Wednesday 9 September 2020

 गयी जब छोड़ मुझको, मैं ढुकास रहता हूँ

प्रिया की याद में दिनभर उदास रहता हूँ |
भ्रमित तो मैं नहीं हूँ, धारणा यही मेरी
लगे मुझको हमेशा यह, कि पास रहता हूँ |
कभी सोचूं यहीं है वो, कभी दिगर बातें
दिमागी तौर से मैं बदहवास रहता हूँ |
नहीं मैं जानता ईश्वर कहाँ किधर रहते
समझता हूँ कि रब के आसपास रहता हूँ |
नहीं जाना कि पूजा क्या है’, आरती देखा
इबादत में हमेशा भक्तदास रहता हूँ |
महामारी प्रकोप ऐसी, कि त्रस्त है दुनिया
कभी बाहर नहीं अपने निवास रहता हूँ |
करूँ क्या अब घरों में बैठ सर्वदा ‘काली’
समझ में कुछ नहीं, बस भव-विलास रहता हूँ |
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शब्दार्थ :- ढुकास=तीव्र प्यासा
बदहवास=बौखलाया,
भव-विलास= सांसारिक सुखों के भोग के निमित्त
की जाने वाली क्रियाओं में मस्त |
कालीपद 'प्रसाद'

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