Friday 30 June 2017

उपन्यास "कल्याणी माँ"

एक खुश खबर !
प्रिय मित्रो , आपको यह खुश खबर देते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि मेरा उपन्यास "कल्याणी माँ' प्रकाशित हो चुका है और amazon.in and flipkart.com में उपलब्ध है | इसका लिंक नीचे दे रहा हूँ | गाँव की एक गरीब स्त्री जिसने सदियों पुरानी परम्पराओं को तोड़कर नई राह बनाई ,और लोगो की प्रेरणा बन गई ,उसकी कहानी एकबार जरुर पढ़िए | मुझे विश्वास है कि कभी आप उसके साथ हँसेंगे तो कभी उसके साथ रोयेंगे |
http://www.bookstore.onlinegatha.com/boo…/…/Kalyani-Maa.html



कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday 20 June 2017

दोहे

दोहे ( दार्जिलिंग पर )
बेकाबू पर्वत हुए, प्रश्न बहुत है गूढ़
हिंसा से ना हल मिले, मसला है संरूढ़ |

स्वार्थ लिप्त सब रहनुमा, प्रजागण परेशान
जनता का हित हो न हो, उनकी चली दूकान |


दोहे (रिश्तों पर )
यह रिश्ता है एक पुल, मानव है दो छोर
व्यक्ति व्यक्ति से जोड़ते, इंसान ले बटोर |

रिश्ते में गर टूट है, समझो पुल बेकार
टूटा पुल जुड़ता नहीं, नागवार संसार | 

कालीपद प्रसाद'

Friday 16 June 2017

अतुकांत कविता

जीवन क्या है ?
वैज्ञानिक, संत साधु
ऋषि मुनि, सबने की
समझने की कोशिश |

अपनी अपनी वुद्धि की
सबने ली परीक्षा
फिर इस जीवन को
परिभाषित करने की,
की भरषक कोशिश |

किसी ने कहा,’मृग मरीचिका’
कोई इसे समझा “समझौता’
किसी ने कहा, “ भूलभुलैया”
“हमें पता नहीं, कहाँ से आये हैं
किस रास्ते आये हैं
किस रास्ते जाना है
यह भी पता नहीं
कहाँ जाना है |
जिसे हम देख रहे हैं, झूठ है
जो नहीं देख पा रहे हैं वो सच है |
बड़े बड़े साधू संत
वाइज और पादरी
का जवाब भी
एक नया भूलभुलैया है |

कई खंड काव्य
और महाकाव्य
लिखे गए है
इस भूलभुलैया पर |
किन्तु
सबके दिखाए गए मार्ग
अन्धकार के चिरकालीन
बंद दरवाज़े के पास जाकर
अंधकार में विलीन हो गए |  


कालीपद 'प्रसाद'

Wednesday 14 June 2017

ग़ज़ल

दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये
प्यार हो या न हो’ पर, आँख चुराते रहिये |
पाक बंकर की’ कहानी को’ सुनाते रहिये
कागजों पर उन्हें’ जंगों में’ हराते रहिये |
पांच के बाद अभी और भी’ सर ले तो क्या
देश की जनता’ को’ उपदेश सुनाते रहिये |
काश्मीरों की’ कहानी है’ सभी को मालुम
दोगली नीति वजह देश जलाते रहिये |
कुछ न सूझे तो’ मनोभाव को’ भड़का कर तब
धर्म के नाम से’ उत्पात मचाते रहिये |
वोट देकर अभी’ सबको हो’ रहा पछतावा
आपसी स्वार्थ में’ पकवान पकाते रहिये |
मर भले जाय बिना अन्न गरीब ओ मजदूर
आप तो श्वान को’ ही गोस्त खिलाते रहिये |
मिथ्या भाषण करे’ औ गाल बजाए ‘काली’
झूठ का सच बना’ जनता को’ बताते रहिये |
कालीपद 'प्रसाद'

Sunday 11 June 2017

ग़ज़ल

एक तर्ही ग़ज़ल
न उत्कंठा, न हो हिम्मत, नया क्या
न हो ज़ोखिम तो’ जीने का मज़ा क्या ?
चुनावी पेशगी में चीज़ क्या क्या
पुराने नोट अब भी कुछ बचा क्या ?
महरबानी ते’री झूठी ही’ लगती
है’ तू शातिर शिकायत या गिला क्या ?
निगाहें तेरी’ क़ातिल बेरहम किन्तु
बिना ये क़त्ल, मुहब्बत का नशा क्या ?
गज़ब का उसका’ चलना बोलना
इबारत क्या इशारत क्या अदा क्या ? ( गिरह )
कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday 6 June 2017

सरस्वती वन्दना (कुण्डलिया छंद में )




वर दे मुझको शारदे, कर विद्या का दान
तेरे ही वरदान से, लोग बने विद्वान
लोग बने विद्वान, आदर सम्मान पाये
तेरे कृपा विहीन, विद्वान ना कहलाये
विनती करे ‘प्रसाद’, मधुर संगीत गीत भर   
भाषा विचार ज्ञान, विज्ञानं का मुझे दे वर |
कालीपद ‘प्रसाद

Monday 5 June 2017

विश्व पर्यावरण दिवस पर पांच दोहे

भावी पीढ़ी चाहती, आस पास हो स्वच्छ
पूरा भारत स्वच्छ हो, अरुणाचल से कच्छ |

हवा नीर सब स्वच्छ हो, मिटटी हो निर्दोष
अग्नि और आकाश भी, करे आत्म आघोष |* (खुद की शुद्धता की घोषणा उच्च स्वर में करे )

नदी पेड़ सब बादियाँ, विचरण करते शेर
हिरण सिंह वृक तेंदुआ, जंगल भरा बटेर |

पाखी का कलरव जहाँ, करते नृत्य मयूर
निहार अनुपम दृश्य को, मदहोश हुआ ऊर |


समुद्र की लहरें उठी, छूना चाहे चाँद
खूबसूरती सृष्टि की, भाव रूप आबाद |
कालीपद 'प्रसाद'