वर्तमान परिस्थिति पर शिकायत किस् से करें ? सो ईश्वर को पत्र लिख दिया |
ईश्वर को पत्र
हे ईश्वर ! संसार से
जो निराश होते हैं
वह तेरे द्वार आते हैं |
हम भी निराश हैं,
जनता से, सरकार से |
तू निर्विकार है, निराकार है,
अदृश्य अमूर्त है|
फिर भी भ्रमित लोग
अपनी इच्छा अनुसार
कल्पना से
तेरी मूर्ति बनाकर,
आस्था की दुहाई देकर
आम जनता, सरकार,
यहां तक की
अदालत को भी
मजबूर कर देते हैं |
आस्था के चरमपंथी
अदालत के आदेश को भी
महत्व नहीं देते हैं|
अब तू बता
हम न्याय के लिए
किसके पास जाएं ?
तू अपने मन की बात बता
तुझे,मन का कोमल मंदिर चाहिए
या
कंकड़ पत्थर से सजे महल चाहिए ?
गरीब जनता जी भर पुकारती तुझे
नगण्य फल फूल से पूजती तुझे
तुझे यह अश्रु सिक्त अर्पण चाहिए
या
आलीशान मंदिर के सुगंधित
छप्पन भोग चाहिए ?
दीन हीन बेसहारा
जो तेरे सहारे की आस में बैठे हैं ,
तू उनके साथ जमीन पर बैठेगा ?
या
मुट्ठी भर धनी, पुजारी
साधु,संत के आडंबर से
भरपुर रत्न सिंहासन पर विरेजेगा ?
तुझे यहां छप्पन भोग मिलेगा
बाहर अश्रु जल और
शबरी का जूठा बेर मिलेगा |
तू ही बता, तुझे क्या पसंद है?
कहते हैं
जो लेता है वह छोटा होता है,
जो देता है वह बड़ा होता है,
हर पूजन में जो लेता है
तू उसे धनी बना देता है
और जो भक्ति से तुझे देता है
उसे तू गरीबी का दंड देता है |
यह कैसा तेरा न्याय ?
तू अवतारी है,
तुझे क्या धनी और
राजघराना ही पसंद है?
रानी कौशल्या के राम बना
राजकन्या देवकी के कृष्ण बना
तू बता
तू शंबूक क्यों नहीं बना ?
सुदामा क्यों नहीं बना ?
गरीब, निम्न वर्ग का
उद्धार हो जाता|
तू भगवान है,
तू जवाब नहीं देगा
मुझे पता है |
मुझे यह भी पता है कि
तू राम कृष्ण बना नहीं
तुझे बनाया गया है |
हिंसा द्वेष स्वार्थ
भेद-भाव की दुर्नीति
तेरे ही आड़ में
सब का अंजाम दिया गया है |
जानता हूं पत्र का उत्तर नहीं मिलेगा
कुछ चिढ़ेगा ,मुस्कुराएगा
फिर संसार ऐसा ही
चलता रहेगा |
कालीपद ‘प्रसाद'
मेरे विचार और अनुभुतियों की गुलिस्ताँ में आपका स्वागत है |.... ना छंदों का ज्ञान,न गीत, न ग़ज़ल लिखता हूँ ....दिल-आकाश-उपज,अभ्रों को शब्द देता हूँ ........................................................................ ............. इसे जो सुन सके निपुण वो हैं प्रवुद्ध ज्ञानी...... विनम्र हो झुककर उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ |