चित्र गूगल से साभार |
अच्छे दिन आने वाले हैं
आशाओं के दीप जले हैं ,
हर हाथ को काम मिलेगा
बाहुपाश अब फड़क रहा है ,
मन में जोश ,दिल में उमंग है,
डोल रही है उम्मीदों की डोली है
कब तक सफलता पैर चूमेगी
सबको यही इन्तेजार है |
अँधेरी गलिओं से चलकर
नई रश्मि का स्वागत किया है,
हर आँगन में कब रश्मि होगी
नये आकाओं की परीक्षा की घडी है |
“सच्चाई और ईमानदारी की
कब तक होगा बोलबाला ?
बाहुबली ,डाकुओं और दागिओं के लिए
कब लगेगा संसद में ताला ?
हर दफ्तर में कब कानून का राज होगा
कब इमानदारी ही कानून होगा ?
परोपकारी होगा दफ्तर के हर कर्मचारी
कब भ्रष्टाचार का समूल नाश होगा ?
प्रश्न हैं 'ये भारत के जन जन के'
उम्मीदें हैं 'खिले फुल इस उपवन में' ,
दिखाया है जो सपने नए आकाओं ने
वो साकार कब होगा भारत के हर गाँव में ?”
सच होगा या वादों का पोल खुलेगा
इन्तेजार है ,समय ही यह बतलायेगा
राम ,रहीम का कितना भी दुहाई दे दे
मंदिर ,मस्जिद भी झूठे को नहीं बचा पायेगा |
अच्छे दिन का पोल खुलने लगे है
रेलभाड़ा,गैस,पेट्रोल सबका भाव बढ़ने लगे है
20 रुपये किलो आलू ,४० रपये में बिक रहे हैं
सेठ ,साहूकार ,नेताओं के अच्छे दिन आ रहे हैं |
बेचारी जनता निर्वाक है, लाचार हैं
हर नेता उसे ‘कैटल’ समझकर हांकता है
कभी महंगाई का डंडा खाती है ,कभी पुलिस का
हर हाल में डंडा खाना उसकी नसीब है |
रचना :कालीपद "प्रसाद "
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