बारिश बिन धरती फटी,
सुखे नदीतल ताल
धरणी जल दरिया सुखी,
झरणा इक-सी हाल |
बादल जल सब पी गया,
धरा का बुरा हाल
कण भर जल नल में
नही, तृषित है बेहाल |
श्याम मेघ बरसो
यहाँ, धरती से क्या बैर
अटल सत्य मानो इसे,
हम तुमकु किये प्यार |
कहीं बाड़ें कहीं
सुखा, सोचो मुक्ति उपाय
कम से कम जल वापरे,
इ है उत्तम उपाय |
अतिशय गरमी आज है,
चरम छोर पर ताप
खाली नल में मुहँ
लगा, प्यासा करे संताप |
रवि है आग की भट्टी,
बरस रहा है आग
झुलस रहा है आसमाँ,
जलता जंगल बाग़ |
नहा कर वर्षा नीर
से, फलता वृक्ष फलदार
फूल के हार से धरा,
करती है श्रृंगार |
जल है तो सब जान है,
जल बिन सब है मृत
मरने वालों की दवा,
नीर ही है अमृत |
© कालीपद ‘प्रसाद”