Thursday, 21 November 2019

ग़ज़ल


२१२२ १२१२  २२ (११२)
रहनुमा कोई बेकसूर नहीं
उस जहन्नुम में’ बेहुजूर नहीं |

बोलता कम मगर गुरूर नहीं
क्या कहूँ उनका’ वो कसूर नहीं |

शर्म से दोहरा हुआ जाता
झेंपू’ है किन्तु बेहसूर नहीं |

नाक ऊपर इताब उनका है
किन्तु नादान नासबूर नहीं |

प्रेम में भूख ख़त्म हो गई’ है
कुम्हलाये वदन में नूर नहीं |

बावफा संग छोड़ कर गई’ है  
प्रिय मिलन अब अनेक दूर नहीं |

बाग़ की सब कली हलाल हुई
रिक्त जन्नत मे कोई हूर नहीं |  
शब्दार्थ :-
बेहुजूर=गैरहाजिर, बेहसूर= औरतों की
ओर आकर्षित न होने वाला
नासबूर=अधीर अधैर्यवान 

कालीपद 'प्रसाद'

1 comment:

  1. बेहद उम्दा....

    आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है|

    https://hindikavitamanch.blogspot.com/2019/11/I-Love-You.html

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