Thursday 24 September 2015

दोहे छंद में –आध्यात्मिकता




उम्र है कम, काम बहुत, आलस न कर मानव
कर्मफल करेगा पार, संसार महा अर्नव |
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पवित्र मन आधार है, सत्य का धर्माचरण 
प्रभु का ध्यान औ' मनन , लौकिक सत्यानुशरण |
          ***
एकाग्र साधना में, हैं  विद्या वुद्धि ज्ञान
आत्मशुद्धि होती है, जब निष्कपट हो मन  |
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इंसानियत हीन इन्सान, है पशु, नहीं मानव 
अनुकम्पी इन्सान जग में, होते सही मानव  |
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   कालीपद ‘प्रसाद’

© सर्वाधिकार सुरक्षित 

Wednesday 23 September 2015

चितचोर !


              


तू है तो चितचोर
ब्रह्माण्ड के निपुण चितेरे
दुनियां को रंगा सात रंग से
जानता नहीं कोई
कितने रंग हैं तेरे |
धरती पर कहीं अगाध जल,
कहीं मरुभूमि, जलहीन सिक्तारे
आधार हीन आसमां में टांगा 
असंख्य सूर्य चन्द्र तारे |
तू रूप है या अरूप है
सिद्ध योगी न जान पाये,
विज्ञानं भी विस्मित है
तेरा हदीस कोई न पाये |
कपोल कल्पित किस्सों से
भरा पडा है सब ग्रन्थ,
पांडा बताते नई नई पूजाविधि
जिसका नहीं कोई अन्त |
अलग अलग है सबका मत
अलग अलग है सबका राह,
वास्तव में तू क्या है, कहाँ है
कौन बतलायगा हमें राह ?
सही क्या है, गलत क्या है
सोच सोच कर हम हारे,
नामों का कोई अन्त नहीं है
किस नाम से हम तुझे पुकारे ?
गुरुओं की नहीं कमी यहाँ
सब बतलाते हैं तेरे घर की राह,
खुद नहीं कभी चला उस राह पर
खुद के लिए है वह अछूत राह |
तू ही बता क्या करे हम
कैसे निकले इस भूल-भुलैया से,
भटक रहे हैं इस राह पर
न जाने कितने युगों युगों से |

कालीपद ‘प्रसाद’

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday 17 September 2015

गणपति वन्दना


                             

                                                      

                   ॐ गं गणपतये नम:

 जय जय जय गणपति, जय निधिपति
जय जय जय विघ्नहन्ता, जय ब्रातपति |
एकदन्त गजकर्ण, दिव्य गज मुंडधारी
मोदक प्रिय सिद्धिदाता, मूषक सवारी |
विघ्ननाशक विनायक, जय मंगल मूर्ति
सौभाग्य संपत्ति दाता, गौरीपुत्र गणपति |
भाद्र मास, शुक्ल पक्ष, तिथि है चतुर्थी
गणेश जी का जन्मदिन पावन चतुर्थी |
वसंत में टेसू का फुल, पतझड़ में नवांकुर
कष्टहारी आनंद सागर, मुमूर्ष में आशान्कुर |
गणाध्यक्ष गणदेवता, ज्ञान वुद्धि विद्या दाता
सृष्टि-स्थिति, रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ प्रदाता |
जय जय जय गणपति, जय निधिपति
जय जय जय विघ्नहन्ता, जय ब्रातपति |

   कालीपद ‘प्रसाद’
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday 14 September 2015

(हिंदी दिवस)




हिंदी है रूपवती किन्तु, गरीब की कन्या है
शहर में घृणा पात्र, गाँव में प्यारी है |
*****
बाबुओं की दो माता, अंग्रेज़ी और हिन्दी
खुद की माँ अंग्रेजी, सौतेली है हिन्दी |
*****
पढना लिखना आसान, हिन्दी सीधी साधी
एक जैसा लिखो पढो, आंग्ल उलटी सीधी |
*****
यदि हिंदी हमारी माँ, तो उर्दू है मौसी
माँ मौसी को छोड़कर, क्यों पूजें विदेशी ?
*****
हिन्दी है उदार भाषा, स्वीकारता है सब
अंग्रेजी, उर्दू, पारसी, या हो भाषा अरब |
*****
हिन्दी को बनाओ सरल, मिटा दो सब अन्तर
नये शब्द जुड़ते रहे, विस्तार हो निरन्तर |

   कालीपद ‘प्रसाद’

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Saturday 12 September 2015

नेताजी की हिंदी

१४ सितम्बर हिंदी दिवस है | इस उपलक्ष में प्रस्तुत है एक व्यंग रचना !
                                               


                                                         

Wednesday 9 September 2015

खुबसूरत भ्रम !

जानता हूँ मैं
यह ध्रुव सत्य है,
पुराने दिन कभी
लौटकर नहीं आयगा,
जीवन फिर कभी
पहले जैसा नहीं होगा,
फिर भी ...
जब कभी नया चाँद उगता है
अँधेरी निशा में
चाँद की दुधिया रश्मि
धरती के हर कोने में
दुधिया रंग बिखेर देती है,
मेरे मन में भी
उम्मीद के रंग
भर जाता है |
चाँदनी के उजाले में
मेरा पागल मन-मयूर  
नाचने लगता है,
आत्म विस्मृत हो
अतीत के सुनहरे
दिनों में खो जाता है |
भोला मन, भूल जाता है ...
“जीवन के मरुस्थल में
वह प्यास से छटपटा रहा है,
नज़र के सामने गोचर
बालू में जल-ताल नहीं
नज़र का धोखा है
मृग-मरीचिका है,
यह एक भ्रम है|”
मन के सुख के लिये
विवेक की चाहत है,
मन का भ्रम कभी न टूटे
आखरी स्वांस तक
यह खुबसूरत भ्रम
बरकरार रहे |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Saturday 5 September 2015

नमन दो महान गुरुओं को !




आज का दिन है बड़ा पावन
दुनियां को मिला गीता का ज्ञान,
द्वापर में अवतरित कृष्ण कन्हैया
कलियुग में जन्मे राधाकृष्णन |
जन्माष्टमी में श्रीकृष्ण का जन्म
राधाकृष्ण का है शिक्षक दिवस,
ज्ञान, कर्म, भक्ति योग से
कृष्ण ने किया दुनियां को वस |
श्रीकृष्ण है जगतगुरु
राधकृष्ण है दर्शन गुरु,
राधा मिले द्वापर में कृष्ण  
राधाकृष्ण बने कलि में गुरु |
गीता है ज्ञान, शिष्य है अर्जुन
कृष्ण बना शिक्षक महान
करते वन्दन कृष्ण व राधा को
राधाकृष्ण है भारत की शान |

  कालीपद ‘प्रसाद’
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday 3 September 2015

जिन्दगी और रेलगाड़ी







जिन्दगी और
रेलगाड़ी...
दोनों एक जैसी हैं |
कभी तेज तो कभी
धीमी गति से
लेकिन चलती है |
पैसेंजर ट्रेन...
स्टेशन पर रुक जाती है
और देर तक रुकी रहती है |
जिन्दगी के कुछ लम्हे
ऐसे भी होते है
जिसमे आकर
जिन्दगी रुकी प्रतीत होती है |
लाख कोशिश करे
जिन्दगी आगे नहीं बढती
लगता है तब
आखरी स्टेशन आ गया है |
जिन्दगी में न जाने
कितनों से मिले,
किन्तु कुछ ही की यादें
यादों में बस गए,
कुछ की यादें
पैसेंजर की भांति
यादों से उतर गए |
रेलगाड़ी और जिन्दगी में
एक ही अंतर है,
गाड़ी आखरी स्टेशन से
लौटकर पहले के
स्टेशन में आ जाती है,
किन्तु जिन्दगी की गाडी
लौटकर कभी भी
बचपन में नहीं आती है |

© कालीपद ‘प्रसाद’