२१२२ १२१२ २२ (११२)
रहनुमा कोई बेकसूर नहीं
उस जहन्नुम में’ बेहुजूर नहीं |
बोलता कम मगर गुरूर नहीं
क्या कहूँ उनका’ वो कसूर नहीं |
शर्म से दोहरा हुआ जाता
झेंपू’ है किन्तु बेहसूर नहीं |
नाक ऊपर इताब उनका है
किन्तु नादान नासबूर नहीं |
प्रेम में भूख ख़त्म हो गई’ है
कुम्हलाये वदन में नूर नहीं |
बावफा संग छोड़ कर गई’ है
प्रिय मिलन अब अनेक दूर नहीं |
बाग़ की सब कली हलाल हुई
रिक्त जन्नत मे कोई हूर नहीं |
शब्दार्थ :-
बेहुजूर=गैरहाजिर, बेहसूर=
औरतों की
ओर आकर्षित न होने वाला
नासबूर=अधीर अधैर्यवान
बेहद उम्दा....
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