Wednesday 31 December 2014

नव वर्ष २०१५

                                                                 

कायनात  का नियम है 
हर क्षण चलते जाना है 
रुक गया जो रास्ते में 
उसका मरना निश्चित है l

ग्रह नक्षत्र तारे सब चल रहे हैं 
हमारी धरती ग्रह में शामिल है 
जन्म से निरन्तर चल रही है 
सिद्दत से नियमों का पालन कर रही है l 

यही कारण है कि एक साल का गमन
एक दूसरा साल का हो रहा है आगमन ,
जाने वाला साल पुराना  हो चूका है
आने वाला साल को "नव वर्ष " कहते हैं l

"नव वर्ष "नवीन उम्मीद जगाता है 
हर निराश जन में नया जोश भरता है 
पुराने वर्ष में कटु और मधुर अनुभव है 
कटुता भूलकर , नया उद्योम करता है l

नयासाल का हर्षोल्लास स्वागत होता है 
पुराने  साल का म्लान  विदाई होती है
"भविष्य मधुर हो "यही हमारी आशा है 
"नव वर्ष मंगलमय हो"यही हमारी दुआ है |

कालीपद "प्रसाद "

Tuesday 23 December 2014

भूलना चाहता हूँ !*





भूलना चाहता हूँ तुझे,पर ऐसा नहीं होता
काश ! याद रखने की वादा किया नहीं होता l1l

इल्म नहीं थी तेरी मिजाज़ की ,रवैया का 
काश !इकरार से पहले हमें इल्म होता l2l 

जिंदगी  ख़ुशी  ख़ुशी  गुज़र गयी होती  
गर मजधार में तू  हाथ छोड़ा न होता l३l

गुज़रे पलों की याद ,रह –रह कर आती है
काश !वो पल कभी जिंदगी में आया न होता l4l

जिंदगी की सचाई की गर एहसास होता
यह जिंदगी का रंग भी कुछ अलग होता l5l 

कालीपद "प्रसाद "
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Saturday 20 December 2014

पेशावर का काण्ड







कायर डायर चलवाया था गोली जालियावाला बाग़ में
जहाँ आये थे आज़ादी के दीवाने,आज़ादी को हासिल करने !

तालिवानी डायर ने चलवाया गोली पेशावर के स्कूल में
फूलों जैसे कोमल बच्चे जब मगन थे खुदा के इबादत में |

विद्या मंदिर पेशावर को ,दरिंदों ने बना दिया बध-स्थान
क्रूरता से बना दिया उसे ,उन मासूमों का कब्र-स्थान  |

बच्चे होते हैं भगवान का रूप,कहते हैं गीता,बाइबिल,कुरआन
उनको मारनेवाला नहीं हो सकते, कभी इस जग का इंसान |

गर वीर होते वे ,लड़ते जंग में आकर वीरों से आमने सामने
मासूमों पर गोली चलाकर ,कायरता का सबुत दिया है सब ने |

निष्पाप निरपराधी अजातशत्रु ,शत्रुता से बेखर थे वे सब बच्चे
उन्हें मारकर आतंकियों ने ,इंसानियत के भाल पर लगाये धब्बे |

बुझ गए दीये शैशव में ,डूब गए अचानक प्रभात के तारे जैसे
खाली हो गयी माँ की गोद ,छलकती अश्कों को अब रोके कैसे ?

‘पाक’ ने पाला था सांप आस्तीन में, भारत को डसने के लिए
वही साँप ने डस लिया उसे,वक्त है अब केवल पछताने के लिए |


कालीपद "प्रसाद"
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Tuesday 16 December 2014

नारी !*





नारी को जो कमजोर समझे, वो गलत है
नारी पुरुष जैसा है, ए बात भी गलत है l 

सहनशीलता है नारी में पुरुष से बहुत ज्यादा
सोचो गर पराकाष्ठा है नारी, तो यह गलत है l

है प्रेम ,सहानुभूति ,भाव-भावना नारी में अधिक
गर सोचो विवेकहीन है नारी ,तो यह गलत है l

प्रकृति ने बनाया है नारी,कम जिस्म-बल देकर
गर सोचो वुद्धि में भी दीन है ,तो यह गलत है l

एक थी मणिकर्णिका,बनी अमर शहीद लाक्ष्मी बाई
और नारी में नहीं है हिम्मत,यह बात भी गलत है l 

कल्पना करती है ,कल्पना उडती है अन्तरिक्ष में
विज्ञानं नहीं है उसके वश में,यह बात भी गलत है l 

नारी में है हर वो सूक्ष्म गुण,जो है हर इंसान में
पुरुष में भी नारी का हर गुण है,यह बात गलत है l    

कालीपद "प्रसाद 
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Saturday 13 December 2014

पाखी (चिड़िया )




                      
चित्र गूगल से साभार

आँधी चली, बिजली चमकी ,बादल हुआ अनुदार

घोंसला उड़ा,शावक गिरा,बिखरा चिड़िया का परिवार l

तिनका तिनका जोड़कर चिड़िया,बनायी थी आशियाना

हर संकट से शावक को अपना चाहती थी बचाना l

किन्तु निष्ठुर नियति का यह विनाशकारी अभियान

पतित पेड़ के नीचे छुपकर, बचायी अपनी जान  l

मौसम का क्रोध जब शमित हुआ,पवन भी हुआ शांत

आतुरता से खोजने लगी,कहाँ है उसकी संतान l

भीगकर शावक पड़े थे अचेत,उसी पेड़ के नीचे

चोंच में उठाकर रखा गोद में अपनी छाती के नीचे l

माँ के तन की उष्मा पाकर, फिर सचेत हुए बच्चे

माँ के प्यार में सुरक्षित है दुनिया के हर बच्चे l

कालीपद "प्रसाद'
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Tuesday 9 December 2014

विस्मित हूँ !




विस्मित हूँ देख-देखकर प्रकृति की नज़ारे

चमकता सूर्य ,चन्द्र और भोर के उज्ज्वल तारे |

दिनभर चलकर दिनकर,श्रान्त पहुँचता अस्ताचल,

अलसाकर सो जाता , ओड़कर निशा का आँचल |

चाँद तब आ जाता नभ में ,फैलाने धवल चाँदनी,

तमस भाग जाता तब , हँसने लगती है रजनी |




निस्तब्ध निशा में चुमके से, आ-जाती तारों की बरात

झिलमिलाते,टिमटिमाते, आँखों-आँखों में करते हैं बात |

तुनक मिज़ाज़ी मौसम है, कहते हैं- मौसम बड़ी बे-वफ़ा,

उनकी शामत आ-जाती है ,जिस पर हो जाता है खफ़ा |



सूरज हो या चाँद हो, या हो टिमटिमाते सितारे,

अँधेरी कोठरी में बन्द कर देता है, लगा देता है ताले |

रिमझिम कभी बरसता है ,कभी बरसता है गर्जन से

बरसकर थम जाता है ,शांत हो जाता है आहिस्ते से |

कितने अजीब ,कितने मोहक ,लगते है सारे प्यारे,

विस्मित हूँ, देख-देखकर प्रकृति की नज़ारे |




सिंदूरी सूरज के स्वागत में व्याकुल हैं ये फूल,

 रंग-बिरंगी  वर्दी पहनकर, मानो खड़े हैं सब फूल|

नीला आसमान प्रतिबिंबित, जहाँ है बरफ की कतारें,

विस्मित हूँ देख देखकर प्रकृति की नज़ारे |


फागुन में होली खेलते हैं लोग ,रंगीन होता है हर चेहरा,

प्रकृति खेलती होली , रंगीन होता है पर्वत का चेहरा |

प्रकृति मनाती होली दिवाली, मिलकर सब चाँद सितारे,

विस्मित हूँ देख-देखकर प्रकृति की नज़ारे |


कालीपद "प्रसाद"

(c) 

सभी चित्र गूगल से साभार