एक थप्पड़ पड़ता है जब तुम्हे
आंसू तुम्हारा बह निकलता है ,
कुल्हाड़ी का एक घाव से पेड़ भी
सिसक सिसक कर रोता है |
तुम तो चिल्लाकर व्याथा अपनी
बढाकर ,सब को बता देते हो,
वाक् शक्तिहीन ,मूक है पेड़
उनकी व्याथा का तुम्हे अहसास हो
चुपचाप पीड़ा सह लेता है वह
कभी शिकायत नहीं करता है,
आँधी तूफान अनावृष्टि में वह
हम सबके जीवन का रक्षक हैं |
जीवन रक्षक हैं, पालक हैं पेड़
सारे जग का कल्याण करता है ,
स्वार्थ में पड़कर मुर्ख इंसान
पेड़ों को दुश्मन समझ रहा है |
तपती धुप हो या मुसलाधार वर्षा
पशु पक्षी पथिक को आश्रय देता है ,
भू -क्षरण और वायु प्रदुषण रोककर
पर्यावरण को शुद्ध बनाता है |
शहर छोड़कर अब फैलने लगा है
कांक्रीट का जंगल हर क़स्बा हर गाँव
एक दिन ऐसा आएगा ,जब तरसेंगे
मानव पाने को वृक्ष का शीतल छाँव |
धरती लगती है सुन्दर दुल्हन
ओड़कर सर पर हरा दुपट्टा
निर्दयी बनकर ना छीनो धरती से
अवनी माँ की लाज की दुपट्टा |
आओ करे प्रण,सब मिलकर आज
करेंगे रक्षा धरती की, हरयाली की
अपने जीवनकाल में रोपकर दस पौधे
अहसान उतारेंगे हम धरती माँ की |
कालीपद "प्रसाद "
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