Thursday 19 October 2017

दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं


दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं 

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एक दीप ऐसा जले, मन का तम हो दूर
जब मन का तम दूर हो, मिले ख़ुशी भरपूर |

सबकी इच्छा पूर्ण हो, दैव योग परिव्याप्त
हँसी ख़ुशी आनंद हो, रिध्दि सिध्दि हो प्राप्त |
 *************शुभ दिवाली*************


कालीपद 'प्रसाद'



Wednesday 11 October 2017

ग़ज़ल

सटीक बात की’, आक्षेप बाँधनू क्या है
ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?

नया ज़माना’ नया है तमाम पैराहन
अगर पहन लिया वो वस्त्र, फ़ालतू क्या है |

हसीन मानता’ हूँ मैं उसे, नहीं शोले
नजाकतें जहाँ’ है इश्क, तुन्दखू क्या है |

किया करार बहुत आम से चुनावों में
वजीर बनके’ कही रहबरी, कि तू क्या है ?

हो वुध्दिमान मिला राज, अब करो कुछ भी   
उलट पलट करो’ खुद आप, गुफ्तगू क्या है |

ये’ कर्ण फूल, गले हार, हाथ में कंगन  
पहन लिया सभी’ कुछ, और आरजू क्या है ?

जला जो’ आग से’ कश्मीर, भष्म में है क्या
वो’ खंडहर में’ बची लाश की’ जुस्तजू क्या है ?

सभी को’ है पता’ मंत्री बना अभी “काली”
नहीं तो’ देश में’ उसकी भी’ आबरू क्या है |

शब्दार्थ :-
बाँधनू – मन गढ़ंत , खरसान –तेज , बू –गंध
तुन्दखू-गुस्सैल;तेज मिज़ाज़, जुस्तजू –खोज, गवेषणा

कालीपद 'प्रसाद'