प्रदूषण
ब्रह्म राक्षस अब
नहीं निकलता है घड़े से
डर गया है मानव निर्मित
ब्रह्म राक्षस से |
वह जान गया है
मानव ने पैदा किया है
एक और ब्रह्म राक्षस
जो है समग्र ग्राही
धरा के विनाश के आग्रही |
यह राक्षस नहीं खर दूषण
यह है प्रदूषण |
काला गहरा धुआं
निकलता है दिन रात
कारखाने की चमनी से,
मोटर गाड़ियों से,
फ़ैल जाता है आसमान में|
धुंध बन शहर गाँव को
ले लेता है अपने आगोश में |
दिखता नहीं कुछ आखों से
लोग मलते हैं आखें,
गिरते आँसू लगातार
रोते सब गाँव शहर |
डरावना नहीं रूप इसका
डरावना है काम इसका |
घुस कर चुपके से
जीव शरीर के अन्दर
दिल, फेफड़े को करता है पंचर |
मानव की मूर्खता देखो ...
उसे जो बचा सकता है
उस जीवन दाता जंगल को
काट काट कर खात्मा किया है |
दिखाने झूठी शान
मूर्खता से काटता वही डाल
जिस पर खुद बैठा है इंसान |
दीवाली में अर्थ करता बर्बाद
पटाखे जलाते हैं बे-हिसाब
दूषित करते पर्यावरण को
जल्दी आने का निमंत्रण
भेजते हैं यमराज को |
अफसर मंत्री सब मौन क्यों हैं ?
पटाखें पर बैन क्यों नहीं हैं ?
जल जीवन है,
और
वायु प्राण है,
दोनों प्रदूषित हैं |
रे इंसान ! सोच ...
जल वायु बिन तू कैसे जियेगा ?
न तू रहेगा, न कोई इंसान
धरती हो जायगी बेजान |
यह सत्य है ...
अब भी गर तू रहता
स्वार्थ की नींद में
तो धरती से प्राणी का
विलुप्त होना निश्चित है |
कालीपद 'प्रसाद'