Monday, 16 November 2015

मौन क्यों हूँ ?

मौन हूँ, इसीलिए नहीं
कि मेरे पास शब्द नहीं...
मौन हूँ, क्योंकि जीवन में मेरे
हर शब्द का अर्थ बदल गया है |
वक्त के पहले वक्त ने
करवट बदल लिया है,
वसंत के स्वच्छ आकाश में
काले बादल छा गया है,
भरी दोपहरी में, चमकते सूरज में
ज्यों ग्रहण लग आया है |

मौन हूँ, पर नि:शब्द नहीं
घायल हूँ, पर नि:शस्त्र, पराजित नहीं
दुखी हूँ , पर निराश नहीं |
आशा, विश्वास शस्त्र हैं मेरे
‘काल’ से भी अधिक बलवान,
काटेगा हर अस्त्र ‘काल’ का
मेरे ये अमोघ वाण |
‘काल’ नहीं रह पायगा स्थिर 
सदा इस हाल में मेरे दर पर
‘काल’ ही पहनायगा विजय मुकुट
खुश होकर मेरे सर पर |

कालीपद ‘प्रसाद’

© सर्वाधिकार सुरक्षित 

Tuesday, 10 November 2015

चलते रहना है...


जिन्दगी मिली है तो, अंतिम श्वांस तक जीना है
रास्ता चाहे जैसा हो, उस पर चलते रहना है |
चाहे हिमालय की गगनभेदी, तीखी चोटियाँ हों
या महा सागर की, अनजान अतल गहराई हों,
बिना रुके निरन्तर, उसपर आगे बढ़ते जाना है
रास्ता चाहे जैसा हो, उस पर चलते रहना है |

कभी कंकड़, कभी काँटे, पग में चुभे चाहे शूल
डरकर नहीं रुकना कभी, करना नहीं यह भूल,
रबने दिया है यह जीवन, भरपूर इसको है जीना 
होगा परमात्मा से बेवफाई, उससे बिमुख होना,
बुलंद हिम्मत से जीवन को, बुलंदी पर पहुंचाना है
रास्ता चाहे जैसा हो, उस पर चलते रहना है |

सुख है तो दुःख है, जैसे हैं दिवस रजनी
देह है वाद्ययंत्र, काल बजाता, रोग-रागिनी,
बजते रहना है जैसे बजाय, सुर-ताल के रचयिता
हँसना रोना हर चोटपर, चाहता यही जग-रचयिता,
सुख-दुःख, रोग-शोक के, तार से जीवन जुडा है
रास्ता चाहे जैसा हो, उस पर चलते रहना है |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Monday, 26 October 2015

सुनो एक राजा की कहानी ! (काल्पनिक )



गणतंत्र की महिमा है, कोई भी लड़े चुनाव
फ़क़ीर बन गए राजा, जीतकर आम चुनाव|
आनंद विभोर भये राजा, ख़ुशी न समाया दिल में
चमचे डूबे मदिरा में, डूबे राजा जीत के नशे में|
चमचों ने की जय जयकार, गद-गद हुए राजा जी
लुटाकर धन साहूकारों का, चुनाव जीते राजा जी|
हीरे-मोती, सोना-चाँदी, थे सब रत्नों का अम्बार
जवाहरातों से भरा पड़ा था, सरकारी सब भंडार|
रत्नों का चमक देख, राजा जी खूब बौरा गए
एक चोर चुपके से, राजा के मन में बस गए|
सोचने लगे जनता के राजा, कैसे मारे सेंध
राज खजाने में प्रवेश, राजा को भी था निषेध|
मंत्री, संत्री, खजांची का, लगाया राज दरबार
पूछा सबसे, “बेकार रत्न-भण्डार का क्या दरकार?”
“रत्न, जवाहरात, सोना, चाँदी बेचकर धन जुटाओ
जन कल्याण के काम में, वो सब धन लगाओ|
वादा जो किया है जनता से, उसे पूरा करना है
अगला चुनाव जब भी हो, उसे हमें जितना है|
खाद्य द्रव्य की कीमत पर, मजबूत अंकुश लगाओ
पेट्रोल, डीज़ल, गैस की कीमत, घटाते बढ़ाते जाओ|
देश अपना, पार्टी अपनी, अपनी नीति लगाओ
हमारे हितैषी के हित में, सभी  कानून बनाओ|
अपना देश बहुत बड़ा, जनता का दिल भी बड़ा है
छोटे-मोटे घपले तो होते है, उससे क्या घबराना है|
जनता की चिंता मत करो, उनकी स्मृति कमज़ोर है
थोड़ी देर करती उठा-पटक, पर जल्दी शांत हो जाती है|
मीडिया पर ध्यान रखो, राई का पहाड़ बनाती है|
रातो रात रंक को राजा, राजा को रंक बनाती है|”
पाकर राज आज्ञा सब, मंत्री, संत्री, बहुत खुश हुए
औने-पौने दामों में, सोने-चाँदी के भण्डार बेच दिए|
बिक गए मोती माणिक्य सब, खाली सरकारी भंडार
खरीदने वाले और कोई नहीं, थे सब राजाजी के नौकर|


© कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday, 13 October 2015

जय दुर्गे माँ ! (आगमनी )

गूगल से साभार 


जय दुर्गे माँ !( आगमनी )

जय दुर्गे जय दुर्गे जय दुगे माँ
दुःख नाशिनी सुख दायिनी तुम दुर्गमा |

नंदाशक्ति रक्तदंतिका तुम ही गायत्री माँ
दुर्गनाशिनी भय हारिणी मुक्तिदायिनी माँ |

शरद का शिशिर सुन्दर, सुन्दर धरती माँ
तुम्हारे आगमन से हर्षित धरती आसमा |

हर्षित दिशा, हर्षित हवा, हर्षित देव, नरगण
हँसी-ख़ुशी सुख-सौभाग्य का धरा पर आगमन |

लक्ष्मी-सरस्वती आई, साथ आये कार्तिक-गणेश
जगत-जननी आई धरा पर, लेकर साथ महेश |

सुस्वागतम, सुस्वागतम, सुस्वागतम माँ सपरिवार 
अभयदायिनी, विपत्तारिणी, स्वागत है माँ बार-बार|

तुम्हारा आगमन है जग का कल्याण, कल्याणी माँ
सदा कृपादृष्टि रखो हम पर, हम निराश्रित हैं माँ |

रोग हरो, शोक हरो, पीड़ा हरो, कष्ट हरो हमारी माँ 
तुम हो संकट-मोचनी, कल्याणकारी, मुक्तिदायिनी माँ |

तुम्हारी ही कृपा, सहारा हमारा, दूजा कौन है माँ
करो उद्धार इस विपत्ति से, मुझ पर कृपा बरसो माँ |

जय दुर्गे जय दुर्गे जय दुर्गे माँ .....
दुःख नाशिनी सुख दायिनी तुम दुर्गा मा... |

 कालीपद ‘प्रसाद’

©सर्वाधिकार सुरक्षित 

Thursday, 8 October 2015

ईश्वर के कानून !

ईश्वर के हर नियम-कानून है अलिखित
तोड़ने पर मिलती दण्ड, है यह निश्चित |
लाठी है अदृश्य उनकी, दिखाई नहीं देती
मारते हैं मुजरिम को, आवाज़ नहीं होती |
कौनसा नियम तोड़ने पर, दण्ड कौनसा है
इसका लेखा जोखा, केवल ईश्वर के पास है |
देकर एक शरीर, जीव को धरा पर भेजा है
दण्ड का पहला प्रहार, शरीर पर पड़ता है |
रोग के विषाणु भी, एक सूक्ष्म जीवाणु है
विशाल शरीर में घुसकर, रोग पैदा करता है |
दवाई के असर से, सूक्ष्म जीव मरता है
सूक्ष्म जीव विशाल का प्राण हर लेता है |
कैसा नियम बनाया रब ने, कुछ समझ न आये
चींटी से परेशां हाथी, चाहकर कुछ न कर पाये |

कालीपद ‘प्रसाद’

© सर्वाधिकार सुरक्षित    

Sunday, 4 October 2015

गाँधी जी !

                             
नीति और कार्य द्वारा  सबसे गरीब का भला हो
भारत के शासक और शासन नीति का यही ध्येय हो
सभी नेताओं से यही कहा था राष्ट्रपिता गाँधी जी ने
सबके तन पर कपडे, सरपर छत हो, कोई भूखा न हो |

सर्वस्य त्याग कर एक वस्त्र धारी बने थे गांघी जी
अहिंसा,प्रेम और सौहाद्र के लिए लडे थे गाँधी जी
स्वर्ग से ईच्छा हुई देखे कैसा है स्वतंत्र भारत आज
भ्रष्टाचारियों के हाथ अहिंसा का  क़त्ल देख रो दिए गांधी जी |



कालीपद 'प्रसाद'

Thursday, 24 September 2015

दोहे छंद में –आध्यात्मिकता




उम्र है कम, काम बहुत, आलस न कर मानव
कर्मफल करेगा पार, संसार महा अर्नव |
          ***
पवित्र मन आधार है, सत्य का धर्माचरण 
प्रभु का ध्यान औ' मनन , लौकिक सत्यानुशरण |
          ***
एकाग्र साधना में, हैं  विद्या वुद्धि ज्ञान
आत्मशुद्धि होती है, जब निष्कपट हो मन  |
          ***
इंसानियत हीन इन्सान, है पशु, नहीं मानव 
अनुकम्पी इन्सान जग में, होते सही मानव  |
           ***
|

   कालीपद ‘प्रसाद’

© सर्वाधिकार सुरक्षित 

Wednesday, 23 September 2015

चितचोर !


              


तू है तो चितचोर
ब्रह्माण्ड के निपुण चितेरे
दुनियां को रंगा सात रंग से
जानता नहीं कोई
कितने रंग हैं तेरे |
धरती पर कहीं अगाध जल,
कहीं मरुभूमि, जलहीन सिक्तारे
आधार हीन आसमां में टांगा 
असंख्य सूर्य चन्द्र तारे |
तू रूप है या अरूप है
सिद्ध योगी न जान पाये,
विज्ञानं भी विस्मित है
तेरा हदीस कोई न पाये |
कपोल कल्पित किस्सों से
भरा पडा है सब ग्रन्थ,
पांडा बताते नई नई पूजाविधि
जिसका नहीं कोई अन्त |
अलग अलग है सबका मत
अलग अलग है सबका राह,
वास्तव में तू क्या है, कहाँ है
कौन बतलायगा हमें राह ?
सही क्या है, गलत क्या है
सोच सोच कर हम हारे,
नामों का कोई अन्त नहीं है
किस नाम से हम तुझे पुकारे ?
गुरुओं की नहीं कमी यहाँ
सब बतलाते हैं तेरे घर की राह,
खुद नहीं कभी चला उस राह पर
खुद के लिए है वह अछूत राह |
तू ही बता क्या करे हम
कैसे निकले इस भूल-भुलैया से,
भटक रहे हैं इस राह पर
न जाने कितने युगों युगों से |

कालीपद ‘प्रसाद’

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, 17 September 2015

गणपति वन्दना


                             

                                                      

                   ॐ गं गणपतये नम:

 जय जय जय गणपति, जय निधिपति
जय जय जय विघ्नहन्ता, जय ब्रातपति |
एकदन्त गजकर्ण, दिव्य गज मुंडधारी
मोदक प्रिय सिद्धिदाता, मूषक सवारी |
विघ्ननाशक विनायक, जय मंगल मूर्ति
सौभाग्य संपत्ति दाता, गौरीपुत्र गणपति |
भाद्र मास, शुक्ल पक्ष, तिथि है चतुर्थी
गणेश जी का जन्मदिन पावन चतुर्थी |
वसंत में टेसू का फुल, पतझड़ में नवांकुर
कष्टहारी आनंद सागर, मुमूर्ष में आशान्कुर |
गणाध्यक्ष गणदेवता, ज्ञान वुद्धि विद्या दाता
सृष्टि-स्थिति, रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ प्रदाता |
जय जय जय गणपति, जय निधिपति
जय जय जय विघ्नहन्ता, जय ब्रातपति |

   कालीपद ‘प्रसाद’
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday, 14 September 2015

(हिंदी दिवस)




हिंदी है रूपवती किन्तु, गरीब की कन्या है
शहर में घृणा पात्र, गाँव में प्यारी है |
*****
बाबुओं की दो माता, अंग्रेज़ी और हिन्दी
खुद की माँ अंग्रेजी, सौतेली है हिन्दी |
*****
पढना लिखना आसान, हिन्दी सीधी साधी
एक जैसा लिखो पढो, आंग्ल उलटी सीधी |
*****
यदि हिंदी हमारी माँ, तो उर्दू है मौसी
माँ मौसी को छोड़कर, क्यों पूजें विदेशी ?
*****
हिन्दी है उदार भाषा, स्वीकारता है सब
अंग्रेजी, उर्दू, पारसी, या हो भाषा अरब |
*****
हिन्दी को बनाओ सरल, मिटा दो सब अन्तर
नये शब्द जुड़ते रहे, विस्तार हो निरन्तर |

   कालीपद ‘प्रसाद’

© सर्वाधिकार सुरक्षित     

Saturday, 12 September 2015

नेताजी की हिंदी

१४ सितम्बर हिंदी दिवस है | इस उपलक्ष में प्रस्तुत है एक व्यंग रचना !
                                               


                                                         

Wednesday, 9 September 2015

खुबसूरत भ्रम !

जानता हूँ मैं
यह ध्रुव सत्य है,
पुराने दिन कभी
लौटकर नहीं आयगा,
जीवन फिर कभी
पहले जैसा नहीं होगा,
फिर भी ...
जब कभी नया चाँद उगता है
अँधेरी निशा में
चाँद की दुधिया रश्मि
धरती के हर कोने में
दुधिया रंग बिखेर देती है,
मेरे मन में भी
उम्मीद के रंग
भर जाता है |
चाँदनी के उजाले में
मेरा पागल मन-मयूर  
नाचने लगता है,
आत्म विस्मृत हो
अतीत के सुनहरे
दिनों में खो जाता है |
भोला मन, भूल जाता है ...
“जीवन के मरुस्थल में
वह प्यास से छटपटा रहा है,
नज़र के सामने गोचर
बालू में जल-ताल नहीं
नज़र का धोखा है
मृग-मरीचिका है,
यह एक भ्रम है|”
मन के सुख के लिये
विवेक की चाहत है,
मन का भ्रम कभी न टूटे
आखरी स्वांस तक
यह खुबसूरत भ्रम
बरकरार रहे |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Saturday, 5 September 2015

नमन दो महान गुरुओं को !




आज का दिन है बड़ा पावन
दुनियां को मिला गीता का ज्ञान,
द्वापर में अवतरित कृष्ण कन्हैया
कलियुग में जन्मे राधाकृष्णन |
जन्माष्टमी में श्रीकृष्ण का जन्म
राधाकृष्ण का है शिक्षक दिवस,
ज्ञान, कर्म, भक्ति योग से
कृष्ण ने किया दुनियां को वस |
श्रीकृष्ण है जगतगुरु
राधकृष्ण है दर्शन गुरु,
राधा मिले द्वापर में कृष्ण  
राधाकृष्ण बने कलि में गुरु |
गीता है ज्ञान, शिष्य है अर्जुन
कृष्ण बना शिक्षक महान
करते वन्दन कृष्ण व राधा को
राधाकृष्ण है भारत की शान |

  कालीपद ‘प्रसाद’
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, 3 September 2015

जिन्दगी और रेलगाड़ी







जिन्दगी और
रेलगाड़ी...
दोनों एक जैसी हैं |
कभी तेज तो कभी
धीमी गति से
लेकिन चलती है |
पैसेंजर ट्रेन...
स्टेशन पर रुक जाती है
और देर तक रुकी रहती है |
जिन्दगी के कुछ लम्हे
ऐसे भी होते है
जिसमे आकर
जिन्दगी रुकी प्रतीत होती है |
लाख कोशिश करे
जिन्दगी आगे नहीं बढती
लगता है तब
आखरी स्टेशन आ गया है |
जिन्दगी में न जाने
कितनों से मिले,
किन्तु कुछ ही की यादें
यादों में बस गए,
कुछ की यादें
पैसेंजर की भांति
यादों से उतर गए |
रेलगाड़ी और जिन्दगी में
एक ही अंतर है,
गाड़ी आखरी स्टेशन से
लौटकर पहले के
स्टेशन में आ जाती है,
किन्तु जिन्दगी की गाडी
लौटकर कभी भी
बचपन में नहीं आती है |

© कालीपद ‘प्रसाद’ 

Sunday, 30 August 2015

क्षणिकाएँ

             

विवेक को बनाओ जज, मन होगा रस्ते पर
सचाई के संगत में, विवेक पहरेदार |
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साम-दाम-दण्ड व भेद, स्वार्थ-नीति हैं सब
स्वार्थी नेता सोचते, उनके दास हैं सब |
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नहीं धार्मिक यहाँ नर, हो गया साम्प्रदायिक
नफ़रत, हिंसा में विश्वास, विसरे आध्यात्मिक |
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कर्म से बढ़कर न धर्म, न आगे कोई तप
मानव बन जाते देव, पाते देव प्रताप |
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मानव की चाहत मोक्ष, नही छोड़ता मोह
कांचन, कामिनी और, लोभ बढ़ाते मोह |
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हिन्दू जपते राम नाम, ईशाई का गॉड
अनेक है नाम रब का, ईश्वर, अल्ला, गॉड |
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लोगों के दिलों को मैं, छूना चाहता हूँ
धर्म मार्ग में भरोसा, करना चाहता हूँ |
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मानव जीवन में करे, जो अच्छा कर्म यहाँ
उसे मिले मोक्ष जग से, मिले प्रशंसा यहाँ |
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© कालीपद ‘प्रसाद’