कर्म तो कर्म है ,कर्म-फल नर, इसी जग में भोगता है |
कर्मक्षेत्र यही है, ज़मीं भी यही है, कोई नहीं अंतर ,
उद्यमी अपने उद्यम से ,बनाते हैं बंजर ज़मीं को उर्बर |
निरुत्सुक,निकम्मा ,आलसी सोते रहते हैं दिवस रजनी ,
बाज़ीगर-तगदीर खेलती है उन से आँख मिचौनी |
वही है धन संपत्ति का अधिकारी,जो है कर्मवीर,
आलसी होते हैं कँगाल,पर होते है वाक् –वीर |
कर्मवीर ने काम किया ,जिंदगी में आमिरी भोगा ,
उसने आमिरी भोगकर कोई पुण्य नहीं कमाया |
आलसी ने कुछ काम नहीं किया ,गरीबी झेला
गरीबी झेलकर उसने कोई पाप नहीं किया |
अपने अपने कर्मफल चखकर दोनों ने भरपूर जिया
मिथ्या पाप-पुण्य का अर्थ को निरर्थक प्रमाण किया |
साधू सन्त देते हैं परिभाषा कल्पित पाप-पुण्य का
वही करते हैं दुष्कर्म,भोगते हैं फल अपने दुष्कर्मों का |
कर्मफल को पाप- पुण्य का नाम देकर
खुद करते हैं हर कर्म, जनता को भ्रमित कर |
कर्म जो किसी को दुखी करे ,कहा उसको पाप
ख़ुशी देनेवाले कर्म हो जाते हैं पुण्य, निष्पाप |
पाप की चिंता छोडो ,पर-कष्टदायी कर्म से डरो
पुण्य की बात भूलो ,कुछ जन कल्याण करो |
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
अनमोल अकल्पनीय बधाई
ReplyDeleteवाह ।
ReplyDeleteअनमोल वचन...
ReplyDeleteअष्टादश पुराणेषुव्यासस्य वचनं द्वयं |. परोपकाराःपुण्याय पापाय पर पीड़नम् |
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 21 . 7 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteआपका आभार आशीष भाई !
Deletevery right .
ReplyDeletevery right .
ReplyDeleteसार्थक लेखन सुंदर संदेश के साथ
ReplyDeleteसुन्दर और सारगर्भित रचना |
ReplyDeleteकर्म पथ पर अग्रसर करती ... सुन्दर सारगर्भित पोस्ट ...
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित प्रस्तुति...
ReplyDeleteविचारों को परिमार्जित परिशोधित करती बहुत ही प्रेरक प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteजैसे कर्म वैसे फल साफ़ सूत्र है, सटीक रचना !
ReplyDeleteसुंदर रचना..बोधपूर्ण भी !
ReplyDeletebahut sundar ........saadr namste bhaiya
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
ReplyDeleteमैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
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