चित्र गूगल से साभार |
गर्मी थी तो दिन था शुष्क ,पर उज्वल
पवन भी था उन्माद ,वेगवान प्रवल ,
न जाने कहाँ से बहा ले आते
चंचल इच्छाओं के जलद बादल |
उमड़ घुमड़ कर नाचते कभी
गरज-गरज कर सबको डराते कभी
दामिनी दमक होती हृदयाकाश में
बादल जब बरसते जमकर क़भी |
धरती की प्यास बुझाने हेतु
मस्ती में बरस जाता कभी
नदी के दो कुल डूब जाते
मुसलाधार जब बरसते कभी |
धरती पीती एक एक बूंद जल
अपनी तीव्र प्यास को बुझती
होकर तृप्त भीतर बाहर से
करती असीम आनंद की अनुभूति |
अनुपम इस आनंद को धरती
नहीं करती यहाँ पर इसकी इति
कई गुण करके इस आनंद को
संतानों को लौटाती यह धरती |
पशु,पक्षी,वृक्ष,लता, त्रिनादी*वनस्पति
धरती पर उत्पन्न,सब हैं उनकी संतति
जीवन के आगाज़ से मृत्यु तक
पोषण करती हमें यह धरती |
राजा या रंक हो,कोई भेद भाव नहीं करती
जीवन में या अवसान में सबका ख्याल रखती
मृत्यु के बाद भी हर मानव को प्यार करती
अपनी गोद में प्यार से सुलाती है धरती |
बिना कोई प्रतिवाद किये
हर शोषण सहती है धरती
इन महान गुणों के कारण
सब कहते हैं हमारी माँ है धरती |
कालीपद "प्रसाद "
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