Friday 26 April 2019

ग़ज़ल

इश्क में वह तुम्हारा दिवाना नहीं
डूबती नाव में बैठ रोना नहीं |
जो कभी कुछ कहें और फिर कुछ कहे
दो मुँहा आदमी दोस्त अच्छा नहीं |
एक पल तुम उसे आजमा देख लो
बात कर देख आशिक तुम्हारा नहीं |
देखता सर्वदा प्रेम की नज्र से
प्रेम का कोई’ भी तो इशारा नहीं |
जिंदगी मैं तुझे सौंपना चाहती
तेरे’ बिन मेरे’ कोई सहारा नहीं |
बेवफाई न मैंने कभी की सनम
मान लो बात मेरी बहाना नहीं |
खूब ‘काली’ तड़पता रहा अब तलक
भग्न संबंध को अब निभाना नहीं |
कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday 23 April 2019

ग़ज़ल


झूठ बोले धर्म आसन से जमाना क्या करें ?
अब खुदा भी हो गए हैं कैद आशा क्या करें ?

हो गए वादे सभी अब खत्म खाली झोलीहै
वोट कैसे मांगेजनता से बहाना क्या करें ?

गोत्र  समुदाय और मजहब हो गए प्रतिबंध सब
 अब समझ में कुछ नहीं, मल्हार गाया क्या करें ?

नोट बंदी से खजाना खोखला अब हो गया
जेब में पैसे नहीं इक,अब लुटाया क्या करें ?

वोट में सब पोल खुलते है, हमारा भी खुला
 झूठ की गटरी सभी भाषण, छिपाया क्या करें?

 हारने के बाद पछतावा  हीरह जाता  सनम
यह बड़ी दुख की घड़ी अब  गुनगुनाया क्या करें ?

तोड़कर दिल बेकरारी दी मुझे क्यों ए सनम
 तू बताकालीकि   बेचारा दिवाना क्या करें |
 
कालीपद ''प्रसाद'

Sunday 21 April 2019

ग़ज़ल

एक ग़ज़ल
हो गई है सभी बातें अभी’ घर जाऊंगा
झूठ बोला यहाँ’ अब सिर्फ मुकर जाऊंगा |
ऐ सनम छोड़ कभी भी नहीं’ जाना तुझको
गर गया तो तेरे ही साथ मगर जाऊंगा |
आसरा जीस्त का’ तू ही तो’ है’ मेरे जानम
तू अगर मोड ले’ मुँह तो मैं’ किधर जाऊंगा?
कष्ट मय क्लेश को’ सहता रहा’ हूँ मैं जानम
प्यार पाकर तेरा तन मन से’ सँवर जाऊंगा |
अब अनादर नहीं’ बरदाश्त करूंगा ए' सनम
जिस जगह प्यार मिलेगा मैं’ उधर जाऊंगा |
बेवफाई करें मुझसे नहीं’ ‘काली’ स्वीकार
आसरा एक न हो राहगुजर जाऊंगा |
कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday 16 April 2019

ग़ज़ल

212 1212 1212 1212
छोड़ द्वेष, दोस्ती का’ हाथ तो बढ़ा जरा
प्रेम में छुपा सुगंध जो, उसे लूटा जरा |
ए सनम बता करूं मैं’ क्या, तड़पती’ रात भर
तेरे मेरे दिल जलाती’ आग को बुझा जरा |
तेरी बेवफाई’ से उदास बेकरार है
प्रेयसी अभी खफा खफा उसे हँसा जरा |
प्रेम का निशान कुछ इताब और है झिझक
दोस्ती नई अभी, प्रथम कदम बढ़ा जरा |
गांव में गरीब का मरन, इलाज बिन हुआ
रुग्न दींन गाँव में अभी तू’ दे दवा जरा |
चाह नेता’ का समाज सर्वदा सुखी न हो
दीनता कभी नहीं हटी उसे हटा जरा |
दीन हीन लोग हैं तमाम गांव वासियाँ
मुफलिसी अदीद१  दुख बड़ा, उसे मिटा जरा |

१, अधिक
 
कालीपद 'प्रसाद'

ग़ज़ल

जनता तमाम जपती माला है’ आप ही का
यह काफिला मुखौटा पहना है’ आप ही का |

जय कार लग रहा चारों ओर आपके नाम
बेजोड़ है, अनोखा जलवा है’, आप ही का |

जो भी किया उन्होंने वादा, नहीं निभाया
इस इंतखाब में सब वादा है’ आप ही का |

इस देश से सभी भ्रष्टाचार खत्म करना
वादे का’ क्या हुआ जो सपना है’ आप ही का |

इस देश में अभी तक दिलगीर१ थे सभी लोग
खुश हाल तो नहीं था कहना है’ आप ही का |

इफरात माल जिसने तौफीक२ से कमाया
वह और कौन? वह तो साला है’ आप ही का|

वह आपका नहीं, कहते हैं आप, मानते हैं 
पर देश पूछता रिश्ता क्या है’ आप ही का ?

१ दुखी २ देव योग

कालीपद 'प्रसाद'

Saturday 6 April 2019

गीतिका

लावणी छंद
इंसान को बनाकर थकान से भगवान सो गया था
जगकर देखा मनुष्य का सब, रूप, रंग बदल गया था |

कर्तव्य का अर्थ स्वयं स्वार्थ में, मर्ज़ी से बदल दिया
एक पिता के थे सब भाई, अलग धर्म में बंट गया था |

कोई हिन्दू, मुस्लिम कोई, ईशाई जैन पारसी
अनेक धर्म अनेक मतों में, इंसान बिखरा गया था |

एक पिता को बाँट लिया था, ईश्वर खुदा के नाम से
राम रहीम की लड़ाई में, स्नेह प्यार बंट गया था |

धर्म को बना ढाल पुजारी, रब नाम से ठगने लगे
घोखा खाकर बार बार नर, धर्म खिलाफ हो गया था |

मैं अल्ला हूँ, या ईश्वर हूँ, भ्रान्ति में थे सृष्टि कर्ता
सोच रहा था मानव गढ़ कर, उनसे भूल हो गया था |

कालीपद 'प्रसाद'

Tuesday 2 April 2019

ग़ज़ल


मंत्रीपद के लिए दिल मचलने लगे
रहनुमा स्वयं पार्टी बदलने लगे |

सिर्फ सिद्धांत का अर्थ कुछ भी नहीं
स्वार्थ में अर्थ भी तो बदलने लगे

घूस देने सभी पार्टियां है चतुर
रहनुमा के कदम भी फिसलने लगे |

लाख पंद्रह नहीं आ सका तो अभी
अपने वादे से नेता पलटने लगे |

तेज आदित्य,  माहौल भी गर्म है
गर्म वैशाख में तन झुलसने लगे |

दल बदल अब तलक चल रहा है अबाध
मामला इंतखाबी  उलझने लगे|

ढूंढते, कौन पैसा अधिक दे रहा
दल बदल करनेवाले भटकने लगे |

कालीपद 'प्रसाद'