Wednesday, 19 November 2014

आईना !*



कभी किसी से कुछ नहीं कहता आईना
चुप रहकर भी सबकुछ कह देता है आईना !
बुरा हो या अच्छा हो ,सूरत या सीरत
उसका हुबहू तस्वीर दिखा देता है आईना !
आईना से कभी नहीं छुपता है कोई झूठ
चेहरे की रंगत देख,तस्वीर खींच देता है आईना !
गिरगिट सा हरघडी,कितना भी रंग बदले मन
चेहरे पर हर रंग का अक्स देख लेता है आईना !
भ्रम के चौराहे,भटकता मन देखता है जब आईना
मन को सही रास्ता दिखा देता है आईना |
घबराओ नहीं “प्रसाद” गर दिल तुम्हारा सच्चा है
तस्वीर भी खुबसूरत दिखा देता है आईना !
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कालीपद “प्रसाद”
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Tuesday, 11 November 2014

प्रेम !*



 
किताबें बहुत पढ़ी, हासिल की अनेक डिग्रियां
ढाई अक्षर प्रेम का अर्थ क्या है, समझ नहीं पाया |

कसमें बहुत खाई ,वादे बहुत किया  ( ख़्वाब में )
ख्वाब टूटी,सब भूल गए,वादा निभा नहीं पाया !

तुझे ढूंढ़ता रहा, कभी यहाँ कभी वहाँ
दुनियाँ भूल भुलैया है ,तुझे ढूंढ़ नही पाया !

भ्रमित हूँ ,भटकता हूँ पागल की तरह
हर चीज़ में तुम्हे नहीं,तुम्हारी अक्स पाया,!

आँखों में अश्क की कमी है “प्रसाद “       
अश्क-बारी भी नसीब नहीं हो पाया !

कालीपद "प्रसाद"
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Saturday, 8 November 2014

एक दिन तुम मेरी दुल्हन बनोगी !**



तमन्ना है दीदार करूँ, मुस्कुराता चेहरा तेरा  

देख तनी भृकुटी तेरी, है होश उड़ जाता मेरा |

गर थोडा हँसकर बोल दे,क्या बिगड़ेगा तेरा ?

बहार आएगी ,गुल चमन में खिलेगा मेरा !

नकली ही सही,दो लफ्ज मीठे बोलकर देखो

तुम पर जिंदगी कुर्बान, यह है वादा मेरा !

एकबार हाथ, मेरे हाथ में देकर तो देखो

नहीं छूटेगा जिंदगी भर ,यह है वादा मेरा !

छोड़ संकोच,नाराजगी तुम, कदम बढ़ा के देखो

यकीं है तुम मेरी दुल्हन बनोगी, विश्वास सदा मेरा |

कालीपद "प्रसाद"
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Sunday, 2 November 2014

तुझे मना लूँ प्यार से !**





चाहता हूँ ,तुझे मना लूँ प्यार से
लेकिन डर लगता है तेरी गुस्से से !
घर मेरा तारिक के आगोश में है
रोशन हो जायगा तेरी बर्के-हुस्न से !
इन्तजार रहेगा तेरा क़यामत तक
नहीं डर कोई गमे–फ़िराक से !
मालुम है कुल्फ़ते बे-शुमार हैं रस्ते में
इश्क–ए–आतिश काटेगा वक्त इज़्तिराब से !
हुस्न तेरी बना दिया है मुझे बे-जुबान
बताऊंगा सब कुछ ,तश्ना–ए–तकरीर से |

शब्दार्थ : तारिक=अन्धकार ,अँधेरा ; बर्के हुस्न=बिजली जैसी चमकीला सौन्दौर्य : गमे –फ़िराक=विरह का दुःख : इश्क –ए –आतिश =प्यार का आग : इज़्तिराब से=व्याकुलता से : तश्ना –ए – तकरीर=प्यासे होंठो से 

कालीपद "प्रसाद "
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