Thursday 26 September 2013

साधू या शैतान

                                    


     
साधू सन्त नाम धारी अनेक
सच्चा होगा शायद हजारों में एक l  
बैठे हैं गेरुआ वस्त्र धारण कर
ढोंग करते हैं भक्त का माला जपकर ll

धरकर वेश साधूसन्त जोगन का  
साधुसंत का नाम बदनाम किया l
गेरुआ, सफ़ेद हो या और वसना
जब उतर गया तो शैतान निकला ll  

तंत्र मंत्र साधने कोई कापालिक बन गया
सिद्धि हेतु मासूम बच्चों का बलि चढ़ाया l
बन बैठा गुरु वो ओड़कर गेरुआ चोले
हंस के रूप में छुपे वो काले कौए निकले ll 

हरि भजन करते करते कर गए नारी भजन
नारी देह के सामने गुरु ने कर दिया समर्पण l
जैसा गुरु वैसा चेला , प्रवचन है ढकोसला
भक्त समागम बना है, व्यभिचारियों का मेला ll

गुरु का एकांत वास ,पर 
उसमे होती है रंगरेलियां
हरि छोड़ ,चेलियों के साथ
गुरु करते है रंगरेलियां ll 

सहमति है तो सोने में सुहागा
असहमति में तो यह बलात्कार है l
किन्तु सन्त ,बाबाओं  को उसमें
नहीं लगता है कोई अनाचार है ll

ऐसे गुरु सन्त साधु जोगिनो के
सब के स्वर में होते हैं एकतान l
इनसे भले तो वे लोग है
जग जिनको कहते हैं शैतान ll

कालीपद "प्रसाद"
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२५ सितम्बर २०१३

Sunday 22 September 2013

हे निराकार!


                                   

हे निराकार निर्गुण, कहो कहाँ छुपे हो तुम 
ढूंढ़ु कहाँ बतलाओ, किस रूप में हो तुम 
हर घड़ी बदलते, अनन्त  रूप तुम्हारा
कुछ देर ठहरकर, पहचान अपना कराओ तुम। 

पल पल बदलते, रूप तुम्हारा 
पल पल बदलती, तुम्हारी सत्ता 
पल पल बदलती, तुम्हारी स्थिति 
पलपल बदलती, हमारी जिंदगी।


तुम हो सर्वोपरि शिरोमणि सर्वशक्तिशाली 
तुम हो सर्वेश्वर सिरमौर सर्वक्षमताशाली
कृपासिंधु दीनबन्धु तुम हो परोपकारी
तुम हो शीलवन्त सर्वव्यापी सर्वगुणशाली।

कृपालु हो ,दयालु हो, हो तुम वनमाली 
गौ पर असीम कृपा तुम्हारा, करते हो रखवाली 
सखा तुम्हारा समर्पित, घर तुम्हारा जग सारा 
मुझे बना लो सेवक अपना, करूँगा तुम्हारी रखवाली।

कालीपद "प्रसाद "
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Tuesday 17 September 2013

क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )

                  दुर्गा सप्तसती में" क्षमा प्रार्थना" के कुछ श्लोक हैं। सब श्लोक संस्कृत में हैं.।  सब लोग उसको पढ़ नहीं पाते। इसीलिए  मैंने सोचा क्यों न हिंदी में ही उसे अनुवाद किया जाय , परन्तु शब्दश : अनुवाद संभव नहीं हो पाया। इसीलिए वही भाव को  रुबैयाँ छन्द में प्रस्तुत करने की कोशिश की है, शायद आपको पसंद आये।
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दिन रात के काम में मेरे ,होते हैं अपराध हजारों
मानकर मुझे दास अपना , मुझको क्षमा करो ,
ना आवाहन ,ना विसर्जन , ना पूजा विधि जानू  मैं
मूढ़ जानकर कृपा करके ,मुझको क्षमा करो।।

मन्त्र हीन  क्रिया हीन ,  जप- तप हीन हूँ मैं
जैसा समझा पूजा किया ,ज्ञान वुद्धिहीन हूँ मैं
दया का सागर,कृपा सिन्धु ,इसे स्वीकार करो
तुम्हारी कृपा से पूर्ण हो पूजा ,विनती करता हूँ मैं।।

न ज्ञानी  हूँ  न ध्यानी हूँ , मूढमति अज्ञानी हूँ
हूँ अपराधी मैं ,पर शरण तुम्हारे आया हूँ
जो  भी दंड देना चाहो ,मुझे सब स्वीकार  है
शरणागत हूँ ,निराश न करो ,दया का पात्र हूँ।।

अज्ञानता से , वुद्धि भ्रम से ,भूल हुए अत्यधिक
क्षमा करो प्रभु /माँ मुझे यदि कुछ किया कम अधिक
निज इच्छा करो कृपा ,करो भूल चुक माफ़
मेरी कामना पूर्ण करो ,मांगू नहीं कुछ अधिक।।


कालीपद "प्रसाद "


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Wednesday 11 September 2013

गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)

       
                                                                    




मन ,वुद्धि ,विवेक का स्रष्टा हो
ज्ञान विज्ञानं के तुम विधाता हो
ब्रह्मा  रूपेण हो सिरजनहार तुम
शतकोटि प्रणाम तुम्हे , मेरे ज्ञान-गुरु हो।

 २


संसार सागर के खिवैया तुम हो
मेरी डूबती  नांव के तुम नाविक हो
कभी इसपार तुम, तो कभी उसपार
विष्णु रूपेण तुम गुरु पालक  हो। 




अहँकार ,घमंड ,घृणा ,द्वेष ,ईर्षा
काम, क्रोध,लोभ ,मद-मोह ,तृष्णा
मेरे सभी अवगुणों के  संहारक हो तुम
हो सत्वगुण रक्षक मेरे गुरु शिवरूपा।

  ४ 


शतकोटि  प्रणाम तुम्हे ,तुम ब्रह्मा हो
शतकोटि  प्रणाम तुम्हे, तुम विष्णु हो
शतकोटि  प्रणाम तुम्हे, हे भोले शंकर!
शतसहस्र कोटि  प्रणाम,गुरु तुम परब्रह्म हो। 


कालीपद "प्रसाद "

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Monday 9 September 2013

यादें



अलमारी को साफ़ करते करते
कुछ पुरानी  चीजों पर अचानक
जैसे ही नजर पड़  गई…….
हँसते खेलते ,लड़ते  झगड़ते
बचपन की याद
यूँ ही अनायास ताज़ा हो गई.……. 
ये पुरानी चीजें
जो यादों को सालों
सम्भाल कर रखती है ,
स्मृति के सही सच्चे पहरेदार हैं। 

वे सब दोस्त …….
दोस्तों के साथ गप्पें करना
बेफिक्र घूमना फिरना
पेड़ पर चढ़ना
तालाब में तैरना
पानी में छुपा छुपी का
खेल  खेलना  …. 
चिल चिलाती धुप में
सब से आँख बचाकर
सेठ के बगीचे से
आम,अमरुद चुराना
चुराकर दोस्तों में बाँट कर खाना
चौकीदार की लाठी की ठक ठक
आवाज सुनकर भाग जाना  ……… 
स्कुल में लंच की घंटी बजते ही 
खिड़की से कूदकर भागना 
गुमटी वाले दूकान जाना 
एक पैसे का आलू बंडा 
केक खरीदो हर एक आना 
आज तो केवल यादे है 
लौटकर नहीं आयेगा वो ज़माना …

 ……आँखे मूंदो तो लगता है
यह तो कल की बात है। 
पर समय का चक्र……… ???
चक्र बहुत घूम चका है ,
घूमकर बहुत आगे बढ़ चुका है। 
यह चक्र केवल आगे घूमता है
विपरीत दिशा में नहीं घूमता
यादों को याद ही रहने देता है
बचपन से मुलाकात नहीं कराता।
बचपन में बचपना है ,सभी को भाता है
एकबार जो बिछुड़ गया,फिर नहीं मिलता है।

कालीपद "प्रसाद "


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