Monday 24 July 2017

दोहे

मानव जीवन में सदा, कोशिश अच्छा कर्म |
मात पिता सेवा यहाँ, सदा श्रेष्ट है धर्म ||
प्रारब्ध नहीं, कर्म है, भाग्य बनाता कर्म |
पाप पुण्य होता नहीं, जान कर्म का मर्म ||
छुएगा आग हाथ से, क्या होगा अंजाम |
सभी कर्म फल भोगते, पाप पुण्य का नाम ||
बुरा काम का जो असर, उसे जान तू पाप |
है पुण्य नेक कर्म फल, करे दूर संताप ||
कालीपद 'प्रसाद'

Monday 17 July 2017

गीतिका


न जानूँ मैं बताऊँ कैसे’, मन में जो दबाई है
जबां पर यह नहीं आती, मे’रे खूँ में समाई है |
नहीं था जीस्त में आराम, शाही खानदानों ज्यो
निभाया मैं प्रतिश्रुति और तुमने भी निभाई है |
अभी तुझको कहूँ क्या, तू बता क्यों बे-वफाई की
तेरी झूठी मुहब्बत में, प्रतिष्ठा सब जलाई है |
जनम भर हम रहेंगे साथ, वादा तो तुम्हारा था
अकेला छोड़ कर मुझको, बहुत तुमने रुलायी है |
दिखाती प्यार बेहद थी सदा, पर छोड़ी’ क्यों अब हाथ
बिना बोले चले जाना, यही तेरी बुराई है |
सदा तुम खेलती थी, गेंद बेचारा मेरा दिल था
मुहब्बत के वो’ खेलों में, वफ़ा तुमने भुलाई है |
गज़ब नाराजगी तेरी, उफनती वो पयस जैसा
हो’ जाती शांत जब, लगती है’ तू मीठी मलाई है |
कालीपद 'प्रसाद'

Wednesday 5 July 2017

ग़ज़ल

जहाज़ चाहिए’ तूफानी’ बेकराँ^ के लिए
विशिष्ट गुण सभी, जी एस* इम्तिहाँ के लिए|

है’ कायदा यहाँ धरती के’ आदमी वास्ते
नहीं नियम को’ई’ भी जंद आसमाँ के लिए |

अवाम डरते’ थे’ तब लाल आँख को देखकर
समाप्त डर हुआ मिज़्गाँ-ए-खूँशियाँ@ के लिए |

महुष्य जाति यहाँ, आते’ चार दिन वास्ते  
न राम कृष्ण बने उम्रे जाविदाँ # के लिए |

यहीं पले यहीं खाते स्तवन करे पाक की
सज़ा क्या’ इन छली गद्दार राजदाँ के लिए |

शब्दार्थ : बेकराँ= कुल किनारा हीन समुद्र
जी एस= GST
मिज़्गाँ-ए-खूँशियाँ@= रक्त रंजित लाल पलकें
उम्रे जाविदां#=शाश्वत जीवन
जंद =बड़ा,विशाल,महान

कालीपद 'प्रसाद'