Monday 10 September 2018

ग़ज़ल

भाई देकर भाई से’ अलग क्यों कर दिया ?
कभी इकट्ठा ना रहे ऐसा क्यों घर दिया ?
धरती पर्वत तारे विस्तृत अंबर दिया
पूछा प्रश्न हजार नहीं तू उत्तर दिया |
सरकार नरम है, सैनिक भी शरीफ हैं
रक्षक सेना को तुम मार क्यों’ पत्थर दिया ?
शब हो या दिन आवाज गूंजती पल पल
पत्थर गोली बरस रहा क्या मंजर दिया !
देव सभी को अमर किया तू , किंतु बशर
आत्मा है'अमर पर काया क्यों नश्वर दिया ?
सच, मानव जीवन देकर उपकार किया
अपना जीवन संवारने’ का अवसर दिया ?
इंसान किया है ग़फ़लत जीवन भर जब
गलती सुधार का तू मौका अक्सर दिया |
मुझको भेजा जग में करने काम भला
देना था सुख जीवन में, दुख क्यों भर दिया ?
जीवन काटा तेरे’ भरोसे अब कुछ कर
‘काली चमके रवि सम’ रब ने यह वर दिया |
कालीपद 'प्रसाद'

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-09-2018) को "काश आज तुम होते कृष्ण" (चर्चा अंक-3084) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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