Monday 7 January 2019

ग़ज़ल

मेरे अर्धांश को उल्फत ने मारा
बचा आधा तेरी सूरत ने मारा |

हुकूमत से यही सबकी शिकायत
हमें असबाब की' कीमत ने मारा |

नज़ाकत प्रेमिका की है क़यामत
सनम की शोखिये कुर्बत ने मारा |

शरारत है हवा की, लायी' आफ़त
मुसीबत ने लुटा किस्मत ने मारा |

विरासत में मिला था नाम, दौलत
ये' दौलत खोखला शुहरत ने मारा |

इरादा नेक था जहमत सियासत
मुसीबत में फँसे गैरत ने मारा |

कभी हम थे निहायत नेक शौहर
करे क्या ये तेरी संगत ने मारा |

कालीपद 'प्रसाद'