राही’
तो राह चला करता है
डाह
में दुष्ट जला करता है |
चाँद
सा चेहरा’ जुल्फों में ज्यूँ
चाँद बादल
में छुपा करता है |
स्वच्छ
आकाश में’ इक दो बादल
ज़ुल्फ़
का मेघ हुआ करता है |
प्यार
में प्यार जताना हक़ है
प्रेमी
इस राह चला करता है |
जख्म
दिलदार दिया है, तो क्या
ज़ख्म
हरहाल भरा करता है |
काम
पूरा हो’ न हो,पर सबकी
रहनुमा
बात सुना करता है |
खूबसूरत
है.वफ़ा भी है क्या ?
वस्ल
में शक्ल दगा करता है |
दिल
जहाँ भग्न है, उस रोगी पर
प्यार
अक्शीर दवा करता है |
बेवफा
प्रेयसी से गर हो प्यार
प्यार
में शूल चुभा करता है |
बेवफाई
हुई इक दिन ‘काली”
प्यार का बुर्ज़ ढहा करता है |कालीपद 'प्रसाद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-09-2018) को "गाओ भजन अनूप" (चर्चा अंक-3101) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।