8. मन वश होता योग से, यही योग सिद्धांत |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Sunday, 14 August 2016

दोहे

दोहे !

भारत में हर मास में, होता इक त्यौहार
केवल सावन मास है, पर्वों से भरमार |1|
रस्सी बांधे साख में, झूला झूले नार
रिमझिम रिमझिम वृष्टि में, है आनन्द अपार |२|
जितने हैं गहने सभी, पहन कर अलंकार
साथ हरी सब चूड़ियाँ, बहू करे श्रृंगार |३|
काजल बिन्दी साड़ियाँ, माथे का सिन्दूर
और देश में ये नहीं, सब हैं इन से दूर |४|
कभी तेज धीरे कभी, कभी मूसलाधार
सावन में लगती झड़ी, घर द्वार अन्धकार |५|
दीखता रवि कभी कभी, जब है सावन मास
बहुत नहीं है रौशनी, मिलता नहीं उजास |६|


© कालीपद .’प्रसाद’

Thursday, 16 June 2016

दोहे !


पाप काटने के लिए, नहीं चढ़ाओ भेंट
शुद्ध सरल मन के बिना, मंज़ूर नहीं भेंट |११|
बिकता नहीं खुदा कभी, रुपये हो या माल
लोचन जल के बूंद दो, दर्शन करो कमाल |१२|
बढ़ते है पापी यहाँ, कौन करेगा नाश
हैं पौत्र रक्तबीज के, होयगा खुद विनाश |१३|
चढ़ा भेंट भगवान को, चाहते कटे पाप
घुस से कुछ होता नहीं, कटौती नहीं पाप |१४|
कर्म फल भुगतना यहीं, जानो यही विधान
क्षमा माँग सजदा करो, निष्फल होता दान |१५|

कालीपद'प्रसाद'

Sunday, 29 May 2016

दोहे !



बारिश बिन धरती फटी, सुखे नदीतल ताल
धरणी जल दरिया सुखी, झरणा इक-सी हाल |

बादल जल सब पी गया, धरा का बुरा हाल
कण भर जल नल में नही, तृषित है बेहाल |

श्याम मेघ बरसो यहाँ, धरती से क्या बैर
अटल सत्य मानो इसे, हम तुमकु किये प्यार |

कहीं बाड़ें कहीं सुखा, सोचो मुक्ति उपाय
कम से कम जल वापरे, इ है उत्तम उपाय |

अतिशय गरमी आज है, चरम छोर पर ताप
खाली नल में मुहँ लगा, प्यासा करे संताप |

रवि है आग की भट्टी, बरस रहा है आग
झुलस रहा है आसमाँ, जलता जंगल बाग़  |

नहा कर वर्षा नीर से, फलता वृक्ष फलदार
फूल के हार से धरा, करती है श्रृंगार |

जल है तो सब जान है, जल बिन सब है मृत
मरने वालों की दवा, नीर ही है अमृत |


© कालीपद ‘प्रसाद”