Sunday 30 August 2015

क्षणिकाएँ

             

विवेक को बनाओ जज, मन होगा रस्ते पर
सचाई के संगत में, विवेक पहरेदार |
********************************
साम-दाम-दण्ड व भेद, स्वार्थ-नीति हैं सब
स्वार्थी नेता सोचते, उनके दास हैं सब |
********************************
नहीं धार्मिक यहाँ नर, हो गया साम्प्रदायिक
नफ़रत, हिंसा में विश्वास, विसरे आध्यात्मिक |
*********************************
कर्म से बढ़कर न धर्म, न आगे कोई तप
मानव बन जाते देव, पाते देव प्रताप |
*******************************
मानव की चाहत मोक्ष, नही छोड़ता मोह
कांचन, कामिनी और, लोभ बढ़ाते मोह |
*******************************
हिन्दू जपते राम नाम, ईशाई का गॉड
अनेक है नाम रब का, ईश्वर, अल्ला, गॉड |
*****************************
लोगों के दिलों को मैं, छूना चाहता हूँ
धर्म मार्ग में भरोसा, करना चाहता हूँ |
*******************************
मानव जीवन में करे, जो अच्छा कर्म यहाँ
उसे मिले मोक्ष जग से, मिले प्रशंसा यहाँ |
********************************
© कालीपद ‘प्रसाद’




Friday 28 August 2015

चाँद



पूर्णिमा का चाँद है

या दूध का कटोरा है

उबलता दूध ज्यों

चाँदनी का उफान है ,

धरती और अम्बर में

फ़ैल गयी है चाँदनी

रजनी भी ओड ली है

दुधिया रंग की ओडनी,

पवन भी मस्त है

रातरानी के इश्क में

अनंग को जगा रहा है

आशिकों के दिल में |

सागर भी उछल रहा है

चाहत है छुए चाँद को

लहर से पीट रहा है 

अपने विशाल सीने को |      

© कालीपद ‘प्रसाद’

Friday 21 August 2015

धर्म -प्रतिस्पर्धा नहीं है



                                           
विश्व धर्म–सभा में
हर धर्म के विद्वानों का
भाषण को रहा था,
अपने–अपने धर्म को
सर्वश्रेष्ट प्रतिपादित करने का
प्रयत्न हो रहा था |
धुरंधर विद्वान् अपने धर्म का
फ़लसफ़ा बता रहे थे
धर्म के मूल सिद्धांतों का
व्याख्या कर रहे थे |

हिन्दू संत ने कहा,
“हिन्दू धर्म सबसे पुरातन धर्म है,
सहज सरल है,
यह जीवन जीने की एक कला है ,
पूरा विश्व को अपना परिवार मानता है|”
पादरी पीछे नहीं रहे, कहा,
“ईसाई विश्व में सबसे बड़ा
और दयालु धर्म है,
आततायी को भी
क्षमा दान देता है|"
उलेमा ने कहा,
“इस्लाम की उम्र
भले ही सबसे कम है
किन्तु त्वरित विस्तार की
इसमें गज़ब की काबिलियत है,
लोगो में विश्वास उत्पन्न करता है|”

अंत में एक दर्शक आया
सच्चे दिल से अपना प्रतिक्रिया दिया,
कहा, “आदरणीय विद्वानों,
आपके सारगर्भित भाषणों को
तन्मय होकर हमने सुना सबको,
दिल में उन्हें आदर से बिठाया,
किन्तु,
दिल के एक कोने में
विद्रोही जनों की भांति
एक प्रश्न वहां तनकर खड़ा है |
कहता है,
नहीं बैठूँगा तबतक
जबतक मेरे प्रश्नों का,
मुझे सही उत्तर नहीं मिलता है |
कहता है मुझसे,
पूछो इन विद्वानों से
“पहुंचना है आप सबको
एक ही मंजिल पर ...
कोई जाता है रेल गाडी से,
कोई जाता है बस से,
और कोई जाता है हवाई जहाज से|
जाकर मिलते हैं सब
राहों के संगम पर
पूर्व निर्धारित मंजिल पर |
फिर जाने का माध्यम
अच्छा या बुरा कैसे हैं?
माध्यम कोई भी हो
क्या फरक पड़ता है ?
ज़रा बताइए,
यात्रा का माध्यम महत्त्वपूर्ण है ?
या मंजिल पर पहुंचना जरुरी है ?
यदि मंजिल ध्येय है
फिर ये माध्यम में प्रतिस्पर्धा क्यों है ?

ईश्वर के घर जाना है
कोई आगे कोई पीछे ,
समर्पित भक्त नहीं भागते
प्रथम या द्वितीय स्थान के पीछे ,
समर्पण भक्ति सागर की है धारा
है वह परमात्मा को बहुत प्यारा
बहाकर स्वत: ले जाता है वहाँ
जहां से उत्पन्न यह जग सारा |

प्रतिस्पर्धा में समर्पण नहीं है

इसमें जो उलझे रहते हैं

निश्चित ही परमात्मा की ओर
उनके कदम नहीं बढ़ पाते हैं,
प्रतिस्पर्धी का ध्यान
परमात्मा पर नहीं,
दुसरे प्रतिस्पर्धी पर
सतत लगा रहता है |
प्रथम स्थान पाने का
अहंकार को पोषित करता रहता है |

हे ज्ञानी जन !
मुझे बताएँ,
“क्या धर्म के राह में
प्रतिस्पर्धा की यह दौड़
जीवन में विक्षिप्तता
नहीं ला रही है ?”
 


© कालीपद ‘प्रसाद’

Monday 17 August 2015

कब मिलेगी इनसे आज़ादी ?





अंग्रेज़ शासक थे ,

बहुत रुढ़िवादी थे 

सोचते थे भारतवासी

कब मिलेगी इनसे आज़ादी ?

खाए सीने में गोली

खेले खून की होली

पर दिल में था अटूट विश्वास

लेकर रहेंगे अपनी आज़ादी |

साहस और शौर्य के आगे

अंग्रेज़ ने शीश झुकाया

पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालिश

भारत ने आज़ादी का जश्न मनाया |

परतंत्र से मिली आज़ादी

खुश हुई पूरी देश की आबादी

किन्तु बाकि अभी था बहुत 

नहीं मिली थी पूर्ण आज़ादी |

अंग्रेज़ चले गए ,पर

अंग्रेज़ियत पीछे छोड़ गए

कुर्सी पर बैठने वाले सब

हिन्दुस्तानी अंग्रेज बन गए |

पूछती है जनता .........

गरीबी,महंगाई,अनाज की बर्बादी

कब मिलेगी इनसे हमें आज़ादी ?

भ्रष्टाचार और घोटाला,

करते हैं अफसर और नेता

उसका दंड भोगते हैं

देश की निर्दोष जनता |

परेशां जनता कह रही है.....

स्वार्थी न बनो नेता, न जड़वादी

जातिवाद,सांप्रदायिक उग्रवाद से

युवा बन रहे हैं अब आतंकवादी ,

समाप्त करो भेद-भाव की नीति

बताओ ,कब मिलेगी इनसे हमें आज़ादी ?

जनता अब ऊब गई है

संसद के तू-तू,मैं-मैं से,

बच्चे खेलना भूल गए हैं

झगड़ने की कला सीख रहे हैं

जनता के प्रतिनिधि से |

जनता मानती संसद को

“एक मंदिर शिष्टाचार का 

किन्तु ,अब संसद बन गया

“कुस्ती का एक अखाड़ा” |


गरीबी ,महंगाई ,परिवारवाद

असुरक्षा,साम्प्रदायिकता,जातिवाद

खोखला कर रहे हैं हिंदुस्तान को,

जनता ने चुना तुम्हे ,हो उनके प्रतिनिधि

पूंजीवाद को छोड़ अब बनो जनवादी

बताओ, कब मिलेगी हमें उनसे आज़ादी ?


© कालीपद ‘प्रसाद’