हम-तुम अकेले |
महानगरों में नागरिकों की सुविधा के लिए जोगिंग पार्क होते है | अधिकतर पार्कों में एक कोना बुजुर्गों (सीनियर नागरिक )के लिए बनाया गया है | बुजुर्ग लोग इसी कोने में एकत्र होकर अपने सुख दुःख की बाते करते हैं| हैदराबाद के एक पार्क में बैठ कर एक बुज़ुर्ग दम्पति के जो दुःख दर्द मुझे महसूस हुआ ,उसे मैं इस कविता में ढाला है | यह केवल इनके दर्द नहीं है ,ऐसे अनेक दंपत्ति मेरे आसपास रहते है जिनमे से बहुतों को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ,यह दर्द उनलोगों का भी है |इसे देखकर संयुक्त परिवार के लाभ याद आती है |
आया है हर कोई अकेला
जाना भी है हर को अकेला
किस बात का दुःख है तुम्हे
प्रिये ! जरा सोचकर बताना |
मिला साथ मेरा तुम्हारा
हमने बांधा एक आशियाना,
चूजों के जब पंख होगा
उन्हें तो है उड़ जाना |
लड़की होगी ,ब्याह होगी
जायेगी वह साजन के देश,
लड़का होगा ,पढ़ लिख कर
वो भी जायेगा विदेश |
मैं और तुम रह जायेंगे
जब तक हमें है जीना,
जब होंगे लाचार,अचल
आएगा क्या कोई अपना ?
कौन होगा अपना यहाँ
सिवा मैं तुम्हारे ,तुम मेरे लिए
इस आशियाना में काटेंगे दिन
हम, एक दूजे के लिए |
चित्र गूगल से साभार
कालीपद "प्रसाद"
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