Thursday, 13 September 2018

कविता

मात्रा १६,१५,=३१ , अंत २१२ 
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मीठी मीठी हिंदी बोलें, जन मानस को मोहित करे
सहज सरल भाषा हिंदी से, हम सबको संबोधित करे |
रंग विरंगे फूल यहाँ है, यह गुलदस्ता है देश का
हिंदी के सुगंध फैलाकर, भारती को सुगन्धित करे |
गलती होगी सोचो मत यह, बोलो बेधड़क होकर तुम
गलती करे अहिन्दी भाषी, गलती को संशोधित करे |
भिन्न भिन्न भाषा अनेक, उत्तर दक्षिण ,पश्चिम पूर्व
हिंदी का प्रचार प्रसार हो, सभी को प्रोत्साहित करे |
पूजा चाहे कोई भी हो, काली दुर्गा शंकर विष्णु
हिंदी में सब मंत्र पढ़ें औ, फूल अर्घ सब अर्पित करे |
घर हो या दफ्तर या होटल, हिंदी में ही सब बात करे
आपसी बात हिंदी में ही, अपना विचार प्रेषित करे |
कालीपद ‘प्रसाद’

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